बिहार में 2025 के विधानसभा चुनाव की सरगर्मी तेज हो चुकी है। इस बार का चुनाव न केवल नीतीश कुमार और तेजस्वी यादव के बीच की जंग है, बल्कि प्रशांत किशोर की जन सुराज पार्टी और चिराग पासवान की लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) भी सियासी समीकरणों को उलट-पुलट करने को तैयार हैं। क्या यह नीतीश कुमार की राजनीतिक पारी का अंतिम पड़ाव होगा? क्या तेजस्वी यादव के लिए यह सुनहरा मौका है, या फिर उन्हें पांच साल का वनवास झेलना पड़ेगा? और क्या बीजेपी-जेडीयू गठबंधन मतदाता सूची में हेरफेर के बावजूद सत्ता में वापसी कर पाएगा? आइए, इस सियासी रण का विश्लेषण करें।
प्रशांत किशोर: नया विकल्प या वोट कटवा?
चुनावी रणनीतिकार से राजनेता बने प्रशांत किशोर अपनी जन सुराज पार्टी के साथ बिहार की सभी 243 सीटों पर चुनाव लड़ने की तैयारी में हैं। उनकी रणनीति मुस्लिम, दलित, और महिला वोटरों पर केंद्रित है, जो बीजेपी और जेडीयू के पारंपरिक वोट बैंक में सेंध लगा सकती है। किशोर ने नीतीश कुमार की जेडीयू को लेकर बड़ा दावा किया है कि यह 25 सीटों से ज्यादा नहीं जीत पाएगी, और अगर ऐसा हुआ तो वे राजनीति छोड़ देंगे। साथ ही, उन्होंने तेजस्वी यादव पर भी तीखे हमले बोले हैं, उनकी शिक्षा और नेतृत्व क्षमता पर सवाल उठाते हुए। किशोर की बढ़ती लोकप्रियता, जो सी-वोटर सर्वे में 18.4% तक पहुंच चुकी है, यह संकेत देती है कि वे न केवल महागठबंधन बल्कि एनडीए के वोट भी काट सकते हैं। उनकी जाति-निरपेक्ष अपील और युवाओं का समर्थन उन्हें एक गेम-चेंजर बना सकता है, लेकिन सवाल यह है कि क्या यह लोकप्रियता वोटों में बदलेगी?
चिराग पासवान: एनडीए के लिए दोस्त या दुश्मन?
केंद्रीय मंत्री चिराग पासवान ने ऐलान किया है कि उनकी पार्टी सभी 243 सीटों पर प्रभाव बनाएगी, हालांकि वे एनडीए के साथ रहेंगे। 2020 के चुनाव में चिराग ने जेडीयू को निशाना बनाकर कई सीटों पर नुकसान पहुंचाया था, और इस बार भी उनकी रणनीति नीतीश के लिए चुनौती बन सकती है। उनकी लोकप्रियता मई 2025 में 10.6% तक पहुंच गई, जो उन्हें सियासी रेस में महत्वपूर्ण बनाती है। चिराग का दलित वोट बैंक और 'बिहार फर्स्ट, बिहारी फर्स्ट' का नारा एनडीए के भीतर ही जेडीयू के लिए खतरा पैदा कर सकता है। साथ ही, उनकी रणनीति बीजेपी के सवर्ण और ओबीसी वोटों को भी प्रभावित कर सकती है।
नीतीश कुमार: अंतिम पारी या सियासी चाल?
नीतीश कुमार की लोकप्रियता स्थिर है, और सी-वोटर सर्वे के अनुसार 58% लोग उनके काम से संतुष्ट हैं। लेकिन बार-बार गठबंधन बदलने और स्वास्थ्य संबंधी चिंताओं ने उनकी छवि को धक्का पहुंचाया है। प्रशांत किशोर का दावा है कि जेडीयू का बीजेपी में विलय हो सकता है, और नीतीश नवंबर 2025 के बाद मुख्यमंत्री नहीं रहेंगे। नीतीश की प्रगति यात्रा और मुफ्त बिजली जैसे वादों से वे मतदाताओं को लुभाने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन चिराग और किशोर की मौजूदगी उनके लिए मुश्किलें बढ़ा सकती है।
तेजस्वी यादव मुख्यमंत्री पद के लिए सबसे पसंदीदा उम्मीदवार बने हुए हैं, लेकिन उनकी लोकप्रियता 41% से घटकर 34% हो गई है। उनकी 'आभार यात्रा' और मुस्लिम-यादव गठजोड़ उन्हें मजबूत बनाता है, लेकिन 'जंगलराज' का नैरेटिव और मोतिहारी हिंसा पर उनकी चुप्पी ने नुकसान पहुंचाया है। प्रशांत किशोर की चुनौती और चिराग की रणनीति उनके वोट बैंक में सेंध लगा सकती है। फिर भी, तेजस्वी का युवा जोश और विपक्षी गठबंधन की ताकत उन्हें सत्ता के करीब रखती है।
बीजेपी-जेडीयू: हेरफेर के बावजूद मौका नहीं?
एनडीए गठबंधन में बीजेपी और जेडीयू की स्थिति मजबूत दिखती है, लेकिन मतदाता सूची में कथित हेरफेर के आरोप और प्रशांत किशोर की जन सुराज पार्टी की बढ़ती ताकत उनके लिए चुनौती है। बीजेपी 100 सीटों के लिए लड़ रही है, लेकिन बहुमत के लिए 120 सीटें चाहिए। चिराग पासवान की रणनीति और किशोर की जाति-निरपेक्ष अपील एनडीए के वोटों को बांट सकती है।
बिहार का 2025 का चुनाव एक त्रिकोणीय मुकाबला बन चुका है। प्रशांत किशोर और चिराग पासवान की मौजूदगी नीतीश कुमार और तेजस्वी यादव दोनों के लिए खतरा है। नीतीश की सियासी पारी शायद अंतिम दौर में है, जबकि तेजस्वी के लिए यह सत्ता का सुनहरा मौका हो सकता है, बशर्ते वे वोटों के बंटवारे को रोक पाएं। बीजेपी-जेडीयू गठबंधन को अपनी रणनीति पर फिर से विचार करना होगा, क्योंकि प्रशांत और चिराग के उभरते प्रभाव ने सियासी समीकरणों को जटिल बना दिया है। बिहार की जनता इस बार बदलाव चाहती है, और यह बदलाव किस रूप में आएगा, यह नवंबर में ही पता चलेगा।