हाल ही में देश में मज़बूत विपक्ष की वकालत करने और राजनीति छोड़ने की इच्छा जताने वाले केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी को अपने बयानों की वजह से भारी क़ीमत चुकानी पड़ी है।
बीजेपी के क़द्दावर और उदार नेता समझे जाने वाले गडकरी को पार्टी संसदीय बोर्ड और केंद्रीय चुनाव समिति से बाहर का रास्ता दिखा दिया गया।
टाइम्स ऑफ़ इंडिया ने अपनी एक रिपोर्ट में सूत्रों के हवाले से दावा किया है कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से आने वाले गडकरी को हटाने के पीछे ख़ुद संघी नेताओं की सहमति है।
सूत्रों का कहना है कि गडकरी का प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह से कई मुद्दों पर मनमुटाव चल रहा है, जिसके चलते उन्हें यह सज़ा दी गई है और पार्टी में उनका क़द घटा दिया गया है।
विश्लेषकों का मानना है कि बीजेपी ऐसा कोई भी बड़ा फ़ैसला आरएसएस की सहमति के बिना नहीं ले सकती। गडकरी आरएसएस नेतृत्व के काफ़ी क़रीब रहे हैं। दूसरा वह नागपुर से ही आते हैं, जहां आरएसएस का मुख्यालय है। हालांकि, दत्तात्रेय होसाबले के सरकार्यवाहक बनने के बाद समीकरण बदले हैं। संघ प्रमुख मोहन भागवत के बाद सरकार्यवाहक ही अहम फ़ैसले लेते हैं।
वहीं सूत्रों ने टाइम्स ऑफ़ इंडिया को बताया है कि आरएसएस और बीजेपी दोनों के आला नेताओं का मानना है कि अगर नितिन गडकरी भगवा पार्टी के शीर्ष नेताओं के मूड को नहीं समझ सके, तो उन्हें और परिणाम भुगतने पड़ सकते हैं। msm