जिस देश में सिस्टम की ताकत को सबसे ऊपर माना जाता है, वहां कई बार सत्ता और प्रभाव का वहम इंसान को हकीकत से दूर ले जाता है। एक ऐसा मामला सामने आया है, जहां एक ADGP रैंक के अधिकारी की लाश छह दिन से मोर्चरी में पड़ी है। उनके परिवार में तीन-चार IAS और IPS अधिकारी हैं, उनके फूफा पूर्व DGP पंजाब रह चुके हैं, और उनकी पत्नी स्वयं एक सीनियर IAS अधिकारी हैं। फिर भी, उनकी आवाज को अनसुना किया जा रहा है।
यह स्थिति हमें सोचने पर मजबूर करती है कि अगर इतने प्रभावशाली परिवार की बात नहीं सुनी जा रही, तो आम आदमी की क्या स्थिति होगी? कई लोग यह सोचते हैं कि किसी बड़े नेता के साथ एक तस्वीर खिंचवाने या उनके करीबी होने का दावा करने से वे दुनिया बदल सकते हैं। लेकिन यह सिर्फ एक वहम है। सत्ता के गलियारों में चमचागिरी और तस्वीरों का दिखावा शायद कुछ पल का सुकून दे, लेकिन असली ताकत समाज के साथ खड़े होने में है। जब आप समाज के हक के लिए लड़ते हैं, तभी सच्चा बदलाव आता है। नेता जी के खास होने का वहम तब टूटता है, जब आप देखते हैं कि सिस्टम में कितनी खामियां हैं।
चाहे वह एक वरिष्ठ अधिकारी की अनसुनी आवाज हो या आम जनता की अनदेखी समस्याएं। समाज के साथ खड़े होने का मतलब है, हर उस इंसान की आवाज बनना, जिसे सिस्टम अनदेखा करता है। आज जरूरत है कि हम सत्ता के पीछे भागने के बजाय समाज के लिए काम करें। तस्वीरों और रसूख के भरोसे नहीं, बल्कि सच्चाई और इंसाफ के रास्ते पर चलकर ही हम वास्तविक बदलाव ला सकते हैं। वहम छोड़िए, हकीकत को अपनाइए।