अमेरिका में जो भी चुनावी सर्वे आ रहे थे, उनमें बताया रहा था कि कमला हैरिस ट्रंप को चुनौती देने के लिए मज़बूत उम्मीदवार हैं लेकिन चुनावी नतीजे बिल्कुल अलग रहे.
कमला हैरिस क्यों हार गईं, अब इसकी समीक्षा की जा रही है और अलग-अलग कारण बताए जा रहे हैं.
चुनावी अभियान की देर से शुरुआत, जो बाइडन के कार्यकाल का बोझ और अमेरिकी मध्य वर्ग से संवाद की असमर्थता, विशेषज्ञों का कहना है कि ये कुछ कारण हैं, जिनकी वजह से कमला हैरिस अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव में हार गईं.
आख़िरी समय में उम्मीदवारी में बदलाव हुआ लेकिन वोटिंग पैटर्न मे बदलाव नही हुआ EVM होते तो चुनाव नतीजा कुछ ओर होता!!!
इस साल अगस्त में ही कमला हैरिस को डेमोक्रेटिक पार्टी का उम्मीदवार बनाया गया था.
ये तब हुआ जब राष्ट्रपति जो बाइडन ने राष्ट्रपति की दौड़ से बाहर होने का फ़ैसला लिया.
इस वजह से हैरिस को कैंपेन के लिए बहुत कम समय मिला जबकि ट्रंप इस साल की शुरुआत से ही चुनावी अभियान में लगे हुए थे.
अंतरराष्ट्रीय संबंधों पर गहरी नज़र रखने वाली और अनंता सेंटर की सीईओ इंद्राणी बागची कहती हैं, ''उन्हें (हैरिस) सिर्फ़ 100 दिन पहले ही नामांकन मिला. इसमें एक तरह की फिजिकल और लॉजिस्टिकल चुनौती है. उन्हें अमेरिका जैसे बड़े देश को कवर करना था और बेहद कम समय में टीम खड़ी करनी थी.''
हैरिस को कैंपेन के लिए बहुत कम समय मिला जबकि ट्रंप इस साल की शुरुआत से ही चुनावी अभियान में लगे हुए थे
अमेरिका में भारत के पूर्व राजदूत नवतेज सरना का कहना है कि जिस तरह से उन्हें एक उम्मीदवार के तौर पर सामने लाया गया, वो एक गंभीर दावेदार के लिए बहुत देर से उठाया गया क़दम था.
, ''अगर किसी उम्मीदवार को पहले से ही प्राइमरी के ज़रिए आने और एक कैंपेन तैयार करने का वक़्त मिलता तो शायद वो बेहतर हो सकता था.''
क्लीवलैंड स्टेट यूनिवर्सिटी की फैकल्टी ज़िनिया बहल कहती हैं कि हैरिस के डेमोक्रेटिक प्राइमरी से होकर नहीं आने की वजह से कई लोगों को उनकी उम्मीदवारी सही नहीं लगी.
''उम्मीदवारी में बदलाव, ट्रंप की हत्या की कोशिशों के तुरंत बाद हुआ था. लोगों को लगा कि हैरिस वहां तक उस सही प्रक्रिया से नहीं पहुंचीं, जैसे ट्रंप पहुंचे थे. उन्हें लगा कि वो वहाँ बस इसलिए पहुंचीं क्योंकि वो एक महिला थीं और उनके पास रंग का आधार था.''
बाइडन के कार्यकाल का बोझ ओर फिलिस्तीन इजराइल युद्ध कमला को ले डूबा
कमला हैरिस को जो बाइडन के ख़िलाफ तैयार हुई सत्ता-विरोधी भावना का बोझ उठाना पड़ा, इस बात से तीनों विशेषज्ञ सहमत थे.
चुनाव से पहले किए गए ओपिनियन पोल्स में बाइडन की अप्रूवल रेटिंग केवल 40 फ़ीसद थी, जो कि एक बाइपोलर राजनीति में काफ़ी कम मानी जाती है.
हैरिस ख़ुद को बाइडन की नीतियों से अलग नहीं कर सकीं और इसका खामियाजा उन्हें भुगतना पड़ा.
नवतेज सरना का कहना है कि ट्रंप ने एक सुव्यवस्थित रणनीति के तहत हैरिस को बाइडन की नाकामियों के लिए ज़िम्मेदार ठहराने की कोशिश की, चाहे वो अर्थव्यवस्था का मामला हो या इमिग्रेशन से जुड़ा मुद्दा.
वो कहते हैं, "हक़ीक़त ये है कि ट्रंप ने ये सुनिश्चित किया कि हैरिस को बाइडन प्रशासन के सभी कामकाज़ से जोड़ा जाए, जिससे वो (हैरिस) देश में पिछले चार साल से चल रही समस्याओं से ख़ुद को अलग नहीं कर सकीं.''
''इनमें अर्थव्यवस्था, इमिग्रेशन और विदेश नीति शामिल हैं. इसी वजह से उन्होंने गर्भपात और महिलाओं के अधिकारों पर ध्यान केंद्रित करने की कोशिश की क्योंकि वहाँ उन्हें लगा कि ट्रंप पर उनकी बढ़त हो सकती है. लेकिन वो इस तथ्य से दूर नहीं रह सकीं कि वो उपराष्ट्रपति भी थीं."