नई दिल्ली, 11 अगस्त 2025: इंडिया गठबंधन के 300 से अधिक सांसदों ने आज संसद भवन के मकर द्वार से चुनाव आयोग के कार्यालय (निर्वाचन सदन) तक मार्च निकालने की कोशिश की, लेकिन दिल्ली पुलिस ने इसे रोक दिया। यह मार्च बिहार में मतदाता सूची के विशेष गहन संशोधन (SIR) और 2024 के लोकसभा चुनावों में कथित "वोट चोरी" के विरोध में था। मार्च का नेतृत्व कांग्रेस नेता राहुल गांधी कर रहे थे, जिसमें सपा प्रमुख अखिलेश यादव, मल्लिकार्जुन खरगे, अभिषेक बनर्जी जैसे प्रमुख नेता शामिल थे। पुलिस की रोकटोक के बाद अखिलेश यादव ने बैरिकेड्स पर चढ़कर और धरने पर बैठकर विरोध जताया।
मार्च का उद्देश्य और आरोप इंडिया गठबंधन का आरोप है कि बिहार में मतदाता सूची संशोधन के नाम पर लाखों वैध मतदाताओं, खासकर अल्पसंख्यक और विपक्षी गढ़ों के लोगों, को हटाया जा रहा है। राहुल गांधी ने कर्नाटक के महादेवपुरा विधानसभा क्षेत्र का उदाहरण देते हुए दावा किया कि 2024 के लोकसभा चुनाव में 1 लाख से अधिक वोटों की चोरी हुई। उन्होंने कहा, "चुनाव आयोग डिजिटल मतदाता सूची जारी करे ताकि लोग और पार्टियां इसकी जांच कर सकें। यह लोकतंत्र की रक्षा का सवाल है।"
विपक्ष का कहना है कि चुनाव आयोग सत्तारूढ़ भाजपा के इशारे पर काम कर रहा है। कांग्रेस नेता के.सी. वेणुगोपाल ने सवाल उठाया, "अगर चुनाव आयोग निष्पक्ष है, तो वह इलेक्ट्रॉनिक मतदाता सूची और सीसीटीवी फुटेज क्यों नहीं दे रहा?"
पुलिस की कार्रवाई और तनाव दिल्ली पुलिस ने मार्च के लिए अनुमति नहीं मिलने का हवाला देते हुए इसे ट्रांसपोर्ट भवन के पास रोक दिया। भारी बैरिकेड्स और रैपिड एक्शन फोर्स की तैनाती की गई थी।
सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने पुलिस बैरिकेड्स पर चढ़कर विरोध जताया और धरने पर बैठ गए। विपक्षी नेताओं ने इसे लोकतांत्रिक अधिकारों का हनन बताया।
चुनाव आयोग ने 30 सांसदों को दोपहर 12 बजे मिलने का समय दिया था, लेकिन मार्च के रुकने से यह मुलाकात अनिश्चित हो गई।
सवाल और सत्ताधारी पार्टी की प्रतिक्रिया इंडिया गठबंधन ने पूछा, "जब सवाल चुनाव आयोग से हैं, तो जवाब सत्ताधारी पार्टी क्यों दे रही है?" विपक्ष का दावा है कि यह संदेह पैदा करता है कि आयोग निष्पक्षता खो चुका है।
विपक्ष ने बांग्लादेश के हालात का जिक्र करते हुए चेतावनी दी, जहां चुनाव आयोग पर हमले और हिंसा की घटनाएं हुई थीं। उन्होंने पूछा, "क्या भारत का चुनाव आयोग भी उसी दिशा में जा रहा है?" हालांकि, विशेषज्ञों का मानना है कि भारत का संवैधानिक ढांचा और स्वतंत्र संस्थाएं अभी भी मजबूत हैं, लेकिन पारदर्शिता की कमी से जनता का भरोसा डगमगा सकता है।
आगे क्या? इंडिया गठबंधन ने इस मुद्दे को और तेज करने का ऐलान किया है। कांग्रेस ने बिहार में 17 अगस्त से दो सप्ताह की यात्रा शुरू करने की योजना बनाई है। साथ ही, सुप्रीम कोर्ट में बिहार SIR को लेकर दायर याचिका पर सुनवाई महत्वपूर्ण होगी। अगर विपक्ष के दावे सही साबित हुए, तो यह भारत के चुनावी तंत्र पर गंभीर सवाल उठाएगा।
निष्कर्ष यह मार्च और विरोध प्रदर्शन भारत के लोकतांत्रिक ढांचे की मजबूती और कमजोरियों को उजागर करता है। जहां विपक्ष पारदर्शिता की मांग कर रहा है, वहीं सत्ताधारी दल इसे राजनीतिक नौटंकी बता रहा है। जनता की नजर अब चुनाव आयोग और सुप्रीम कोर्ट के अगले कदमों पर है। क्या भारत का चुनावी तंत्र बांग्लादेश जैसे हालात की ओर बढ़ रहा है, या यह महज राजनीतिक रस्साकशी है? इसका जवाब आने वाला समय देगा।