गुजरात के साबरकांठा जिले में साबर डेयरी के बाहर पशुपालकों का आंदोलन थमने का नाम नहीं ले रहा है। दूध की खरीद कीमत में वृद्धि और मुनाफे में पारदर्शिता की मांग को लेकर शुरू हुआ यह आंदोलन अब और उग्र हो गया है। पशुपालकों का आरोप है कि डेयरी प्रबंधन उन्हें उनका हक देने में आनाकानी कर रहा है और मुनाफे का हिसाब देने में विफल रहा है। इसके साथ ही, दूध की हेराफेरी पर आंशिक रोक लगाने में पशुपालक कुछ हद तक सफल रहे हैं, लेकिन डेयरी अब पुलिस सुरक्षा के बीच काम कर रही है। आंदोलनकारियों का कहना है कि डेयरी का मुनाफा एक मंदिर से उधार लेकर दिया जा रहा है, जिसकी सच्चाई सामने आनी चाहिए।
आंदोलन की शुरुआत और मांगें
साबर डेयरी, जो साबरकांठा जिला सहकारी दुग्ध उत्पादक संघ के नाम से जानी जाती है, गुजरात की सबसे बड़ी डेयरियों में से एक है। यह प्रतिदिन 7.5 लाख लीटर दूध का प्रसंस्करण करती है और इसका 2023-24 में टर्नओवर 8,939 करोड़ रुपये रहा। लेकिन पशुपालकों का कहना है कि पिछले साल 602 करोड़ रुपये के मुनाफे की तुलना में इस साल केवल 350 करोड़ रुपये का मुनाफा दिखाया गया, जो 9.75% की दर से है। उनकी मांग है कि दूध की खरीद कीमत में 25% की वृद्धि हो, मुनाफे का हिसाब पारदर्शी हो, और डेयरी प्रबंधन की कथित अनियमितताओं की जांच हो। इसके अलावा, आंदोलन के दौरान हुई एक पशुपालक की मौत की जांच और मृतक के परिवार को 1 करोड़ रुपये का मुआवजा देने की मांग भी शामिल है।
पुलिस के साथ टकराव और दूध की हेराफेरी पर सवाल
14 जुलाई 2025 को साबर डेयरी के बाहर शुरू हुआ प्रदर्शन हिंसक हो गया था, जिसमें पशुपालकों ने पथराव किया और पुलिस ने आंसू गैस व लाठीचार्ज का सहारा लिया। इस दौरान एक पशुपालक, अशोकभाई, की मौत हो गई, जिसके बाद 74 लोगों, जिसमें पूर्व कांग्रेस विधायक और डेयरी निदेशक जशुभाई पटेल शामिल हैं, के खिलाफ FIR दर्ज की गई। इसके बाद, साबरकांठा और अरावली जिले के कई गांवों जैसे मेधासन, खंभीसर, हफ्साबाद, और शिनावाड़ ने स्थानीय दुग्ध मंडलियों को दूध देना बंद कर दिया और सड़कों पर दूध बहाकर विरोध जताया। पशुपालकों का दावा है कि डेयरी में दूध की मात्रा और गुणवत्ता में हेराफेरी हो रही है, जिसे कुछ हद तक रोकने में वे सफल रहे हैं।
डेयरी का जवाब और मुनाफे पर सवाल।
पांच दिन के तीव्र विरोध के बाद, साबर डेयरी ने 18 जुलाई 2025 को दूध की खरीद दर को संशोधित कर 995 रुपये प्रति किलो वसा कर दिया, जो पहले 990 रुपये था। लेकिन पशुपालकों का कहना है कि यह वृद्धि नाकाफी है और डेयरी प्रबंधन केवल "लॉलीपॉप" दे रहा है। आंदोलनकारियों का यह भी आरोप है कि डेयरी मुनाफे का हिसाब देने में विफल रही है और कथित तौर पर मुनाफा दिखाने के लिए एक मंदिर से उधार लिया गया है। हालांकि, इस दावे की कोई आधिकारिक पुष्टि नहीं हुई है, और पशुपालक इस "हकीकत" को सामने लाने की मांग कर रहे हैं।
पुलिस सुरक्षा और आंदोलन का प्रभाव
विरोध के बाद साबर डेयरी अब पुलिस सुरक्षा के बीच काम कर रही है। इस आंदोलन ने न केवल डेयरी की कार्यप्रणाली को प्रभावित किया है, बल्कि साबरकांठा, जो गुजरात का दूसरा सबसे बड़ा दूध उत्पादक क्षेत्र है, में दूध आपूर्ति को भी बाधित किया है। लगभग 1,800 दुग्ध मंडलियों ने दूध आपूर्ति का बहिष्कार किया है, जिससे डेयरी को भारी नुकसान का सामना करना पड़ रहा है। साथ ही, सड़कों पर दूध बहाने और हिंसक प्रदर्शनों ने स्थानीय यातायात और सार्वजनिक संपत्ति को भी नुकसान पहुंचाया है।
साबर डेयरी पर पशुपालकों का आंदोलन एक गंभीर सवाल उठाता है: क्या सहकारी डेयरी मॉडल, जो गुजरात की श्वेत क्रांति की नींव है, अपने ही पशुपालकों को न्याय दे पा रहा है? दूध की हेराफेरी, मुनाफे में पारदर्शिता की कमी, और प्रबंधन की कथित मनमानी ने पशुपालकों के गुस्से को हवा दी है। पुलिस दमन और एक पशुपालक की मौत ने इस आंदोलन को और भावनात्मक बना दिया है। पशुपालक अपने हक की लड़ाई में डटे हुए हैं, और यह देखना बाकी है कि क्या डेयरी प्रबंधन उनकी मांगों को पूरा करेगा या यह आंदोलन और तूल पकड़ेगा। सच्चाई, खासकर मंदिर से उधार के दावे की, सामने आना जरूरी है ताकि पशुपालकों का भरोसा सहकारी ढांचे पर बना रहे।