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Thursday, 16 October 2025

'विश्वगुरु' का जुमला या 'कमजोर' की सच्ची विरासत गोल्ड-LPG-पेट्रोल-GDP के आंकड़े मनमोहन सिंह की चुप्पी से ज्यादा बोलते हैं, मोदी की चुप्पी से कम

'विश्वगुरु' का जुमला या 'कमजोर' की सच्ची विरासत गोल्ड-LPG-पेट्रोल-GDP के आंकड़े मनमोहन सिंह की चुप्पी से ज्यादा बोलते हैं, मोदी की चुप्पी से कम
नई दिल्ली, 16 अक्टूबर 2025: भारत की राजनीति में 'विश्वगुरु' बनने का सपना तो चमकदार है, लेकिन क्या यह सिर्फ जुमलों का खेल है? या वे नेता ज्यादा मजबूत थे, जिन्हें 'कमजोर' कहकर बदनाम किया गया? पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को 'मौन सिंह' कहकर मजाक उड़ाया गया, जबकि वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को 'विश्वगुरु' का तमगा दिया जाता है। लेकिन आंकड़े झूठ नहीं बोलते। गोल्ड रिजर्व से लेकर LPG-पेट्रोल की कीमतें, GDP ग्रोथ और प्रेस कॉन्फ्रेंस की संख्या—ये पैमाने बताते हैं कि कौन सी सरकार ने आम आदमी की जेब मजबूत की और कौन सी सिर्फ भाषणों से। एक तरफ अकेले मनमोहन सिंह की चुप्पी में छिपी नीतियां, दूसरी तरफ मोदी की चुप्पी में छिपे फैसले। आइए, फैक्ट्स से फैसला करें: क्या 'विश्वगुरु' अच्छा है, या वे 'कमजोर' ही सच्चे हीरे थे? 

GDP ग्रोथ: मनमोहन का दोहरा अंक, मोदी का सुस्त सफर भारतीय अर्थव्यवस्था का आईना GDP है। मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली UPA सरकार (2004-2014) में औसत वार्षिक GDP ग्रोथ 8.1% रही, जिसमें 2006-07 में 10.08% की रिकॉर्ड वृद्धि दर्ज हुई—आधुनिक भारत का इकलौता दोहरा अंक। वैश्विक मंदी के बावजूद, UPA ने अर्थव्यवस्था को पटरी पर रखा, जहां निजी निवेश GDP का 26% था। वहीं, NDA सरकार (2014-2024) में औसत ग्रोथ सिर्फ 5.4% रही, भले ही COVID के बाद 2021-22 में 9.1% का उछाल आया। डेमोक्रेटाइजेशन और GST जैसे फैसलों ने अनौपचारिक क्षेत्र को चोट पहुंचाई, जिससे ग्रोथ सुस्त पड़ी। मनमोहन के दौर में प्रति व्यक्ति आय में 35% की बढ़ोतरी हुई, जबकि मोदी के दौर में यह पीछे छूट गई। सवाल उठता है: क्या 'विश्वगुरु' बनने के चक्कर में GDP की रफ्तार धीमी हो गई? 

गोल्ड रिजर्व: UPA की मजबूती, NDA की निरंतरता रिजर्व्स देश की आर्थिक ढाल हैं। 2009 में वैश्विक संकट के दौरान UPA ने IMF से 200 टन गोल्ड खरीदकर रिजर्व को 357 टन से बढ़ाकर मजबूत बनाया। NDA ने इसे आगे बढ़ाया—2025 तक 880 टन तक पहुंचाया, लेकिन यह क्रमिक वृद्धि थी, न कि क्रांतिकारी कदम। UPA के दौर में फॉरेन एक्सचेंज रिजर्व $108 बिलियन बढ़े, जबकि NDA में $40 बिलियन। गोल्ड इम्पोर्ट्स GDP का बोझ बने, लेकिन मनमोहन सरकार ने इसे नियंत्रित रखा। 'कमजोर' कहे गए मनमोहन ने ही नींव मजबूत की, जिस पर 'विश्वगुरु' खड़ा हुआ। 

 LPG-पेट्रोल: मनमोहन के दौर में स्थिरता, मोदी में उछाल ईंधन कीमतें आम आदमी की नब्ज हैं। मनमोहन सिंह के कार्यकाल (2006-2014) में पेट्रोल 66% और डीजल 82% महंगा हुआ, लेकिन वैश्विक क्रूड प्राइस ($113/बैरल) के दबाव में। LPG सिलेंडर की कीमतें नियंत्रित रहीं, सब्सिडी से। मोदी सरकार में (2014-2022) पेट्रोल सिर्फ 33.85% महंगा हुआ, लेकिन डीजल 61.51%—और यह कम क्रूड प्राइस ($50/बैरल) के बावजूद। सरकार ने एक्साइज ड्यूटी बढ़ाकर राजस्व कमाया, जबकि UPA ने डीरेगुलेशन से बाजार को संतुलित किया। नतीजा: आज पेट्रोल ₹100 पार, LPG ₹800 से ऊपर। 'विश्वगुरु' का वादा था सस्ता ईंधन, लेकिन हकीकत महंगाई की मार। 

 प्रेस कॉन्फ्रेंस: मनमोहन की खुली बातचीत, मोदी की चुप्पी का राज लोकतंत्र में जवाबदेही जरूरी है। मनमोहन सिंह ने 10 साल में 3 प्रेस कॉन्फ्रेंस कीं, आखिरी 2014 में 100 पत्रकारों के 62 सवालों का सामना किया। वे 'कमजोर' कहलाए, लेकिन मीडिया से रूबरू हुए। मोदी ने 10 साल में एक भी प्रेस कॉन्फ्रेंस नहीं की—सिर्फ विदेशी दौरों पर संयुक्त PC। AIR कवरेज में 6 गुना ज्यादा समय मिला, लेकिन सवालों से दूर। 'विश्वगुरु' बनने का दावा, लेकिन जनता के सवालों से डर? मनमोहन की चुप्पी नीतियों में थी, मोदी की चुप्पी जवाबदेही से। | पैमाना | मनमोहन सिंह (UPA, 2004-14) नरेंद्र मोदी (NDA, 2014-24) टिप्पणी 

GDP ग्रोथ (औसत)

 8.1% (दोहरा अंक 2006-07) | 5.4% (COVID उछाल सहित) | UPA ने वैश्विक मंदी झेली 

गोल्ड रिजर्व वृद्धि 200 टन IMF से (2009) | 880 टन तक (क्रमिक) | UPA ने संकट में मजबूती दी 

पेट्रोल वृद्धि 66% (उच्च क्रूड प्राइस) | 33.85% (कम क्रूड प्राइस) | NDA ने टैक्स से राजस्व कमाया 

प्रेस कॉन्फ्रेंस 3 (62+ सवाल आखिरी में) | 0 (विदेशी PC सहित) | UPA में खुलापन ज्यादा | 

 निष्कर्ष: 'कमजोर' की ताकत आंकड़ों में, 'विश्वगुरु' के जुमलों में मनमोहन सिंह को 'कमजोर' कहना आसान था, लेकिन उनके दौर की GDP, रिजर्व्स और स्थिर ईंधन नीतियां आज भी प्रासंगिक हैं। मोदी का 'विश्वगुरु' विजन प्रेरणादायक है, लेकिन महंगाई और चुप्पी सवाल खड़े करती है। सच्चाई आंकड़ों में है: वे 'कमजोर' नहीं, मजबूत नीतियों के शिल्पकार थे। क्या समय आ गया है कि हम जुमलों से ऊपर उठकर फैक्ट्स चुनें? भारत का भविष्य इसी बहस पर टिका है—क्या हम 'विश्वगुरु' बनेंगे, या 'कमजोरों' की विरासत को मजबूत करेंगे?