अमेरिकी राष्ट्रपति ने कार्यभार ग्रहण करने के साथ ही विदेश में दी जाने वाली सभी प्रकार की अमेरिकी सहायता पर रोक लगा दी
अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने अमेरिकी सरकार की प्रमुख विदेशी सहायता एजेंसी यूएसएड को बंद करके उसे विदेश मंत्रालय में शामिल करने एलान किया है.
सोमवार को इस सहायता एजेंसी के कर्मचारियों को वॉशिंगटन हेडक्वार्टर से दूर रहने और घर पर ही रहने को कहा गया था.
विदेश मंत्री मार्को रूबियो ने पत्रकारों से कहा कि अब से वह, यूनाइटेड स्टेट एजेंसी फ़ॉर इंटरनेशनल डिवेलपमेंट (यूएसएड) के कार्यकारी प्रमुख हैं.
यह एजेंसी दुनिया भर में अरबों डॉलर की मदद बांटती है, जिनमें भारत समेत दुनिया के कई देश हैं. ऐसे में इस फ़ैसले से ज़ाहिर तौर पर इसके मार्फ़त चलने वाले स्वास्थ्य और पोषण से जुड़े कई कार्यक्रमों पर भी असर पड़ेगा.
अमेरिकी राष्ट्रपति ने एक कार्यकारी आदेश पर हस्ताक्षर कर 90 दिनों के लिए विदेश में दी जाने वाली सभी प्रकार की सहायता पर रोक लगा दी थी. ये रोक विदेश नीति की समीक्षा होने तक लागू रहेगी.
यूएसएड पूरी दुनिया में गैर सरकारी संगठनों, सहायता ग्रुपों और ग़ैर लाभकारी संस्थाओं को अरबों डॉलर की मदद देती है.
यूएसएड की स्थापना 1961 में तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति जॉन एफ़ कैनेडी ने की थी. दुनिया भर में इसके क़रीब 10,000 कर्मचारी हैं और इसका सालाना बजट क़रीब 40 अरब डॉलर है, जबकि अमेरिकी सरकार की विदेशों में सहायता पर कुल बजट 68 अरब डॉलर का है.
यूएसएड यूक्रेन, इथियोपिया, जॉर्डन, कांगो, सोमालिया, यमन, अफ़ग़ानिस्तान, बांग्लादेश, म्यांमार, नाइजीरिया, दक्षिण सूडान और सीरिया को महत्वपूर्ण सहायता प्रदान करता है.
आर्थिक और राजनीतिक संकट से जूझ रहे भारत के पड़ोसी देश बांग्लादेश में यूएसएड ने अपने सभी कामों पर तुरंत रोक लगाने की बात कही है.
तीन फ़रवरी को यूएसएड के सैकड़ों कर्मचारियों ने वॉशिंगटन डीसी में इसके हेडक्वार्टर के बाहर प्रदर्शन किया
यूएसएड के ज़रिए भारत के स्वास्थ्य, शिक्षा, पर्यावरण, स्वच्छ ऊर्जा, पानी और स्वच्छता जैसे क्षेत्रों की मदद की जाती है.
खुद यूएसएड की वेबसाइट पर भारत को दी गई मदद के बारे में जो जानकारी दी गई है उसके अनुसार, इसने पोषण, टीकाकरण, स्वच्छता, पर्यावरण, क्लीन एनर्जी, स्वास्थ्य और शिक्षा क्षेत्र में अहम भूमिका निभाई.
यूएसएड की मदद से भारत में 8 कृषि विश्वविद्यालय, 14 इंजीनियरिंग कॉलेज स्थापित किए गए हैं. इसके अलावा, देश का पहला भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान यानी आईआईटी खड़गपुर भी यूएसएड की मदद से स्थापित किया गया था.
लेकिन साल 2004 में सूनामी के दौरान भारत की तत्कालीन मनमोहन सिंह सरकार ने सशर्त विदेशी मदद लेने की नीति में बदलाव किया, जिसके बाद यूएसएड से भारत को मिलने वाली मदद में अपेक्षाकृत कमी आई.
हालांकि कोविड महामारी के बाद से भारत को मिलने वाली यूएसएड मदद में बढ़ोतरी देखी गई.
अमेरिकी सरकार के फॉरेन असिस्टेंस पोर्टल के मुताबिक़, पिछले चार सालों में भारत को 65 करोड़ डॉलर की मदद मिली. जबकि 2001 से लेकर अबतक भारत को 2.86 अरब डॉलर की मदद मिल चुकी है.
जच्चा बच्चा मृत्युदर में कमी लाने को लेकर दिल्ली में ग्लोबल कॉल टू एक्शन समिट 2015 हुई थी. इसमें यूएसएड भी साझेदार था
भारत में शिशु मृत्युदर को कम करना अभी भी चुनौतीपूर्ण बना हुआ है. अभी भी शिशु मृत्युदर 20 (प्रति 1000 जन्म में) से नीचे लाने के लिए भारत संघर्ष कर रहा है.
यूएसएड एड जच्चा बच्चा पोषण के कार्यक्रमों में सरकार के साथ मिलकर काम करता है.
धर्मेंद्र कुमार कहते हैं, "शिशु मृत्युदर धीरे-धीरे कम हुई है, लेकिन यह अभी भी 20 से ऊपर ही बनी हुई है. शिशु और मातृ मृत्युदर में कमी लाने में यूएसएड ने अहम भूमिका निभाई है."
यह समस्या पोषण से जुड़ी हुई है. कुपोषण के अलग-अलग पैमानों, जैसे शरीर का विकास नहीं हुआ, लंबाई, वज़न, प्रतिरोधक क्षमता आदि के आधार पर अभी भी बड़ी संख्या में बच्चों में कुपोषण की स्थिति है.