बिहार की राजनीति एक बार फिर उथल-पुथल के दौर से गुजर रही है, और 2025 के विधानसभा चुनाव में हवा साफ बदलाव की ओर बहती दिख रही है। राष्ट्रीय लोकतांत्रिक गठबंधन (NDA) और महागठबंधन (INDIA ब्लॉक) के बीच कड़ा मुकाबला तो है, लेकिन जनता में NDA से बढ़ती नाराजगी और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के लंबे राजनीतिक सफर के अंतिम पड़ाव की आहट इसे और रोचक बना रही है।
इस बार का चुनाव नीतीश के 'सुशासन' के दौर के अंत की ओर इशारा करता है, जहां NDA को हार का सामना करना पड़ सकता है, और बिहार की जनता नई दिशा तलाश रही है।
2025 का बिहार चुनाव, जो नवंबर के पहले और दूसरे चरण में 6 और 11 तारीख को होने जा रहे हैं, 243 सीटों पर दांव पर लगा है। NDA ने अपनी सीट बंटवारा रणनीति के साथ नीतीश को सीएम फेस घोषित किया, लेकिन जनता में एंटी-इनकंबेंसी की लहर साफ दिख रही है। लंबे समय से सत्ता में रहने के बावजूद, पलायन, बेरोजगारी और अपराध जैसे मुद्दों ने लोगों को NDA से दूर कर दिया है।
दूसरी ओर, महागठबंधन युवाओं और सामाजिक न्याय के एजेंडे पर जोर दे रहा है, जो जनता के बीच उम्मीद की किरण बन रहा है। नीतीश कुमार का राजनीतिक सफर, जो 2005 से लगातार सत्ता की कुर्सी पर काबिज रहा, इस बार अंतिम मोड़ पर नजर आ रहा है। उनकी उम्र और स्वास्थ्य संबंधी चिंताओं के बीच, राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि यह चुनाव उनके करियर का आखिरी अध्याय हो सकता है। जनता में उनकी छवि, जो कभी 'सुशासन बाबू' के रूप में चमकती थी, अब फीकी पड़ती दिख रही है।
वहीं, महागठबंधन के तेजस्वी यादव युवा वोटरों के बीच लोकप्रियता हासिल कर रहे हैं, जो बदलाव की मांग को बल दे रहे हैं। NDA और महागठबंधन के बीच आंतरिक मतभेद भी साफ हैं। NDA में नीतीश और भाजपा के बीच तनाव की खबरें हैं, जबकि महागठबंधन में सीट बंटवारे पर सहमति बनाना चुनौतीपूर्ण रहा है। लेकिन जनता का झुकाव अब साफ तौर पर NDA से हटकर दिख रहा है।
प्राशांत किशोर की जन सुराज पार्टी भी तीसरे विकल्प के रूप में उभर रही है, जो NDA की कमजोरी को और बढ़ा रही है। बिहार की सड़कों पर गूंज रही आवाजें बताती हैं कि लोग नीतीश के शासन से थक चुके हैं और बदलाव के लिए तैयार हैं। यह चुनाव जातिगत समीकरणों और सामाजिक मुद्दों पर टिका है, जहां महागठबंधन की रणनीति ओबीसी, ईबीसी और मुस्लिम-यादव वोटों पर केंद्रित है। अगर NDA को हार का सामना करना पड़ा, तो यह नीतीश कुमार के राजनीतिक जीवन का अंतिम पड़ाव साबित हो सकता है। बिहार की जनता अब नई उम्मीदों और नए चेहरों की ओर देख रही है, और नवंबर को आने वाले नतीजे इस बदलाव की मुहर लगा सकते हैं। क्या बिहार एक नए युग की ओर बढ़ेगा? इसका जवाब वक्त ही देगा।