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Tuesday, 7 October 2025

बेरोजगारी का संकट: 1 पद के लिए 13 हजार दावेदार, पीएचडी-बीई धारक भी आरक्षक की नौकरी के लिए लाइन में

बेरोजगारी का संकट: 1 पद के लिए 13 हजार दावेदार, पीएचडी-बीई धारक भी आरक्षक की नौकरी के लिए लाइन में

देश में बेरोजगारी की स्थिति कितनी गंभीर हो चुकी है, इसका अंदाजा इस तथ्य से लगाया जा सकता है कि एक आरक्षक पद के लिए औसतन 13 हजार उम्मीदवार मैदान में हैं। हाल ही में 7,500 आरक्षक पदों के लिए 9.50 लाख आवेदनों का आंकड़ा सामने आया है। हैरानी की बात यह है कि इन आवेदकों में पीएचडी, बीई, और अन्य उच्च शिक्षित युवा भी शामिल हैं, जो कहते हैं, "कहीं जॉब नहीं मिल रही।" 

बेरोजगारी का बढ़ता अंबार

आज के दौर में बेरोजगारी युवाओं के लिए सबसे बड़ी चुनौती बन चुकी है। सरकारी नौकरियों के लिए भारी भीड़ इस बात का सबूत है कि निजी क्षेत्र में रोजगार के अवसर सीमित हैं। उच्च शिक्षा प्राप्त करने के बावजूद युवा छोटे-छोटे पदों के लिए आवेदन करने को मजबूर हैं। 9.50 लाख आवेदकों में से कई ऐसे हैं, जिनके पास इंजीनियरिंग, मैनेजमेंट, और यहां तक कि डॉक्टरेट की डिग्री है। यह स्थिति न केवल युवाओं की हताशा को दर्शाती है, बल्कि देश की रोजगार नीतियों पर भी सवाल उठाती है। 
         परीक्षा शुल्क: फीस वसूली का हथियार?

इस भर्ती प्रक्रिया में एक और चिंताजनक पहलू सामने आया है। कई लोग मानते हैं कि परीक्षा शुल्क को 500 रुपये से बढ़ाकर 1,000 रुपये कर देना चाहिए। उनका तर्क है कि इससे गंभीर उम्मीदवारों की छंटनी होगी और फॉर्म भरने की भीड़ कम होगी। हालांकि, यह सुझाव भी विवादास्पद है, क्योंकि पहले से ही आर्थिक तंगी से जूझ रहे युवाओं पर अतिरिक्त बोझ पड़ सकता है। दूसरी ओर, कुछ लोग इसे सरकार के लिए "फीस वसूली का हथियार" मानते हैं, जिससे बेरोजगार युवाओं से राजस्व जुटाया जा रहा है। 

क्या है समाधान?

बेरोजगारी का यह संकट केवल सरकारी नौकरियों की संख्या बढ़ाने से हल नहीं होगा। निजी क्षेत्र में रोजगार सृजन, स्किल डेवलपमेंट प्रोग्राम्स को मजबूत करना, और स्टार्टअप्स को प्रोत्साहन देना कुछ ऐसे कदम हैं, जो इस समस्या को कम कर सकते हैं। साथ ही, भर्ती प्रक्रियाओं में पारदर्शिता और समयबद्धता सुनिश्चित करना भी जरूरी है, ताकि युवाओं का भरोसा बना रहे। 

7,500 पदों के लिए 9.50 लाख आवेदन और उसमें पीएचडी-बीई जैसे उच्च शिक्षित उम्मीदवारों की मौजूदगी देश में बेरोजगारी की भयावह स्थिति को उजागर करती है। यह न केवल एक सामाजिक और आर्थिक चुनौती है, बल्कि युवाओं के भविष्य और देश के विकास पर भी गहरा प्रभाव डाल रही है। सरकार और समाज को मिलकर इस दिशा में ठोस कदम उठाने की जरूरत है।