लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी द्वारा चुनाव आयोग पर लगाए गए वोट चोरी के गंभीर आरोपों ने भारतीय राजनीति में तूफान खड़ा कर दिया है। इन आरोपों पर केंद्रीय मंत्री और लोक जनशक्ति पार्टी (एलजेपी) के नेता चिराग पासवान की तीखी प्रतिक्रिया ने न केवल सत्ताधारी गठबंधन की भूमिका पर सवाल उठाए हैं, बल्कि यह संदेह भी गहरा कर दिया है कि क्या चुनाव आयोग की निष्पक्षता और पारदर्शिता वाकई में संदिग्ध है।
राहुल गांधी के आरोप: वोट चोरी का दावा
राहुल गांधी ने 7 अगस्त 2025 को एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में दावा किया कि 2024 के लोकसभा चुनावों में चुनाव आयोग ने भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के पक्ष में वोट चोरी की। उन्होंने कर्नाटक के महादेवपुरा विधानसभा क्षेत्र में 1,00,250 फर्जी वोटों का उदाहरण देते हुए कहा कि ऐसी गड़बड़ियां देश के कई निर्वाचन क्षेत्रों में हुईं। गांधी ने इसे "लोकतंत्र पर हमला" और "संविधान के साथ विश्वासघात" करार दिया, साथ ही चेतावनी दी कि दोषियों को सजा मिलेगी।
चिराग पासवान का पलटवार: बचाव या लीपापोती?
चिराग पासवान ने राहुल गांधी के आरोपों को "बेबुनियाद" और "निराशा से उपजा प्रलाप" बताते हुए तीखा जवाब दिया। उन्होंने कहा, "राहुल गांधी कर्नाटक का उदाहरण दे रहे हैं, जहां उनकी ही पार्टी की सरकार है। अगर वहां वोट चोरी हुई, तो क्या उनकी सरकार को बर्खास्त नहीं करना चाहिए?" पासवान ने यह भी मांग की कि अगर विपक्ष के पास सबूत हैं, तो उन्हें चुनाव आयोग के सामने पेश करना चाहिए। लेकिन उनकी यह त्वरित और आक्रामक प्रतिक्रिया ने सवाल खड़े किए हैं कि क्या लोक जनशक्ति पार्टी सत्ताधारी गठबंधन के इशारे पर आयोग का बचाव कर रही है।
चुनाव आयोग की चुप्पी और सत्ताधारी दल का समर्थन
चुनाव आयोग ने राहुल गांधी के आरोपों को "गैर-जिम्मेदाराना" बताते हुए खारिज कर दिया और कहा कि अगर उनके पास सबूत हैं, तो शपथपत्र के साथ पेश करें, वरना माफी मांगें। आयोग का दावा है कि 2024 के चुनावों में मतदाता सूची तैयार करने की प्रक्रिया पूरी तरह पारदर्शी थी, और कांग्रेस ने उस दौरान कोई शिकायत दर्ज नहीं की। लेकिन आयोग की यह सफाई और सत्ताधारी बीजेपी व उसके सहयोगियों का तत्काल बचाव में उतरना कई सवाल उठाता है। बीजेपी नेताओं जैसे रविशंकर प्रसाद और संबित पात्रा ने भी गांधी के आरोपों को "संवैधानिक संस्थाओं पर हमला" बताया, जिससे यह संदेह और गहरा गया कि क्या सत्ताधारी गठबंधन कुछ छिपाने की कोशिश कर रहा है।
लोक जनशक्ति पार्टी पर संदेह
चिराग पासवान की प्रतिक्रिया ने लोक जनशक्ति पार्टी की भूमिका पर भी सवाल खड़े किए हैं। बिहार में एनडीए के महत्वपूर्ण सहयोगी के रूप में एलजेपी की स्थिति और पासवान का आयोग के पक्ष में खुलकर बोलना यह सुझाव देता है कि उनकी पार्टी सत्ताधारी गठबंधन के साथ अपनी स्थिति मजबूत करने में जुटी है। हालांकि, वोट चोरी में एलजेपी की प्रत्यक्ष संलिप्तता का कोई ठोस सबूत नहीं है, लेकिन उनकी तीखी प्रतिक्रिया और सत्ताधारी दल के साथ एकजुटता ने विपक्ष को यह कहने का मौका दिया है कि कुछ न कुछ गड़बड़ जरूर है।
बिहार में मतदाता सूची पर विवाद
राहुल गांधी के आरोपों ने बिहार में चल रही विशेष गहन संशोधन (एसआईआर) प्रक्रिया को भी कटघरे में खड़ा किया है। विपक्ष का दावा है कि इस प्रक्रिया के तहत मतदाता सूची में बड़े पैमाने पर हेरफेर किया जा रहा है। आयोग ने बताया कि बिहार में 7.23 करोड़ मतदाता पंजीकरण फॉर्म प्राप्त हुए, जिनमें 35 लाख प्रवासी या गैर-लोकेटेड मतदाता, 22 लाख मृत मतदाता और 7 लाख डुप्लिकेट पंजीकरण शामिल हैं। विपक्ष इसे संदिग्ध मान रहा है, जबकि आयोग इसे मतदाता सूची को स्वच्छ करने की सामान्य प्रक्रिया बता रहा है। यह विवाद चुनाव आयोग की निष्पक्षता पर और सवाल उठाता है।
क्या है असल सच्चाई?
चुनाव आयोग की निष्पक्षता पर राहुल गांधी के आरोप और चिराग पासवान का त्वरित जवाब भारतीय लोकतंत्र के लिए गंभीर सवाल खड़े करते हैं। सत्ताधारी गठबंधन और उनके सहयोगी दलों का आयोग के बचाव में खुलकर सामने आना यह संदेह पैदा करता है कि क्या वाकई में कुछ गड़बड़ है। अगर मतदाता सूची में हेरफेर या वोट चोरी की बात सच है, तो यह लोकतंत्र की नींव को कमजोर करने वाला कदम है। दूसरी ओर, अगर ये आरोप निराधार हैं, तो विपक्ष पर संवैधानिक संस्थाओं को बदनाम करने का इल्जाम लग सकता है। इस विवाद ने एक बार फिर चुनावी प्रक्रिया की पारदर्शिता और विश्वसनीयता पर बहस को हवा दी है। क्या चिराग पासवान और सत्ताधारी गठबंधन सच्चाई को दबाने की कोशिश कर रहे हैं, या विपक्ष बेवजह हंगामा खड़ा कर रहा है? इसका जवाब केवल ठोस सबूत और निष्पक्ष जांच से ही मिल सकता है।