गुजरात के भावनगर जिले में, महुवा से वरतेज स्थित इमाम कुआँ तक शिया खोजा मुस्लिम समाज की पैदल यात्रा एक अनूठा धार्मिक और आध्यात्मिक अवसर है। यह यात्रा इराक के नजफ से करबला तक इमाम हुसैन (अ.स.) के चालीसवें दिन (अरबाईन या चेहलम) की पवित्र यात्रा का अनुसरण करती है। हर साल हजारों शिया श्रद्धालु इस पैदल मार्च में शामिल होकर इमाम हुसैन (अ.स.) की शहादत को श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं।
चालीसवें का ऐतिहासिक और धार्मिक महत्व।
चालीसवां, जिसे अरबाईन या चेहलम के नाम से भी जाना जाता है, इमाम हुसैन (अ.स.) की शहादत के 40 दिन बाद मनाया जाता है। इस्लाम के इतिहास में, सन् 680 ई. में, हिजरी सन 61 के मोहर्रम महीने की 10 तारीख (आशूरा) को, पैगंबर मुहम्मद साहब (स.अ.व.) के नवासे इमाम हुसैन (अ.स.) को करबला के मैदान में यज़ीद की सेना ने शहीद कर दिया था। यह घटना शिया मुस्लिमों के लिए न्याय, सत्य और बलिदान का प्रतीक है। चालीसवां वह अवसर है जब इमाम हुसैन (अ.स.) के परिवार और अनुयायी, जो करबला युद्ध के बाद बंदी बनाए गए थे, कूफा और दमिश्क (आज का सीरिया) से मुक्त होकर करबला लौटे थे। इस दिन उन्होंने इमाम हुसैन (अ.स.) और उनके साथियों की कब्रों की ज़ियारत की थी। इस घटना की स्मृति में, शिया समाज हर साल नजफ से करबला तक लाखों श्रद्धालु पैदल यात्रा करते हैं, जो आज विश्व की सबसे बड़ी धार्मिक यात्राओं में से एक है।
महुवा से वरतेज: गुजरात की अरबाईन यात्रा
गुजरात के महुवा से भावनगर के वरतेज स्थित इमाम कुआँ तक की पैदल यात्रा इराक की अरबाईन यात्रा का स्थानीय स्वरूप है। यह यात्रा शिया खोजा मुस्लिम समाज द्वारा आयोजित की जाती है, जिसमें हजारों श्रद्धालु भाग लेते हैं। महुवा, भावनगर जिले का एक महत्वपूर्ण तालुका, खंभात की खाड़ी के तट पर स्थित है और धार्मिक व आर्थिक रूप से समृद्ध शहर है। इस यात्रा के दौरान, श्रद्धालु महुवा से वरतेज तक लगभग 90 किलोमीटर की दूरी पैदल तय करते हैं। यह यात्रा चालीसवें दिन आयोजित होती है, जो मोहर्रम के 40 दिन बाद आता है। श्रद्धालु काले वस्त्र पहनकर, झंडे और निशान लेकर, इमाम हुसैन (अ.स.) की शहादत की स्मृति में शोक गीत (नोहा) और मरसिया गाते हुए मातम करते हैं। यात्रा का अंतिम पड़ाव वरतेज में इमाम कुआँ है, जिसे शिया समाज के लिए पवित्र स्थल माना जाता है।
यात्रा की विशेषताएँ आध्यात्मिक महत्व
यह यात्रा शिया श्रद्धालुओं के लिए इमाम हुसैन (अ.स.) के बलिदान और उनके संदेश को याद करने का माध्यम है। श्रद्धालु शोक और श्रद्धा की भावना के साथ एक-दूसरे से जुड़ते हैं।
शिया खोजा समाज इस यात्रा का आयोजन अत्यंत अनुशासित ढंग से करता है। रास्ते में श्रद्धालुओं के लिए पानी, भोजन और विश्राम की सुविधाएँ उपलब्ध कराई जाती हैं।
सामाजिक सौहार्द
यह यात्रा गुजरात की स्थानीय संस्कृति और धार्मिक सौहार्द का प्रतीक है। रास्ते में अन्य समुदाय के लोग भी श्रद्धालुओं का स्वागत करते हैं और उनकी सेवा करते हैं।
शारीरिक और मानसिक शक्ति
90 किलोमीटर की पैदल यात्रा शारीरिक और मानसिक शक्ति की परीक्षा है। श्रद्धालु इसे श्रद्धा और समर्पण के प्रतीक के रूप में देखते हैं।
चालीसवें का सामाजिक और आध्यात्मिक आयाम
चालीसवां केवल शोक का अवसर नहीं है, बल्कि यह इमाम हुसैन (अ.स.) के न्याय, सत्य और मानवता के लिए संघर्ष के संदेश को याद करने का अवसर भी है। यह यात्रा शिया समाज को एकजुट करती है और समाज में एकता, भाईचारा और सेवा की भावना को बढ़ावा देती है। गुजरात में, विशेष रूप से महुवा और भावनगर जैसे क्षेत्रों में, यह यात्रा स्थानीय शिया समाज की धार्मिक पहचान को मजबूत करती है।
आधुनिक युग में यात्रा का महत्व
आज के आधुनिक युग में, जब टेक्नोलॉजी और आधुनिकता जीवन का हिस्सा बन चुकी है, तब भी यह यात्रा श्रद्धालुओं के लिए एक आध्यात्मिक अनुभव है। सोशल मीडिया और डिजिटल प्लेटफॉर्म्स के माध्यम से इस यात्रा की जानकारी विश्वभर में फैलती है, जो शिया समाज की एकता और इमाम हुसैन (अ.स.) के संदेश को और व्यापक बनाता है।
महुवा से वरतेज इमाम कुआँ तक की पैदल यात्रा शिया खोजा मुस्लिम समाज की श्रद्धा, समर्पण और एकता का प्रतीक है। इराक की नजफ से करबला तक की अरबाईन यात्रा का अनुसरण करने वाली यह यात्रा इमाम हुसैन (अ.स.) के बलिदान और मानवता के संदेश को जीवित रखती है। गुजरात के सौराष्ट्र क्षेत्र में यह यात्रा धार्मिक सौहार्द और सामाजिक एकता का उदाहरण बनी हुई है। इस यात्रा के दौरान श्रद्धालुओं का उत्साह, श्रद्धा और समर्पण सभी के लिए प्रेरणादायी है।
सज्जादअली नायाणी
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