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Saturday, 9 August 2025

अमेरिका का रूस पर चीन और भारत के जरिए दबाव बनाने की कोशिश क्यों नाकाम हुई?

अमेरिका का रूस पर चीन और भारत के जरिए दबाव बनाने की कोशिश क्यों नाकाम हुई?
अमेरिका के सेकन्ड्री  सेंग्शन की नीति और डोनल्ड ट्रंप का भारत व चीन को रूस पर दबाव बनाने के उपकरण के रूप में इस्तेमाल करने का प्रयास असफल हो गया है।

पार्सटुडे की रिपोर्ट के अनुसार, रूसी संसद की अंतर्राष्ट्रीय मामलों की समिति के प्रमुख लियोनिद स्लुत्स्की ने अपने टेलीग्राम चैनल पर लिखा: "यूरो-अटलांटिक शक्तियों द्वारा प्रतिबंधों और सेकेंड्री फ़ीसों के माध्यम से बीजिंग और नई दिल्ली को मॉस्को के खिलाफ 'दबाव के हथियार' में बदलने की कोशिश नाकाम होने वाली है। अब यह संभावना नहीं है कि विश्व का बहुमत पश्चिमी अल्पसंख्यकों के नियमों के अनुसार चले। यह एक स्पष्ट विरोधाभास होगा।

इस रूसी सांसद ने बताया कि भारत और चीन ने अमेरिका के दबाव को स्पष्ट रूप से खारिज कर दिया है। उन्होंने इस तथ्य की ओर इशारा करते हुए कि एकध्रुवीय दुनिया और पश्चिम के व्यापक प्रभुत्व का दौर समाप्त हो चुका है, कहा: न तो चीन और न ही भारत वैश्विक प्रभुत्व के दावेदारों को 'भेंट' देने के लिए तैयार हैं, और न ही वे 'अमेरिकी अपवादवाद' के लिए अपनी स्वतंत्रता और संप्रभुता का बलिदान करेंगे।"

भारत के विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने जोर देकर कहा है कि रूस के साथ संबंधों का अपना स्वतंत्र मूल्य है और इसे किसी तीसरे देश के नज़रिए से नहीं आंका जाना चाहिए। वहीं, चीन के अधिकारी भी मास्को के साथ अपने आर्थिक संबंधों में बाहरी हस्तक्षेप का विरोध करते रहे हैं और रूस के साथ संबंधों को और मजबूत करने पर जोर देते हैं।

अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रम्प ने हाल ही में भारत पर 25% शुल्क लगाने की घोषणा करते हुए दावा किया कि नई दिल्ली को रूस के साथ शांतिपूर्ण संबंध रखने और उससे ऊर्जा उत्पादों का आयात करने के कारण दंडित भी किया जाएगा। उन्होंने लिखा: वे हमेशा अपनी अधिकांश सैन्य उपकरण रूस से खरीदते रहे हैं और चीन के बाद, रूसी ऊर्जा के सबसे बड़े खरीदार हैं।

हालांकि डोनल्ड ट्रम्प ने सेकेन्ड्री फ़ीस और प्रतिबंध लगाने की धमकी दी है, भारतीय सरकारी अधिकारियों ने जोर देकर कहा है कि देश रूस से तेल खरीदना जारी रखेगा। विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रंदीर जयसवाल ने पूछे गए एक सवाल के जवाब में कहा: "हम अपने निर्णय विश्व बाजार में तेल की कीमतों और उस समय की वैश्विक परिस्थितियों के आधार पर लेते हैं। रूस भारत के आयातित तेल का एक तिहाई से अधिक आपूर्ति करता है और चीन के बाद यह रूसी ऊर्जा उत्पादों का दूसरा सबसे बड़ा आयातक है।

इस संबंध में, न्यूयॉर्क टाइम्स ने भी सूत्रों के हवाले से बताया कि डोनल्ड ट्रम्प की प्रतिबंध की धमकी के बावजूद, भारतीय अधिकारी रूस से तेल खरीदना जारी रखेंगे। रिपोर्ट के अनुसार, भारत सरकार के दो वरिष्ठ अधिकारियों ने स्पष्ट किया कि रूस के प्रति देश की नीति में कोई बदलाव नहीं हुआ है। उनमें से एक ने जोर देकर कहा कि सरकार ने तेल कंपनियों को रूस से तेल आयात कम करने का कोई निर्देश नहीं दिया है।

स्थानीय मीडिया ने बताया है कि भारतीय रिफाइनरियां पूरी क्षमता से चल रही हैं और प्रमुख भारतीय तेल कंपनियां सितंबर महीने में रूसी तेल की बड़ी खेप खरीदने के लिए बातचीत कर रही हैं। हाल के दिनों में, भारतीय रिफाइनरियों ने रूसी तेल की दो खेपें सामान्य से अधिक छूट पर खरीदी हैं, जिसके कारण देश की रिफाइनिंग क्षमता अभी पूरी तरह भरी हुई है। विशेषज्ञों के अनुसार, रूस भारत का सबसे बड़ा तेल आपूर्तिकर्ता बन गया है और अचानक कांट्रेक्ट रद्द करना व्यवाहारिक रूप से असंभव है।

न्यूयॉर्क टाइम्स ने यह भी बताया है कि ट्रम्प की धमकियाँ शायद बातचीत की रणनीति का हिस्सा हो सकती हैं, क्योंकि भारत और अमेरिका इस समय एक द्विपक्षीय व्यापार समझौते पर पहुँचने की कोशिश कर रहे हैं। ट्रंप ने शुक्रवार को घोषणा की कि वे भारत को रूस से तेल खरीदना बंद करने के लिए मजबूर करना चाहते हैं। उनके अनुसार, भारत अमेरिका के साथ व्यापार समझौते पर पहुँचने के लिए रूसी तेल का आयात रोक देगा।

इस बीच, वाशिंगटन और नई दिल्ली के बीच व्यापारिक तनाव—जो टैरिफ और रूसी तेल न खरीदने के दबाव के कारण पैदा हुआ है—के मध्य स्टीवन मिलर, व्हाइट हाउस के उप चीफ ऑफ स्टाफ और डोनाल्ड ट्रंप के सबसे प्रभावशाली सलाहकारों में से एक, ने रविवार को भारत पर आरोप लगाया कि वह मास्को से तेल खरीदकर रूस के यूक्रेन युद्ध को वित्तपोषित कर रहा है। उन्होंने कहा: "ट्रंप ने स्पष्ट रूप से कहा है कि रूस से तेल खरीदकर इस युद्ध को वित्तपोषित करना भारत के लिए अस्वीकार्य है।"

मिलर ने आगे कहा: "लोग यह जानकर हैरान होंगे कि भारत, तेल खरीदने में चीन के बराबर खड़ा है। यह एक चौंकाने वाला तथ्य है।" मिलर के ये बयान ट्रंप प्रशासन द्वारा भारत-प्रशांत क्षेत्र में अमेरिका के एक प्रमुख साझेदार के खिलाफ अब तक की सबसे कड़ी आलोचनाओं में से एक हैं।

चीन ने भी अमेरिकी दबाव को ठुकराया

वहीं, चीन ने भी अमेरिका के साथ व्यापार वार्ता के दौरान वाशिंगटन की रूसी तेल खरीद कम करने या रोकने की माँग को खारिज कर दिया है। चीनी अधिकारियों ने अमेरिका की चेतावनी के जवाब में स्पष्ट किया कि तेल की खरीद बीजिंग की घरेलू नीतियों के आधार पर होती है।

अमेरिकी वित्त मंत्री स्कॉट बेसेंट ने स्टॉकहोम में वाशिंगटन-बीजिंग के बीच दो दिवसीय वार्ता के अंत में कहा कि उन्होंने चीनी अधिकारियों को प्रतिबंधित रूसी और ईरानी तेल खरीदने के परिणामों के बारे में चेतावनी दी, जिसका जवाब चीन ने पहले ही दे दिया था।

बेसेंट ने ईरान के प्रतिबंधित तेल की खरीद और रूस को 15 अरब डॉलर से अधिक मूल्य के ड्यूल-यूज़ टेक्नॉलॉजी सामानों की बिक्री का जिससे मास्को की युद्ध मशीन को मजबूती मिल रही है, ज़िक्र करते हुए कहा कि उन्होंने बीजिंग को अमेरिकी नाराजगी से अवगत कराया है।

उन्होंने यह भी दावा किया कि अमेरिकी कांग्रेस में पेश एक विधेयक ट्रंप को उन देशों पर 500% तक का टैरिफ लगाने की अनुमति देगा, जो प्रतिबंधित रूसी तेल खरीदते हैं। यह विधेयक अमेरिकी सहयोगियों को भी ऊर्जा बिक्री के जरिए रूस की आय काटने के लिए ऐसे ही कदम उठाने के लिए प्रोत्साहित करेगा।

ट्रम्प ने रूस को 10 दिन का अल्टीमेटम दिया, 100% टैरिफ की धमकी

अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप ने सोमवार, 28 जुलाई को यूक्रेन के साथ समझौता करने और युद्ध समाप्त करने के लिए रूस को दी गई 50 दिनों की समयसीमा को घटाकर मात्र 10 दिन कर दिया। 29 जुलाई को उन्होंने चेतावनी दी कि यदि रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन 10 दिनों के भीतर युद्ध को समाप्त नहीं करते हैं, तो रूसी तेल के खरीदारों पर 100% द्वितीयक टैरिफ लगाया जाएगा। अमेरिकी वित्त मंत्री स्कॉट बेसेंट ने कहा: "मेरा मानना है कि जो लोग प्रतिबंधित रूसी तेल खरीद रहे हैं, उन्हें इन टैरिफ के लिए तैयार रहना चाहिए।"

चीन-भारत ने अमेरिकी दबाव को ठुकराया

बेसेंट के अनुसार, चीनी अधिकारियों ने पहले ही स्पष्ट कर दिया है कि "चीन एक स्वतंत्र देश है जिसकी अपनी ऊर्जा जरूरतें हैं, और तेल खरीद उसकी घरेलू नीतियों के आधार पर होगी।" चीन प्रतिदिन लगभग 20 लाख बैरल तेल खरीदकर रूस का सबसे बड़ा ग्राहक बना हुआ है, जबकि भारत और तुर्की क्रमशः दूसरे और तीसरे स्थान पर हैं।

रूस ने एशिया पर ध्यान केंद्रित किया

पश्चिम के व्यापक प्रतिबंधों के बीच, मास्को अपने मित्र देशों—खासकर चीन और भारत—के साथ संबंध मजबूत करने की कोशिश कर रहा है। रूस ने वित्तीय, बैंकिंग और आर्थिक क्षेत्रों में लगाए गए पश्चिमी प्रतिबंधों का मुकाबला करने के लिए एशियाई देशों, विशेष रूप से चीन और भारत (जो दोनों विश्व की तेजी से उभरती अर्थव्यवस्थाएँ हैं), के साथ संबंध बढ़ाने का अभियान शुरू किया है। पश्चिम द्वारा रूस के खिलाफ नए समन्वित प्रतिबंधों का उद्देश्य रूस और उसकी अर्थव्यवस्था को पूरी तरह तोड़ना है।

चीन-भारत ने तटस्थ रुख अपनाया

पश्चिमी गुट के विपरीत, चीन और भारत ने यूक्रेन युद्ध पर संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद और महासभा में प्रस्तावों के मतदान में मतदान से परहेज किया है, जिससे इस मुद्दे पर उनकी तटस्थता स्पष्ट होती है। वर्तमान में भी, पश्चिम के दबाव के बावजूद, भारत और चीन रूस के साथ अपने आर्थिक, व्यापारिक, ऊर्जा और यहाँ तक कि सैन्य-हथियार संबंधों को जारी रखने के इच्छुक हैं। पश्चिमी नेताओं द्वारा बार-बार रूस के खिलाफ प्रतिबंधों में शामिल होने के अनुरोध के बावजूद, बीजिंग और नई दिल्ली ने इस माँग को ठुकरा दिया है।

डॉलर के विकल्प की तलाश

वास्तव में, पश्चिम की इच्छा के विपरीत, चीन और भारत ने रूस के साथ अपने संबंधों—खासकर ऊर्जा क्षेत्र में—को काफी विस्तारित कर लिया है। अमेरिकी दबाव के कारण रूस के साथ लेनदेन पर और अधिक प्रतिबंध लगाने के लिए, चीन और भारत लंबे समय से राष्ट्रीय मुद्राओं (युआन, रुपया और रूबल) का उपयोग करके आपसी आर्थिक, व्यापारिक और सैन्य लेनदेन के नए तरीकों की तलाश कर रहे हैं। (AK)