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Thursday, 16 October 2025

पाकिस्तान और अफगानिस्तान के बीच सीमा तनाव क्यों बढ़े? नतीजों पर एक नज़र

पाकिस्तान और अफगानिस्तान के बीच सीमा तनाव क्यों बढ़े? नतीजों पर एक नज़र
पाकिस्तान और अफगानिस्तान के बीच हाल के दिनों में सीमा तनाव ने बड़े सैन्य झड़पों का रूप ले लिया है, जिसकी जड़ें ऐतिहासिक मतभेदों, आतंकवाद के आरोपों और संप्रभुता के उल्लंघन में हैं।

पाकिस्तान और अफगानिस्तान के बीच सीमा तनाव, जो इस साल की शुरुआत से चले आ रहे थे, हाल के दिनों में और भी बढ़ गए हैं और तालिबान के सत्ता में वापस आने के बाद से यह सबसे गंभीर संकटों में से एक बन गया है। पाकिस्तान, तालिबान पर पाकिस्तानी तहरीक-ए-तालिबान (TTP) जैसे आतंकी गुटों को शरण देने का आरोप लगाता है, जो पाकिस्तान में घातक हमले करते हैं। वहीं, तालिबान के अधिकारी इन आरोपों को खारिज करते हैं और पाकिस्तान पर अफगानिस्तान की संप्रभुता का उल्लंघन करने का आरोप लगाते हैं। इस संकट ने न सिर्फ द्विपक्षीय रिश्तों को प्रभावित किया है, बल्कि इसके क्षेत्रीय सुरक्षा, अर्थव्यवस्था और पलायन पर दूरगामी नतीजे हो सकते हैं।

इस तनाव की जड़ें डूरंड रेखा से जुड़ी हैं, यह वह सीमा है जो 1893 में ब्रिटेन ने खींची थी और अफगानिस्तान इसे मान्यता नहीं देता। लेकिन इस साल की शुरुआत से छिटपुट झड़पों की खबरें आ रही थीं। संकट चरम पर तब पहुंचा जब 9 अक्टूबर को काबुल और दक्षिण-पूर्वी अफगानिस्तान में हुए विस्फोटों के बाद तालिबान ने पाकिस्तान पर हवाई हमले करने का आरोप लगाया। जवाब में, 11 अक्टूबर को तालिबान के फौजियों ने पाकिस्तान की सीमा चौकियों पर हमला किया और दावा किया कि उन्होंने तीन चौकियों पर कब्जा कर लिया है और 58 पाकिस्तानी सैनिक मारे गए हैं। इसके जवाब में, पाकिस्तान ने 200 से ज्यादा तालिबान लड़ाकों के मारे जाने का दावा किया। इन झड़पों, जिनमें भारी गोलाबारी और तोपखाने का इस्तेमाल हुआ, कुनर और हेलमंद प्रांतों में हुई और इसके चलते तुरख़म जैसी अहम सीमाओं को बंद कर दिया गया। पाकिस्तानी अधिकारियों ने सीमा बंद कर दी, जिससे द्विपक्षीय व्यापार प्रभावित हुआ, क्योंकि पाकिस्तान अफगानिस्तान का मुख्य व्यापारिक साझेदार है।

इन तनावों के कई पहलू हैं। सुरक्षा के नजरिए से, इन झड़पों ने आतंकवाद के फैलने का खतरा बढ़ा दिया है। TTP ने इस मौके का फायदा उठाकर पाकिस्तान में और हमले किए हैं और यहां तक कि सीमा चौकियों पर कब्जा भी किया है। रिपोर्ट्स बताती हैं कि साल 2024 में पाकिस्तान में 10 से ज्यादा बम धमाके हुए और पाकिस्तान की आर्थिक विकास दर घटकर 2।6 प्रतिशत रह गई। दूसरी ओर, पाकिस्तान में लाखों अफगान शरणार्थी मौजूद हैं, जिनके वापस भेजे जाने पर अफगानिस्तान में मानवीय संकट पैदा हो सकता है। सीमाओं के बंद होने से सामान ले जाने वाले ट्रक रुक गए हैं और दोनों तरफ के आम लोग प्रभावित हुए हैं।

भू-राजनीतिक दृष्टि से, इस संकट ने क्षेत्रीय संबंधों को जटिल बना दिया है। भारत ने तालिबान के साथ नजदीकी संबंध बनाए हैं और अमीर खान मुत्तकी, तालिबान के विदेश मंत्री, ने अक्टूबर में भारत की यात्रा की, जिसने पाकिस्तान की चिंताएं बढ़ा दी हैं। सऊदी अरब, कतर और चीन ने अफगानिस्तान और पाकिस्तान के बीच तनाव पर चिंता जताई है और चीन ने दोनों पक्षों से संयम बरतने और बातचीत करने का आग्रह किया है। पाकिस्तान मध्यस्थता की तलाश कर रहा है, जबकि तालिबान अपनी भूमि की रक्षा करने पर अड़ा हुआ है।

इस बीच, ईरान ने दोनों देशों की क्षेत्रीय अखंडता और राष्ट्रीय संप्रभुता का पारस्परिक सम्मान करने पर जोर दिया है। एक साझा पड़ोसी के रूप में, ईरान का मानना है कि बाहरी हस्तक्षेप के बिना और बातचीत के जरिए मतभेदों का समाधान करना क्षेत्र में स्थिरता की कुंजी है। यह दृष्टिकोण तनाव को कम करने में मदद कर सकता है, क्योंकि तनाव में और वृद्धि दक्षिण एशिया में व्यापक अस्थिरता पैदा कर सकती है, जिसमें प्रवासन में वृद्धि, व्यापार में बाधा और आतंकवादी खतरे शामिल हैं जो ईरान की सीमाओं को भी प्रभावित करेंगे।

अंततः, डूरंड रेखा और आतंकवाद पर नियंत्रण जैसे मूल मुद्दों का समाधान किए बिना, ये तनाव जारी रहेंगे और इसके परिणाम न केवल दोनों देशों, बल्कि पूरे क्षेत्र को प्रभावित करेंगे। इस संकट के पूर्ण युद्ध में बदलने से रोकने के लिए तत्काल वार्ता और अंतरराष्ट्रीय मध्यस्थता आवश्यक है। (AK)