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Tuesday, 12 November 2024

उत्तर प्रदेश में मदरसों के ये शिक्षक फिर रहे हैं मारे-मारे, कोई वेल्डिंग कर रहा है तो कोई सिलाई कढ़ाई

उत्तर प्रदेश में मदरसों के ये शिक्षक फिर रहे हैं मारे-मारे, कोई वेल्डिंग कर रहा है तो कोई सिलाई कढ़ाई
निगहत बानो का कहना है कि आठ साल से केंद्र सरकार से उन्हें मानदेय नहीं मिल रहा है.

उत्तर प्रदेश में आधुनिक शिक्षा के लिए मदरसों में रखे गए शिक्षकों का मानदेय पिछले कई सालों से रुका हुआ है. राज्य सरकार ने भी अपना हिस्सा देना बंद कर दिया है.

राज्य में ऐसे क़रीब 7442 मदरसे हैं, जिनमें 22,000 अध्यापक पढ़ा रहे थे.

इन शिक्षकों को अंग्रेज़ी, गणित, विज्ञान और हिन्दी पढ़ाने के लिए रखा गया था. ये स्कीम 1993-94 में शुरू की गई थी, जिसमें 60 फ़ीसदी ख़र्च भारत सरकार को और 40 फ़ीसदी राज्य सरकार को देना था.

यूपी के मदरसों में आधुनिक शिक्षा के लिए नियुक्त शिक्षकों के मानदेय में केंद्र सरकार का अंश 2017 से और राज्य का अंश 2022-2023 से नहीं मिल रहा है.

अब इन शिक्षकों के साथ-साथ यहाँ पढ़ने वाले बच्चों का भविष्य अधर में है. आधुनिक मदरसा शिक्षकों के सामने रोज़गार का भी संकट खड़ा हो गया है.

मदरसा शिक्षकों ने दावा किया है कि कई शिक्षकों ने पढ़ाना छोड़कर कोई दूसरा रोज़गार कर लिया है.

कुछ मदरसों की प्रबंधन समिति थोड़े पैसे देकर इन शिक्षकों का काम चला रही है ताकि बच्चों का भविष्य न ख़राब हो लेकिन ये पैसा इतना कम है कि कोई काम करने के लिए तैयार नहीं है.

कई शिक्षकों ने कहा है कि उनकी उम्र निकल गई है और अब वो और कुछ नहीं कर सकते हैं. योजना के मुताबिक़, अरबी उर्दू मदरसे में आधुनिक शिक्षा देने की बात थी ताकि बच्चे इससे महरूम ना रह जाएं.

प्रदेश के अल्पसंख्यक कल्याण मंत्री ओम प्रकाश राजभर ने बीबीसी से कहा कि सरकार इस मामले के समाधान के लिए लगातार केंद्र सरकार से बातचीत कर रही है.

आठ साल से केंद्र सरकार से उन्हें मानदेय नहीं मिल रहा है. राज्य सरकार ने भी क़रीब डेढ़ साल से अपना हिस्सा देना बंद कर दिया है.

इस मदरसे में ग़ैर मुस्लिम छात्र भी हैं. निगहत का कहना है कि मदरसे में ग़ैर मुस्लिम छात्रों को अरबी उर्दू की क्लास के दौरान अंग्रेज़ी और हिन्दी की अतिरिक्त शिक्षा दी जाती है.

गोंडा के ही कटरा बाज़ार में मदरसा मक़बूल मुस्लिम आवामी स्कूल में राबिया बानो आधुनिक शिक्षक हैं. राबिया बानो एमए तक पढ़ी हैं और 12 साल से इस मदरसे में पढ़ा रही हैं.

राबिया बानो ने बताया, "मदरसे वाले चंदा करके हज़ार-दो हज़ार महीने में दे देते हैं, लेकिन इससे गुज़ारा नहीं होता है. इस कारण मदरसे से छुट्टी मिलने के बाद सिलाई-कढ़ाई का काम करती हूं."

मोहम्मद उबैद ख़ान भी एमए बीएड हैं और इत्तेहादुल मुस्लिमीन मदरसे में पढ़ा रहे हैं.

वो कहते हैं, "अब इस काम के अलावा कोई काम नहीं कर सकता. ख़ाली वक़्त में ट्यूशन पढ़ाता हूं, लेकिन सरकार को धर्म के आधार पर भेदभाव नहीं करना चाहिए."

उबैद का कहना है, "जिस तरह महाराष्ट्र सरकार ने मानदेय बढ़ाया है, यहाँ की सरकार कम से कम बकाया ही दे दे या कहीं समायोजित कर दे."