भाजपा ने वक्फ बोर्ड संशोधन विधेयक को पास कराकर एक तीर से कई निशाने साधे हैं। यह कदम न केवल उसकी रणनीति का हिस्सा है, बल्कि एनडीए के सहयोगियों—जयंत चौधरी, नीतीश कुमार, चंद्रबाबू नायडू और चिराग पासवान—के लिए राजनीतिक ताबूत का कील साबित हो सकता है। ठंडे कलेजे से खेला गया यह दांव इन नेताओं को मुस्लिम मतदाताओं से दूर कर गया, जिसका असर आने वाले चुनावों में साफ दिखेगा।
बिहार में मुस्लिम वोटर अब नीतीश और चिराग से मुंह मोड़ सकते हैं। तेजस्वी यादव और कांग्रेस इस मौके को भुनाने के लिए तैयार हैं, तो MIM भी अपनी पैठ बढ़ा सकती है। भाजपा भले ही प्रशांत किशोर के जरिए बिहार में अपने बल पर सरकार बनाने का सपना देख रही हो, लेकिन यह कोशिश नाकाम रहने की राह पर है। उधर, उत्तर प्रदेश में जयंत चौधरी का आधार खिसक चुका है—मुस्लिम समुदाय के भरोसे के बिना उनकी सियासत अब हवा में तलवार की तरह लटक रही है। नायडू के लिए भी यह विधेयक संन्यास की घंटी बन सकता है, क्योंकि उनका जनाधार पहले ही कमजोर हो चुका है।
भाजपा का यह दांव धारदार है—सहयोगियों को कमजोर कर खुद को मजबूत करने की चाल। लेकिन क्या यह जोखिम उसकी अपनी जमीन भी हिला देगा? समय बताएगा, पर फिलहाल सहयोगी दलों की सियासी कब्र खुद चुकी है।