स्वभाव से भारतीय जनता पार्टी को अगड़ों की पार्टी कहा जाता है, हालांकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के राज में समीकरण काफी बदला है। दूसरी तरफ, राष्ट्रीय जनता दल अध्यक्ष लालू प्रसाद यादवों को एकजुट करने के लिए जाने जाते हैं तो जनता दल यूनाईटेड के सर्वेसर्वा नीतीश कुमार कुर्मी-कोइरी को राजनीतिक ताकत दिलाने के लिए। ऐसे में, लोक जनशक्ति पार्टी के संस्थापक दिवंगत रामविलास पासवान के बेटे चिराग पासवान, जदयू से अनुसूचित-जनजाति का चेहरा लेकर निकले पूर्व मुख्यमंत्री जीतनराम मांझी और सन ऑफ मल्लाह मुकेश सहनी की तिकड़ी जिसके साथ हो, उसके लिए 2024-25 के चुनावों में राहत होगी। विपक्षी दलों को मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पटना में जुटा रहे हैं। इस बीच यह तीनों ही एनडीए से बाहर रहते हुए ही महागठबंधन के लिए मुसीबत बनते दिख रहे हैं। इन्हें एनडीए किस तरह स्वीकारती-संभालती और भुनाती है, यह मायने रखेगा।
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को बिहार विधानसभा चुनाव में चिराग पासवान जैसा जख्म किसी ने नहीं दिया। विधानसभा में तीसरे नंबर की पार्टी जदयू चिराग पासवान के कारण ही बनी। राजद ने उसे जितनी चोट नहीं दी, उतनी चिराग ने दी। भाजपा का साथ छोड़ राजद के साथ वापस लौटने की उनकी एक वजह चिराग भी थे। सबसे बड़ी वजह कहें तो भी गलत नहीं होगा। भाजपा ने अपनी बात पर कायम रहते हुए चिराग को अबतक इज्जत नहीं लौटाई, फिर भी जमीनी स्तर पर देखें तो नीतीश कुमार के खिलाफ मोर्चा खोलने वालों में वह भाजपा के भी नेताओं को पीछे छाेड़े हुए हैं। पटना लगातार आ रहे हैं और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की हर बात का जवाब दे रहे हैं। नीतीश भले ही उनका नाम नहीं लेना चाहें, लेकिन कई बार दिवंगत रामविलास पासवान से नजदीकियां जताते हुए चिराग का नाम लिए बगैर उनपर कटाक्ष कर चुके हैं। मतलब, मायने तो रख रहे चिराग। अब बारी भाजपा की है। नीतीश से दूर हुए समय बीत गया है और चुनाव अब सामने है। भाजपा अगर चिराग का सम्मान लौटाती है तो उसे रामविलास पासवान के नाम का वोट मिल सकता है।