दुनिया की महाशक्ति अमेरिका अपनी विदेश नीति में हथियारों को एक शक्तिशाली हथियार के रूप में इस्तेमाल करता रहा है। लेकिन हाल के घटनाक्रमों ने एक सवाल खड़ा कर दिया है: क्या अमेरिका युद्धों को लंबा खींचकर अपनी अर्थव्यवस्था को चमकाने का खेल खेल रहा है? एक तरफ, इजरायल को अरबों डॉलर के हथियारों का "तोड़फा" दिया जा रहा है, तो दूसरी तरफ यूक्रेन को सैन्य सहायता के नाम पर अमेरिकी हथियार उद्योग से वसूली हो रही है। और इस सबका मूल कारण? रूस-यूक्रेन युद्ध का लंबा खिंचना, जो अमेरिकी हथियार सप्लाई को लगातार जारी रखता है और अर्थव्यवस्था को तरबतर करता है। 2025 में, अमेरिका ने इजरायल को सैन्य सहायता के रूप में अभूतपूर्व मात्रा में हथियार प्रदान किए हैं। अप्रैल 2024 में पारित $95 अरब के विदेशी सहायता पैकेज में इजरायल को $26 अरब की सैन्य मदद शामिल थी, जिसमें मिसाइल डिफेंस सिस्टम, बम और अन्य उपकरण शामिल हैं। मई 2025 तक, अमेरिका ने इजरायल को 90,000 टन हथियार और उपकरण 800 विमानों और 140 जहाजों के जरिए डिलीवर किए। फरवरी 2025 में राष्ट्रपति ट्रंप ने $3 अरब के हथियार बिक्री को मंजूरी दी, जिसमें 35,500 एमके-84 और बीएलयू-117 बम तथा 4,000 प्रीडेटर वारहेड्स शामिल थे। अगस्त 2024 में $20 अरब की एक और डील हुई, जिसमें कनाडाई निर्मित म्यूनिशन भी था। ये हथियार इजरायल की गाजा और लेबनान में चल रही जंग में इस्तेमाल हो रहे हैं, जहां अमेरिका ने इजरायल को "आयरनक्लैड" समर्थन का वादा किया है। दूसरी ओर, यूक्रेन को अमेरिका से मिली सहायता का एक बड़ा हिस्सा अमेरिकी हथियार उद्योग को ही फायदा पहुंचा रहा है। फरवरी 2022 से लेकर अब तक, अमेरिका ने यूक्रेन को $66.9 अरब की सैन्य सहायता दी है, जिसमें $31.7 अरब का इस्तेमाल प्रेसिडेंशियल ड्रॉडाउन अथॉरिटी (PDA) के तहत स्टॉकपाइल से हथियार भेजने में हुआ। लेकिन ये हथियार पुराने स्टॉक से भेजे जाते हैं, और फिर अमेरिका इन्हें नए उत्पादन से बदलता है – यानी यूक्रेन की सहायता अमेरिकी अर्थव्यवस्था को पुनर्जीवित करती है। $95 अरब पैकेज में $60.7 अरब यूक्रेन के लिए था, जिसमें 64% फंड अमेरिकी डिफेंस इंडस्ट्री को नई उत्पादन क्षमता बढ़ाने में लगेंगे।
लॉकहीड मार्टिन, रेथियन, बोइंग और नॉर्थ्रॉप ग्रुमैन जैसी कंपनियां इसका सबसे बड़ा फायदा उठा रही हैं। 2013-17 से 2018-22 के बीच अमेरिकी हथियार निर्यात 14% बढ़ा, और वैश्विक बाजार में उसका हिस्सा 33% से 40% हो गया। दुनिया के शीर्ष 100 हथियार उत्पादकों में आधे अमेरिकी हैं। अब सवाल उठता है: रूस-यूक्रेन युद्ध को लंबा खींचने में अमेरिका की क्या भूमिका है? विशेषज्ञों का मानना है कि यह युद्ध अमेरिकी हथियार सप्लाई को निरंतर बनाए रखता है। येल इनसाइट्स के अनुसार, यूक्रेन सहायता अमेरिकी अर्थव्यवस्था को बूस्ट देती है, नाटो को मजबूत करती है और रूसी युद्ध मशीन को कमजोर। सीएसआईएस की रिपोर्ट कहती है कि PDA से पुराने स्टॉक साफ हो जाते हैं और नए, आधुनिक हथियार बनते हैं, जो अमेरिकी डिफेंस इंडस्ट्री को युद्धकालीन स्तर पर ले जाता है।
वॉशिंगटन पोस्ट के मुताबिक, यूक्रेन युद्ध ने अमेरिकी हथियार व्यापार को वैश्विक प्रभुत्व दिलाया, जहां निर्यात 43% तक पहुंच गया। टाइम्स ऑफ इंडिया ने इसे "अमेरिकी अर्थव्यवस्था और डिफेंस इंडस्ट्री को बूस्ट" बताया। रूस अपना 40% बजट रक्षा पर खर्च कर रहा है, जबकि अमेरिका का खर्च जीडीपी का छोटा हिस्सा है, लेकिन फायदा कई गुना। यह दोहरा खेल न केवल नैतिक सवाल खड़े करता है, बल्कि वैश्विक शांति को खतरे में डालता है। इजरायल को बिना शर्त हथियार देकर अमेरिका मध्य पूर्व में तनाव बढ़ा रहा है, जबकि यूक्रेन से वसूली के नाम पर युद्ध को लंबा खींच रहा है। सच्चाई यह है कि जितना लंबा युद्ध चलेगा, उतनी ही हथियार सप्लाई चलेगी, और अमेरिकी अर्थव्यवस्था चमकती रहेगी। लेकिन क्या यह "तोड़फा" शांति का रास्ता है, या सिर्फ हथियार व्यापारियों का मुनाफा? दुनिया को सोचना होगा कि ऐसी नीतियां कब तक बर्दाश्त की जाएंगी। सच्ची कूटनीति युद्ध रोकने में होनी चाहिए, न कि उसे लंबा खींचने में।
एस,बी,नायाणी