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Saturday, 29 March 2025

पाकिस्तान का वह गांव जहां सुन्नी-शिया समुदाय एक ही मस्जिद में पढ़ते हैं नमाज़

पाकिस्तान का वह गांव जहां सुन्नी-शिया समुदाय एक ही मस्जिद में पढ़ते हैं नमाज़
शिया धर्मगुरु सैयद मज़हर अली (दाएं), सुन्नी धर्मगुरु मौलवी गुलाब शाह (बाएं) को पीरा मस्जिद में एक-दूसरे को गले लगाते हुए

कई मुस्लिम देशों में इस्लाम की अलग-अलग शाखाओं के बीच तनाव होना आम बात है. यह सीरिया में हालिया संघर्ष के पीछे एक कारक रहा है और पाकिस्तान में सुन्नी और शिया समुदायों के बीच हिंसक झड़पें बढ़ रही हैं. लेकिन उत्तरी पाकिस्तान में ही एक गांव ऐसा भी है, जहां ये दोनों समुदाय मिल-जुलकर शांति से रहते हैं.

पाकिस्तान के उत्तरी-पश्चिमी ख़ैबर पख़्तूनख़्वा प्रांत में स्थित पीरा गांव में पैर रखते ही सबसे पहले वहां की मस्जिद दिखाई देती है. जिसकी स्टील की मीनार और उसकी छत पर लगे लाउडस्पीकर दूर से ही दिखाई देते हैं.

यह मस्जिद गांव के लिए सिर्फ एक इबादतगाह नहीं, बल्कि सौहार्द्र का प्रतीक भी है, क्योंकि यहां सुन्नी और शिया, दोनों समुदाय एक ही मस्जिद में इबादत करते हैं, जो बहुत ही दुर्लभ बात है.

जब अज़ान होती है, तो पहले एक समुदाय के लोग मस्जिद में जाकर नमाज़ पढ़ते हैं. क़रीब पंद्रह मिनट बाद, जब वे बाहर आ जाते हैं, तो दूसरा समुदाय अंदर जाकर अपनी नमाज़ अदा करता है. इस तरह, बिना किसी विवाद के, दोनों समुदाय मिल-जुलकर शांति से अपनी इबादत करते हैं.

मस्जिद में शिया धर्मगुरु सैयद मज़हर अली अब्बास बताते हैं कि इबादत का ये तरीका सौ साल पहले शुरू हुआ था. इस दौरान मस्जिद को फिर से बनाया गया, लेकिन किसी ने इस तरीके को बदलने की ज़रूरत नहीं समझी.

कागज़ों पर यह मस्जिद शिया समुदाय की संपत्ति है लेकिन दोनों समुदाय बिजली और बाकी खर्चों का मिलकर भुगतान करते हैं. मज़हर अली इस बात पर ज़ोर देते हैं कि सुन्नियों को भी यहां इबादत करने का उतना ही हक़ है जितना शियाओं को.

सुन्नी और शिया दोनों समुदाय अपने-अपने तरीके से नमाज़ पढ़ते हैं और दोनों समुदाय का अज़ान देने का तरीका भी अलग होता है.

दोनों समुदाय के बीच बिना कागज़ों में दर्ज एक समझौता यह है कि सुबह, दोपहर और शाम की अज़ान शिया समुदाय देता है, जबकि दोपहर बाद और रात की अज़ान सुन्नी समुदाय देता है.

हालांकि, रमज़ान के दौरान, सुन्नी समुदाय शियाओं से कुछ मिनट पहले रोज़ा खोलता है, इसलिए इस पवित्र महीने में वे अलग से शाम की अज़ान देते हैं.

अगर कोई व्यक्ति अपने समुदाय की नमाज़ में शामिल नहीं हो पाता, तो वो दूसरे समुदाय की नमाज़ में शामिल होकर अपने तरीके से नमाज़ पढ़ सकता है. इस तरह, दोनों समुदाय एक-दूसरे के साथ शांतिपूर्वक इबादत करते हैं.