पिछले चार वर्षों में भारत के सरकारी बैंकों ने 4.48 लाख करोड़ रुपये के गैर-निष्पादित परिसंपत्तियों (NPA) को बट्टे खाते में डाला है, जिसे केंद्र सरकार ने संसद में साझा किया। इस सूची में भारतीय स्टेट बैंक (SBI) 80,197 करोड़ रुपये के लोन बट्टे खाते में डालकर शीर्ष पर है। इसके बाद यूनियन बैंक ऑफ इंडिया ने 68,557 करोड़ रुपये और पंजाब नेशनल बैंक ने 65,366 करोड़ रुपये की राशि बट्टे खाते में डाली, जिससे वे क्रमशः दूसरे और तीसरे स्थान पर हैं। बट्टे खाते में डालने का अर्थ है कि बैंक उन लोनों को वसूलने की उम्मीद छोड़ चुके हैं, जो डिफॉल्ट हो चुके हैं। यह प्रक्रिया बैंकों को अपने खातों को व्यवस्थित करने और वित्तीय स्थिति को मजबूत करने में मदद करती है, लेकिन यह बड़े पैमाने पर आर्थिक नुकसान को भी दर्शाता है। विशेष रूप से, बड़े उद्योगपतियों और कॉर्पोरेट्स को दिए गए लोनों का बड़ा हिस्सा इन एनपीए में शामिल है, जिसने कई सवाल खड़े किए हैं। विपक्षी दलों और आलोचकों का कहना है कि इतनी बड़ी राशि का राइट-ऑफ आम नागरिकों, जैसे किसानों या छोटे व्यापारियों के लिए नहीं, बल्कि बड़े कॉर्पोरेट्स के लिए किया गया है। यह मुद्दा संसद और सोशल मीडिया पर गर्म बहस का विषय बना हुआ है, जहां सरकार से इसकी पारदर्शिता और जवाबदेही पर सवाल उठ रहे हैं। हालांकि, सरकार और बैंकिंग क्षेत्र के विशेषज्ञों का तर्क है कि एनपीए को बट्टे खाते में डालना एक सामान्य बैंकिंग प्रक्रिया है, जो बैंकों को नए लोन देने और अर्थव्यवस्था को गति देने में सक्षम बनाती है। फिर भी, इस प्रक्रिया में बड़े कॉर्पोरेट्स को लाभ पहुंचाने के आरोपों ने इसे विवादास्पद बना दिया है। यह स्थिति भारतीय बैंकिंग क्षेत्र के सामने आने वाली चुनौतियों को उजागर करती है, जहां एनपीए का प्रबंधन और लोन वितरण की नीतियों पर अधिक पारदर्शिता और सुधार की मांग बढ़ रही है।
चार साल में सरकारी बैंकों ने 4.48 लाख करोड़ रुपये के लोन बट्टे खाते में डाले, SBI सबसे आगे