मुंबई की विशेष एनआईए अदालत ने 2008 के मालेगांव बम विस्फोट मामले में साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर, लेफ्टिनेंट कर्नल प्रसाद पुरोहित सहित सभी सात आरोपियों को सबूतों के अभाव में बरी कर दिया। 29 सितंबर 2008 को मालेगांव में रमजान के महीने और नवरात्रि से ठीक पहले हुए इस विस्फोट में छह लोगों की मौत हुई थी और 100 से अधिक लोग घायल हुए थे। एआईएमआईएम प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने इस फैसले पर गहरी निराशा जताते हुए केंद्र और महाराष्ट्र सरकार पर दोहरा मापदंड अपनाने का आरोप लगाया। उन्होंने कहा, "मालेगांव बम विस्फोट मामले की जांच में भारी लापरवाही हुई। जिस तरह सरकार 2006 के मुंबई ट्रेन ब्लास्ट मामले में हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट गई थी, क्या वह इस मामले में भी अपील करेगी?" ओवैसी ने सवाल उठाया कि एनआईए की चार्जशीट में मिलिट्री ग्रेड आरडीएक्स के इस्तेमाल की बात कही गई थी, लेकिन यह आरडीएक्स कहां से आया, इसका जवाब नहीं मिला। उन्होंने 2006 और 2008 के मालेगांव विस्फोटों, समझौता एक्सप्रेस, मक्का मस्जिद और मुंबई ट्रेन ब्लास्ट जैसे मामलों में दोषियों के खुले घूमने पर सवाल उठाए। ओवैसी ने पूछा, "इन हमलों के असली गुनहगार कौन हैं? क्या सरकार इस फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील करेगी या दोहरा रवैया अपनाएगी?" उन्होंने 2016 में तत्कालीन विशेष अभियोजक रोहिणी सालियान के दावे का हवाला दिया, जिन्होंने कहा था कि एनआईए ने उनसे आरोपियों के प्रति नरम रुख अपनाने को कहा था। ओवैसी ने यह भी याद दिलाया कि 2017 में एनआईए ने साध्वी प्रज्ञा को क्लीन चिट देने की कोशिश की थी, जो बाद में 2019 में बीजेपी सांसद बनीं। कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि अभियोजन पक्ष यह साबित नहीं कर पाया कि विस्फोट में इस्तेमाल बाइक साध्वी प्रज्ञा की थी या कर्नल पुरोहित ने आरडीएक्स की आपूर्ति की थी। 323 गवाहों में से 34 अपने बयान से पलट गए, और चार्जशीट में कई विसंगतियां पाई गईं। ओवैसी ने मांग की कि सरकार इस फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील करे और पीड़ितों को न्याय दिलाने के लिए जवाबदेही तय करे।
मालेगांव बम विस्फोट फैसला: ओवैसी का सवाल- 'क्या सरकार सुप्रीम कोर्ट में अपील करेगी?'