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Saturday, 19 July 2025

नाटो के लिए टैरिफ की तलवार: रूस को निशाना बनाते हुए भारत-चीन पर प्रहार

नाटो के लिए टैरिफ की तलवार: रूस को निशाना बनाते हुए भारत-चीन पर प्रहार
नाटो, जो कभी सोवियत संघ के खतरे से यूरोप को बचाने के लिए गठित हुआ था, अब रूस के खिलाफ मोर्चा खोले हुए है। लेकिन इस बार उसका निशाना केवल रूस नहीं, बल्कि भारत, चीन और ब्राजील जैसे देश भी हैं, जो रूस से तेल, गैस और कोयला खरीद रहे हैं। नाटो और अमेरिका के नेतृत्व में टैरिफ की धमकी दी जा रही है, ताकि रूस की आर्थिक ताकत को कमजोर किया जाए। लेकिन क्या यह रणनीति नाटो और यूरोप के लिए ही उलटी साबित होगी? 

नाटो का पुनर्जनन और टैरिफ की रणनीति

नाटो, जिसे श冷 युद्ध के बाद लगभग अप्रासंगिक माना जा रहा था, को यूक्रेन-रूस य bereavement ने नई जिंदगी दी है। नाटो के वर्तमान प्रमुख, नीदरलैंड के पूर्व प्रधानमंत्री मार्क रूटे, ने इस अवसर को दोनों हाथों से लपक लिया है। उन्होंने भारत, चीन और ब्राजील से रूस को युद्धविराम के लिए मनाने की अपील की है, साथ ही यह चेतावनी दी कि अगर ये देश रूस के साथ व्यापार जारी रखते हैं, तो उन पर टैरिफ लगाए जाएंगे। यह रणनीति न केवल रूस को कमजोर करने की कोशिश है, बल्कि नाटो के अस्तित्व को बनाए रखने का भी प्रयास है। 

ट्रम्प का यू-टर्न और नाटो का नया जोश

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प पहले नाटो से अमेरिका को अलग करने की बात करते थे, लेकिन हाल ही में उनका रुख बदल गया। 14 जुलाई को ट्रम्प ने नाटो के साथ सहयोग की बात कही और पैट्रियट मिसाइल डिफेंस सिस्टम के लिए नाटो के खर्च को समर्थन दिया। इससे नाटो को नया जोश मिला है। ट्रम्प की टैरिफ नीति अब नाटो के लिए दोहरे लाभ का सौदा बन गई है: एक, अमेरिका नाटो में बना रहेगा, और दो, रूस को कमजोर करने का लक्ष्य हासिल होगा। 

भारत और चीन पर निशाना, लेकिन यूरोप की मुश्किलें

नाटो और अमेरिका का तर्क है कि भारत और चीन रूस से भारी मात्रा में कच्चा तेल, गैस और कोयला खरीद रहे हैं, जिससे रूस की युद्ध लड़ने की आर्थिक क्षमता बनी हुई है। हेलसिंकी के सेंटर फॉर रिसर्च ऑन एनर्जी एंड क्लीन एयर (CREA) के आंकड़ों के अनुसार, यूक्रेन युद्ध शुरू होने के बाद भारत ने रूस से 49 अरब यूरो (लगभग 1.5 लाख करोड़ रुपये) का कच्चा तेल खरीदा। चीन प्रतिदिन 13 करोड़ डॉलर के 20 लाख बैरल तेल खरीद रहा है। लेकिन यूरोप भी रूस पर निर्भर है। 2024 में यूरोपीय संघ ने रूस से 25.4 अरब डॉलर का तेल और गैस खरीदा, जबकि यूक्रेन को केवल 21.69 अरब डॉलर की सहायता दी। यानी यूक्रेन को दी गई मदद से ज्यादा राशि रूस को दी गई। 

नाटो की स्थापना और उद्देश्य

नाटो की स्थापना 4 अप्रैल 1949 को नॉर्थ अटलांटिक संधि के तहत हुई थी। इसका मकसद सोवियत संघ के विस्तार को रोकना और पश्चिमी यूरोप की सुरक्षा सुनिश्चित करना था। अमेरिका की अगुवाई में 12 देशों से शुरू हुआ यह संगठन अब 32 सदस्यों वाला है। रूस ने इसके जवाब में 1955 में वारसॉ संधि बनाई थी। शीत युद्ध में नाटो की सैन्य ताकत का उपयोग नहीं हुआ, लेकिन यूक्रेन युद्ध ने इसे फिर से सक्रिय कर दिया। 

टैरिफ का जोखिम और यूरोप का नुकसान

टैरिफ की धमकी से भारत और चीन पर दबाव बनाने की कोशिश हो रही है, लेकिन इसका असर यूरोप पर भी पड़ सकता है। यूरोपीय संघ के 27 में से 23 देश नाटो के सदस्य हैं। ये देश व्यापार के लिए चीन, भारत और रूस पर निर्भर हैं। टैरिफ लगने से आयात महंगा होगा, जिससे यूरोप में महंगाई बढ़ेगी और आम जनता को नुकसान होगा। साथ ही, यूरोप रूस से ऊर्जा आयात पूरी तरह रोक नहीं पाया है, जिससे उसकी अपनी रणनीति पर सवाल उठते हैं। **निष्कर्ष** नाटो और अमेरिका की टैरिफ नीति रूस को कमजोर करने की कोशिश तो है, लेकिन यह भारत और चीन जैसे देशों को निशाना बनाकर यूरोप को ही मुश्किल में डाल सकती है। रूस ने नाटो की धमकियों को अनसुना कर दिया है, और उसका आर्थिक तंत्र अभी भी टूटा नहीं है। नाटो के लिए यह सुनहरा अवसर हो सकता है, लेकिन यह तलवार यूरोप के पैरों पर भी गिर सकती है।