भवानी पहाड़ियां कहती हैं कि उन्हें रोज़ाना अपने बच्चे को गोद में लेकर कई किलोमीटर दूर पानी लेने जाना पड़ता है
झारखंड की राजधानी रांची से 415 किलोमीटर दूर साहिबगंज ज़िले के बोरियो विधानसभा का जेटकेकुमारजोरी गांव...
जहां एक बीमार महिला को कुछ लोग खाट पर लिटाकर अस्पताल ले जा रहे हैं. आदिवासी बहुल झारखंड राज्य की ये तस्वीरें विचलित कर देने वाली हैं.
पहाड़िया समुदाय बहुल इस गांव में केंद्र और राज्य सरकार के तमाम दावे, ये अकेली तस्वीर झुठला रही है. इस महिला को डायरिया की शिकायत हुई थी और कुछ ही दिनों में उनकी हालत बिगड़ने लगी.
अस्पताल ले जाने के लिए एंबुलेंस को बुलाया गया, लेकिन ड्राइवर ने सड़क न होने के कारण गांव तक आने से इनकार कर दिया. जैसे-तैसे ग्रामीणों ने गांव से ही खाट पर लिटाकर महिला को अस्पताल तक पहुंचाया.
बड़ी मुश्किल से उस महिला की जान बचाई जा सकी.
पहाड़िया आदिवासी बहुल गांव जटके कुमारजोरी में एक पहाड़िया महिला को खटिया पर लिटाकर अस्पताल ले जाते लोग
पहाड़िया समुदाय (जो कि सरकार द्वारा घोषित विशेष रूप से कमज़ोर आदिवासी समूहों में आता है) और इस समुदाय की महिलाएं अपनी मूलभूत ज़रूरतों को लेकर बात करती हुई बेहद ग़ुस्से में आ जाती हैं.
गांव की इकलौती कॉलेज में पढ़ने वाली स्नेहलता मालतो ग़ुस्से में कहती हैं, “चुनावों के दौरान हमसे लाख वादे किए जाते हैं और हमारे वोट करने के बाद कोई झांकने तक नहीं आता.”
“हमने अपने इलाके के विधायक और सांसद को आज तक नहीं देखा.”
स्नेहलता मालतो कहतीं हैं कि उनके अलावा गांव में किसी लड़की ने दसवीं तक पढ़ाई नहीं की है और ज़्यादातर पहाड़िया गांव में महिलाएँ अशिक्षित ही मिलेंगी
लगभग 70 पहाड़िया परिवार वाले गांव की स्नेहलता कहती हैं कि, “चुनावी मुद्दों की क्या बात करें? इतने सालों बाद भी हमारे गांव में पीने का साफ़ पानी नहीं, सड़क की सुविधा नहीं है.”
“और तो और हम महिलाओं को आज भी खुले में शौच करना और नहाना पड़ता है. मैं तो पढ़ी-लिखी हूं, खुले में नहाना पड़ता है, ये सोचकर रोज़ बुरा लगता है.”
स्नेहलता की पड़ोसी, 36 साल की मंजू मालतो जो अब तक पेड़ के सहारे खड़े होकर हमारी चर्चा को बस सुन रही थीं, अचानक से बोल पड़ती हैं...
“सबसे पहले तो हमारे यहां सड़क की बहुत बड़ी समस्या है…सड़क रहेगी तो हर कठिनाई का सामना कर सकते हैं, तुरंत अस्पताल पहुंचा जा सकता है."
वो कहती हैं, “चाहे किसी को दिल का दौरा पड़ जाये या फिर डायरिया हो जाए, यहां सब बीमारी बराबर हैं क्योंकि अस्पताल पहुंचना ही इतना मुश्किल है कि छोटी बीमारी भी जानलेवा बन जाती है.”
गांव के लोग इस बात से नाराज़ हैं कि आज़ादी के इतने सालों बाद भी उनके लिए सड़क नहीं बन पाई है.
मंजू मालतो कहती हैं कि उनके घर में मोबाइल आ गया है, लेकिन उनके गांव में पीने का पानी और सड़क नहीं आए हैं
तस्वीर में सबसे पहले दिख रही पुसुरभीटा गांव की 25 साल की मुड़की पहाड़िया कहती हैं कि सर पर मटकी लेकर उन्हें हर दिन कम से कम तीन बार पानी लेने जाना पड़ता है
झारखंड में पहले चरण का चुनाव 13 नवंबर को हो चुका है. अब 20 नवंबर को दूसरे चरण का चुनाव है. 23 नवंबर को नतीजों का एलान होगा.