ग़ज़ा में चल रहे मानवीय संकट और वैश्विक विरोध प्रदर्शनों के बीच, इज़राइली नागरिक विदेश यात्राओं के दौरान अपनी पहचान और भाषा छिपाने को मजबूर हैं। इज़राइली अखबार हाअरेट्ज़ की एक रिपोर्ट के अनुसार, ग़ज़ा युद्ध और हाल की राजनीतिक घटनाओं ने कब्ज़े वाले फिलिस्तीनी इलाकों में रहने वाले कई इज़राइलियों को अपनी पहचान छिपाने के लिए प्रेरित किया है।
हिब्रू छोड़, अंग्रेज़ी अपनाओ कई इज़राइली अब सार्वजनिक स्थानों पर हिब्रू बोलने से परहेज कर रहे हैं और इसके बजाय अंग्रेज़ी या अन्य भाषाओं का सहारा ले रहे हैं। हाअरेट्ज़ ने डेवोरा लेरख़ नाम की एक छात्रा का उदाहरण दिया, जिसने लंदन यात्रा के दौरान ग़ज़ा विरोधी प्रदर्शनों के डर से हिब्रू बोलने से बचने का फैसला किया। उसने और उसके साथी ने अंग्रेज़ी में बात की ताकि उनकी पहचान उजागर न हो। इसी तरह, स्टेफ़नी जोना, जिसके पास कनाडा की नागरिकता भी है, ने इटली और फ्रांस की यात्राओं में खुद को कनाडाई बताया। उसने "इज़राइल" या "इज़राइली" जैसे शब्दों से परहेज किया और "हमारी सरकार" या "हमारे लोग" जैसे अस्पष्ट शब्दों का इस्तेमाल किया।
ग़ज़ा संकट और वैश्विक नाराज़गी पार्स टुडे
की रिपोर्ट के अनुसार, ग़ज़ा में भुखमरी और मानवीय संकट की तस्वीरें, जैसे भूखे बच्चों की कतारें, ने वैश्विक समुदाय में इज़राइल के प्रति नाराज़गी बढ़ा दी है। इस साल की शुरुआत में ईरान के साथ तनाव, इज़राइल के हवाई क्षेत्र का बंद होना, और ग़ज़ा में अकाल की व्यापक मीडिया कवरेज ने इस प्रवृत्ति को और तेज किया है। अंतरराष्ट्रीय समुदाय ज़ायोनी शासन को इस संकट का जिम्मेदार मानता है, जिसके चलते इज़राइलियों को विदेशों में असुरक्षा और आलोचना का सामना करना पड़ रहा है।
यात्रा योजनाओं पर असर हाअरेट्ज़
द्वारा उद्धृत "इज़राइल डेमोक्रेसी इंस्टीट्यूट" के सर्वेक्षण के अनुसार, बढ़ती आलोचना के कारण 38% इज़राइलियों ने अपनी विदेश यात्रा योजनाएं बदली हैं, जबकि 18% ने निकट भविष्य की यात्राएं रद्द कर दी हैं। यह स्थिति इज़राइलियों के लिए विदेश में बढ़ते असुरक्षा के भाव को दर्शाती है।
ग़ज़ा में मानवीय संकट और वैश्विक स्तर पर ज़ायोनी शासन की आलोचना ने इज़राइली नागरिकों के लिए विदेश यात्राओं को चुनौतीपूर्ण बना दिया है। अपनी पहचान और भाषा छिपाने की मजबूरी न केवल उनकी असुरक्षा को उजागर करती है, बल्कि ग़ज़ा संकट के वैश्विक प्रभाव को भी रेखांकित करती है। यह स्थिति इज़राइल की नीतियों और उनके अंतरराष्ट्रीय परिणामों पर गंभीर सवाल उठाती है।