इराक़ में क़ानून गठबंधन के प्रमुख नूरी अल-मालेकी ने क्षेत्र को विभाजित करने और इराक़ के खिलाफ साजिश रचने की ज़ायोनी शासन की योजना पर चेतावनी दी है।
पश्चिम एशियाई क्षेत्र, जटिल एवं गंभीर परिस्थितियों से गुज़र रहा है। ग़ज़ा और लेबनान के ख़िलाफ़ ज़ायोनी शासन के युद्ध के बाद, ज़ायोनी-अमेरिकी योजना के साथ सीरियाई सरकार भी गिर गयी और एक अजीब घटना के बाद आतंकवादी और विपक्षी गुटों ने दमिश्क़ की सत्ता पर क़ब्ज़ा कर लिया।
पार्सटुडे के अनुसार, क्षेत्र के देशों के लिए सीरियाई ड्रामा दोहराए जाने के बारे में चिंताएं और चेतावनियां बढ़ गई हैं।
इसके आधार पर नूरी अल-मालेकी ने ज़ायोनी शासन द्वारा और अधिक हमले और सीमाओं के पुनर्निर्धारण की बात कही है। ऐसा लगता है कि क्षेत्र के लिए दुश्मनों की सबसे महत्वपूर्ण रणनीति, पहले चरण में छोटे देश बनाना और अगले चरण में सरकारों का स्वरूप बदलना है।
ऐसी रणनीति के साकार होने से ज़ायोनी शासन को लाभ होगा क्योंकि एक ओर, बड़े इस्लामी देश विभाजित होकर छोटे देश बन जायेंगे और दूसरी ओर, ये छोटे देश पश्चिमी और ज़ायोनी केन्द्रियता पर स्थापित होंगे जबकि सांठगांठ के केन्द्र में शामिल होंगे जैसा कि आज फ़ार्स की खाड़ी सहयोग परिषद के सदस्यों के बीच देखा जा रहा है।
इनमें से कुछ देशों ने पहले ही ज़ायोनी शासन के साथ संबंध सामान्य कर लिए हैं और उन्हें इस शासन के लिए खतरा नहीं माना जाता है जबकि कुछ अमेरिकी सैन्य अड्डे का ठिकाना बन गए हैं।
इस संबंध में, बग़दाद के जुमे के इमाम आयतुल्लाह सैयद यासीन अल-मूसवी ने क्षेत्र के ख़िलाफ दुश्मनों की नई साज़िशों का ज़िक्र करते हुए स्पष्ट किया: इस साज़िश का उद्देश्य इराक़, सीरिया, लेबनान और जॉर्डन सहित क्षेत्र के देशों को विभाजित करना और इन देशों का विभाजन, अमेरिका और उसके सहयोगियों की हिस्सेदारी की मांग पर आधारित होगा।
श्री यासीन अल मूसवी ने इस बात पर भी ज़ोर दिया: क्षेत्र में जो कुछ हो रहा है वह सुन्नियों, शियाओं और कुर्दों के हित में नहीं है, बल्कि यह एक अमेरिकी योजना है जो अमेरिका और उसके सहयोगियों के हितों की सेवा करती है।
ज़ायोनी-अमेरिकी रणनीति को साकार बनाने के लिए उपायों पर चर्चा की गयी है।
इनमें से एक उपाय, सरकारों और इराक़ सहित समझौते का विरोध करने वाले स्वतंत्र देशों के भीतर सक्रिय ग्रुप्स को विध्वंसक कार्रवाइयों के लिए उकसाना है।
दूसरा उपाय यह है कि इराक के अंदर कलह पैदा की जाए और उन महत्वपूर्ण ग्रुप्स पर दबाव डाला जाए जिनके पास लोकप्रिय आधार है और जो क़ब्ज़े के ख़िलाफ़ हैं।
हालिया सप्ताहों के दौरान, हशद अल-शाबी को ख़त्म करने का मुद्दा अमेरिकियों और उनके सहयोगियों द्वारा उठाया गया है, और यहां तक कि इराक़ सरकार को इराक़ को सीरिया जैसा बनाने सहित हशद अल-शाबी को खत्म न करने के परिणामों के बारे में भी चेतावनी दी गई थी।
क्षेत्र के देशों के ख़िलाफ़ इस षडयंत्र की वजह से राजनीतिक विशेषज्ञों और स्वतंत्र एवं अनुभवी हस्तियों की चेतावनियां बढ़ गई हैं।
आख़िर में, इस बात पर ज़ोर दिया जाना चाहिए कि क्षेत्र और स्वतंत्र देशों के ख़िलाफ़ ज़ायोनी-अमेरिकी साज़िश को साकार बनने से रोकने का सबसे महत्वपूर्ण तरीक़ा इस्लामी देशों के लिए इस स्थिति से निपटने के लिए आम सहमति और एकता तक पहुंचना है। (AK)