जो बाइडन के अमेरिकी राष्ट्रपति पद का चुनाव जीतने के तीन हफ़्ते बाद 27 नवंबर, 2020 को मोसाद ने अपने अब तक के सबसे सनसनीखेज़ ऑपरेशन को अंजाम दिया था.
ईरान के सैनिक परमाणु कार्यक्रम के प्रमुख मोहसेन फ़ख़रज़ादे को तेहरान के 40 मील पूर्व में गोलियों का निशाना बनाया था. वे काले रंग की निसान टिएना गाड़ी में चल रहे थे. बुरी तरह से घायल और लहूलुहान फ़ख़रज़ादे अपनी कार से निकलकर बाहर गिर गए थे.
फ़ख़रज़ादे को तुरंत हेलिकॉप्टर से अस्पताल ले जाया गया लेकिन शाम 6 बजकर 17 मिनट पर ईरान के रक्षा मंत्रालय ने प्रेस रिलीज़ जारी करके ऐलान किया कि फ़ख़रज़ादे अब इस दुनिया में नहीं रहे.
उनको शहीद घोषित किया गया और अगले दिन ईरान के हरे, सफ़ेद और लाल धारियों वाले झंडे से लिपटे उनके ताबूत को ईरान के मुख्य पवित्र स्थानों पर ले जाया गया. हत्या के तीन दिन बाद उन्हें तेहरान में इमामज़ादा सालेह मस्जिद में दफ़ना दिया गया.
उनके जनाज़े में ईरान के सर्वोच्च नेता अयातुल्लाह अली ख़ामेनेई तो शामिल नहीं हो सके लेकिन उनके प्रतिनिधि ज़ियाद्दीन उगनपोर ने उनकी तरफ़ से शोक संदेश पढ़ा.
रक्षा मंत्री अमीर हातमी ने फ़ख़रज़ादे के ताबूत को चूमकर कहा कि 'इसका बदला लिया जाएगा.'
मोहसेन फ़ख़रज़ादे ने अपनी पूरी ज़िंदगी नेपथ्य में बिताई थी. साल 2023 में प्रकाशित पुस्तक 'टार्गेट तेहरान' में योनाह जेरेमी बॉब और इलान इवितार लिखते हैं, "उनके बारे में इतनी गोपनीयता बरती गई थी कि उनकी इक्का-दुक्का तस्वीर ही उपलब्ध थी."
"उनकी जन्मतिथि और जन्मस्थान के बारे में भी लोगों को कुछ पता नहीं था. सन 2011 में निर्वासित विपक्षी संगठन 'नेशनल काउंसिल ऑफ़ रेज़िस्टेंस ऑफ़ ईरान' ने उनकी एक तस्वीर छापी थी जिससे अंदाज़ा लगता था कि वो एक अधेड़ व्यक्ति हैं जिनके काले बाल और थोड़ी सफ़ेद होती हुई दाढ़ी थी."
इसी रिपोर्ट में कहा गया था कि फ़ख़रज़ादे का जन्म सन 1958 में क़ूम में हुआ था. वो 1979 की क्रांति के बाद इस्लामी रिवॉल्यूशनरी गार्ड कोर के सदस्य बने थे. उन्होंने तेहरान के शहीद बहिश्ती विश्वविद्यालय से भौतिक शास्त्र की डिग्री ली थी और इस्फ़हान विश्वविद्यालय से परमाणु इंजीनियरिंग में पीएचडी की थी.
फ़ख़रज़ादे ने शुरू में इमाम हुसैन विश्वविद्यालय में पढ़ाया था लेकिन साथ ही साथ वो रिवॉल्यूशनरी गार्ड में ब्रिगेडियर जनरल के पद पर भी काम कर रहे थे.
सीआईए के अनुसार, "उनकी पढ़ाने की ज़िम्मेदारी एक तरह का कवर था. उनका एक और नाम डाक्टर हसन मोहसेनी भी था."
ईरानी परमाणु कार्यक्रम के पिता'
उनकी मृत्यु के बाद ईरान के परमाणु कार्यक्रम में उनके योगदान के बारे में खुलकर बात की जाने लगी. उनको मरणोपरांत ईरान की क्रांति की हिफ़ाज़त करने के लिए 'ऑर्डर ऑफ़ नस्र' से सम्मानित किया गया था.
पहली बार उनका चित्र प्रकाशित किया गया था जिसमें उनको राष्ट्रपति हसन रूहानी से वो पुरस्कार लेते हुए दिखाया गया था.
उनकी टीम के दूसरे सदस्यों--अली अकबर सालिही (ईरान परमाणु ऊर्जा संगठन के प्रमुख) और रक्षा मंत्री हुसैन देहगानी को सार्वजनिक रूप से सम्मानित किया गया था जबकि फ़ख़रज़ादे को एक अलग कमरे में चुपचाप पुरस्कार दिया गया था जहाँ कोई मौजूद नहीं था.
लेकिन इतनी गोपनीयता रखने बावजूद फ़ख़रज़ादे को ईरान से बाहर विशेषज्ञ बहुत अच्छी तरह जानते थे. संयुक्त राष्ट्र और अंतरराष्ट्रीय परमाणु एजेंसी आईएईए की कई रिपोर्टों में उनका नाम आया था.
सन 2010 में जर्मन पत्रिका 'श्पीगल' में एक खोजी रिपोर्ट 'अ हिस्ट्री ऑफ़ ईरान्स न्यूक्लियर एंबिशंस' में उन्हें 'ईरान के ओपेनहाइमर' की संज्ञा दी गई थी. अमेरिका ने अपना पहला परमाणु बम ओपेनहाइमर की ही देख-रेख में बनाया था.
सन 2014 में रॉयटर्स ने फ़्रेडरिक डाह्ल के एक लेख 'एनिग्मैटिक ईरान मिलिट्री, मैन एट द सेंटर ऑफ़ यूएन मिलिट्री इनवेस्टीगेशन' में एक पश्चिमी राजनयिक को कहते बताया था कि "अगर कभी ईरान परमाणु हथियार बनाता है तो फ़ख़रज़ादे को ईरान के परमाणु बम का पिता कह कर पुकारा जाएगा."
रिमोट कंट्रोल मशीनगन से हत्या
फ़ख़रज़ादे के हत्यारों को उनके पूरे कार्यक्रम, उनकी सुरक्षा व्यवस्था और जिन रास्तों से वो निकलेंगे, उसकी पूरी जानकारी थी.
रोनेन बर्गमेन और फ़रनाज़ फ़सीही ने 18 सितंबर, 2021 को न्यूयॉर्क टाइम्स में छपे अपने लेख में लिखा था, "फ़ख़रज़ादे के एक बेटे हमीद ने दावा किया था कि ईरानी ख़ुफ़िया विभाग को ये चेतावनी मिली थी कि उस दिन उनकी पिता की हत्या का प्रयास किया जाएगा. उनको घर से बाहर न निकलने की सलाह भी दी गई थी लेकिन फ़ख़रज़ादे ने अपनी सुरक्षा टीम की सलाह नहीं मानी थी."
ईरान की सुप्रीम सुरक्षा परिषद के सचिव जनरल अली शमाख़ानी ने 30 नवंबर 2020 को फ़ख़रज़ादे के अंतिम संस्कार के मौके़ पर कहा था, "फ़ख़रज़ादे को एक रिमोट कंट्रोल उपग्रह से जुड़ी हुई मशीनगन से मारा गया था."
इसराइल के ख़ुफ़िया सूत्रों ने 'टार्गेट तेहरान' के लेखकों से पुष्टि की थी कि ये कोई साइंस फ़िक्शन नहीं था और इस हत्या में वाकई रिमोट कंट्रोल बंदूक का इस्तेमाल किया गया था.
फ़ख़रज़ादे पर बारीक़ नज़र
बाद में पता चला कि हथियार को टुकड़ों में ईरान के अंदर लाकर गुप्त रूप से एसेंबल किया गया था. इस काम को क़रीब बीस लोगों की टीम ने आठ महीनों में अंजाम दिया था. उन्होंने फ़ख़रज़ादे के एक-एक क़दम पर नज़र रखी थी.
उन पर किस हद तक नज़र रखी जा रही थी उसके बारे में एक एजेंट ने बताया था, "हम उस शख़्स के साथ साँस लेते थे, उसके साथ जागते थे, उसके साथ सोते थे. अगर वो आफ़्टर शेव लगाता था तो उसकी महक तक हमारे पास पहुंचती थी." (टार्गेट तेहरान, पृष्ठ 193)
फ़ख़रज़ादे के अंतिम संस्कार के एक हफ़्ते बाद रिवॉल्यूशनरी गार्ड्स के उप कमांडर रियर एडमिरल अली फ़दावी ने बताया था, "फ़ख़रज़ादे आबसार्द जाते समय अपनी कार ख़ुद चला रहे थे. उनकी पत्नी उनके बगल में बैठी हुई थीं और उनके अंगरक्षक दूसरी कारों में उनके आगे और पीछे चल रहे थे."
पिकअप पर रखा गया था मशीनगन को
ईरान की अर्द्ध -सरकारी समाचार एजेंसी तस्नीम न्यूज़ में छपे लेख 'एआई पावर्ड वेपन यूज़्ड इन असासिनेशन ऑफ़ ईरानियन साइंटिस्ट' में अली फ़दावी को कहते बताया गया, "मोसाद के लिए काम कर रहे ईरानी एजेंटों ने नीले रंग के निसान ज़िमयाद पिकअप को इमाम ख़ोमैनी चौक पर पार्क कर रखा था जो मुख्य हाइवे को आबसार्द से जोड़ता था."
"पिकअप के पिछले हिस्से पर 7.62 मिलीमीटर की अमेरिका में बनी एम240सी मशीन गन छिपी हुई थी जिसको हज़ारों मील दूर बैठे हुए चेहरे को पहचानने वाली तकनीक से रिमोट कंट्रोल से चलाया जा सकता था."
वहाँ एक और कार पार्क की गई थी और ऐसा लग रहा था कि वो ख़राब हो गई है लेकिन उसमें भी कैमरे लगे हुए थे और उसने फ़ख़रज़ादे के उस स्थान पर पहुंचने से तीन-चौथाई मील पहले ही तस्वीर खींचकर इस बात की पुष्टि की थी कि कार में फ़ख़रज़ादे ही बैठे हैं.
तेरह राउंड फ़ायरिंग के बाद मशीनगन ख़ुद हुई नष्ट
रियर एडमिरल अली फ़दावी ने आगे बताया, "जैसे ही कार शहर की तरफ़ बढ़ी फ़ख़रज़ादे की कार दूर से दिखाई देने लगी. कमांड मिलते ही मशीनगन से कुल तेरह राउंड फ़ायर हुए. इसके बाद मशीनगन अपने-आप फट गई और उस ट्रक को भी उड़ा दिया गया जिसमें उसे रखा गया था."
"उस मशीनगन ने फ़ख़रज़ादे के चेहरे को ही निशाना बनाया. निशाना इतना सटीक था कि उनकी बगल में सिर्फ़ 25 सेंटीमीटर की दूरी पर बैठी हुई उनकी पत्नी को कोई चोट नहीं लगी."
मशहूर पत्रकार जेक वॉलिस साइमंस ने 'जुइश क्रॉनिकल' में छपे अपने लेख 'ट्रुथ बिहाइंड किलिंग ऑफ़ ईरान साइंटिस्ट' में इस विवरण की पुष्टि की. फ़ख़रज़ादे के निजी अंगरक्षक को भी चार गोलियाँ लगीं क्योंकि वो अपने बॉस को बचाने के लिए उन पर कूद पड़ा था. इस अंगरक्षक का नाम था हामेद असग़री.