वॉशिंगटन। भारत के भगोड़े उद्योगपतियों नीरव मोदी और विजय माल्या की तर्ज पर एक और भारतीय मूल का नाम सुर्खियों में आ गया है। अमेरिका में सक्रिय बिजनेसमैन बंकिम ब्रह्मभट्ट पर 500 मिलियन डॉलर (करीब 4,200 करोड़ रुपये) के महाघोटाले का आरोप लगा है। नकली ग्राहकों और जाली इनवॉइस के सहारे उन्होंने दुनिया की दिग्गज कर्ज कंपनियों से मोटी लोन हथिया ली और फिर पैसे को भारत व मॉरीशस जैसे टैक्स-हेवन देशों में ट्रांसफर कर लापता हो गए। अब अमेरिकी अदालतों में उनकी गिरफ्तारी के प्रयास तेज हो चुके हैं, लेकिन ब्रह्मभट्ट की कंपनियां दिवालिया घोषित हो चुकी हैं। यह मामला अमेरिकी वित्तीय जगत में हड़कंप मचा रहा है—क्या यह भारत से निकलने वाले 'फाइनेंशियल फ्यूजिटिव्स' की नई लिस्ट में एक और नाम जोड़ देगा? ब्रह्मभट्ट की कहानी किसी हॉलीवुड थ्रिलर से कम नहीं। अमेरिका में स्थापित उनकी कंपनियां—ब्रॉडबैंड टेलीकॉम और ब्रिजवॉयस—टेलीकॉम सेक्टर में तेजी से उभरी थीं। लेकिन अंदरखाने में चल रही साजिश ने सबकुछ उजाड़ दिया। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, ब्रह्मभट्ट ने ब्लैकरॉक की प्राइवेट क्रेडिट आर्म HPS इन्वेस्टमेंट पार्टनर्स और कई अन्य प्रमुख अमेरिकी बैंकों से अरबों डॉलर की लोन ली। कैसे? नकली ग्राहकों की लिस्ट और फर्जी इनवॉइस को 'कोलैटरल' (जमानत) के तौर पर पेश करके! इन दस्तावेजों में हवा में उड़े आंकड़े भरे थे—जो कभी अस्तित्व में ही नहीं थे। लोन मिलते ही पैसा गायब! ट्रांसफर हो गया भारत और मॉरीशस के खातों में, जहां से ट्रैक करना लगभग नामुमकिन हो जाता है।
जांच एजेंसियों के अनुसार, ब्रह्मभट्ट ने इस घोटाले को इतनी सफाई से अंजाम दिया कि शुरुआत में किसी को शक भी नहीं हुआ। लेकिन जब लोन की किस्तें रुक गईं, तो पर्दा फट गया। HPS और अन्य लेंडर्स ने मुकदमा दायर किया, जिसमें साफ खुलासा हुआ कि ब्रह्मभट्ट की कंपनियों ने दिवालिया याचिका दाखिल कर दी है। अमेरिकी फेडरल कोर्ट में दायर शिकायतों में कहा गया है कि यह 'सिस्टमैटिक फ्रॉड' था, जिसमें ब्रह्मभट्ट ने जानबूझकर झूठे दावे किए। अब सवाल उठ रहा है—क्या भारत सरकार इस मामले में एक्सट्राडिशन (प्रत्यर्पण) की मांग करेगी?
या यह एक और 'इंटरनेशनल फ्यूजिटिव' बनकर रह जाएगा? यह घोटाला न सिर्फ अमेरिकी निवेशकों के लिए झटका है, बल्कि भारतीय डायस्पोरा की छवि को भी ठेस पहुंचा रहा है। विशेषज्ञों का मानना है कि ऐसे मामलों से वैश्विक स्तर पर भारतीय बिजनेसमैनों पर सख्त निगरानी बढ़ेगी। FBI और SEC जैसी एजेंसियां अब ब्रह्मभट्ट के ग्लोबल एसेट्स की तलाश में जुटी हैं। भारत में प्रवर्तन निदेशालय (ED) को भी इसकी सूचना दी गई है, क्योंकि पैसे का बड़ा हिस्सा यहां ट्रांसफर हुआ था। लोगों को सलाह दी जा रही है कि निवेश से पहले कंपनियों की बैकग्राउंड चेक करें। ब्रह्मभट्ट का केस एक सबक है—सफलता की चकाचौंध के पीछे छिपी साजिशें कब फूट पड़ें, कोई नहीं जानता। क्या ब्रह्मभट्ट को जल्द पकड़ा जाएगा? या यह कहानी भी अधर में लटक जाएगी? आने वाले दिनों में अदालती कार्रवाई पर सबकी नजरें टिकी हैं। यह मामला न सिर्फ वित्तीय अपराधों की गहराई दिखाता है, बल्कि अंतरराष्ट्रीय सहयोग की जरूरत को भी रेखांकित करता है।