ईरान के विदेशमंत्रालय के प्रवक्ता ने मानवाधिकार के अंतरराष्ट्रीय दिवस की ओर संकेत करते हुए बल देकर कहा कि मानवाधिकार का प्रयोग राजनीतिक लक्ष्यों व हितों के लिए किया जा रहा है और यह मानवाधिकार की रक्षा के लिए सबसे बड़ा ख़तरा है।
पार्सटुडे- ईरान के विदेशमंत्रालय के प्रवक्ता इस्माईल बक़ाई ने मानवाधिकार के अंतरराष्ट्रीय दिवस पर सोशल प्लेटफ़ार्म एक्स पर लिखा कि 10 दिसंबर वर्ष 1948 को राष्ट्रसंघ की महासभा ने मानवाधिकार घोषणापत्र को पारित किया और इस दिन की मूल्यवान उपलब्धि की वजह से इंसान गर्व का एहसास करता है इसके बावजूद मानवाधिकार का प्रयोग राजनीतिक हितों व लक्ष्यों के लिए किया जा रहा है।
इसी प्रकार उन्होंने एक्स पर लिखा कि मानवाधिकार के संबंध में दोहरा व्यवहार किया जा रहा है और मानवाधिकार की रक्षा के लिए यह बहुत बड़ा ख़तरा है।
मानवाधिकार का घोषणापत्र एक अंतरराष्ट्रीय समझौता है और राष्ट्रसंघ की महासभा ने इसे 10 दिसंबर वर्ष 1948 में पेरिस में पारित किया था। इस घोषणापत्र में 30 धाराये हैं जिनमें मानवाधिकार के संबंध में राष्ट्रसंघ के दृष्टिकोणों की व्याख्या की गयी है। इस घोषणापत्र में समस्त लोगों के लिए नागरिक, सांस्कृतिक, आर्थिक और सामाजिक अधिकारों को बयान किया गया है चाहे किसी भी देश के नागरिक हों।
मानवाधिकार के विषय को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर क़बूल किया गया है परंतु इस संबंध में अमेरिका की अगुवाई में पश्चिम का दृष्टिकोण इस बात का सूचक है कि वह इस विषय की परिभाषा अपने हिसाब से करता है और दूसरे शब्दों में विभिन्न देशों विशेषकर अपने विरोधी देशों में मानवाधिकार को अपने मापदंडों व मीटरों से नापते हैं।
यह उस हालत में है जब विश्व के विभिन्न देशों में विभिन्न धर्म हैं और मानवाधिकार के संबंध में उनके दृष्टिकोण भिन्न हैं और पश्चिम ईरान जैसे अपने विरोधी देशों के संबंध में हमेशा दोहरे मापदंड से काम लेता है। इसी प्रकार पश्चिम चीन और रूस जैसे अपने प्रतिस्पर्धी देशों के संबंध में भी दोहरे मापदंड से काम लेता है।
वर्षों से पश्चिम मानवाधिकार के विषय का प्रयोग दूसरे देशों के ख़िलाफ़ प्रचारिक हमलों और मानसिक जंगों के हथकंडे के रूप में कर रहा है। मिसाल के तौर पर पश्चिम ने रूस पर मानवाधिकार के हनन और यूक्रेन में युद्धापराध करने का आरोप लगाया है और इसी प्रकार अंतरराष्ट्रीय अदालत की ओर से रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतीन की गिरफ़्तारी का आदेश दिया गया है जिसका अमेरिका और यूरोप सहित पश्चिमी देशों ने स्वागत किया है।
रोचक बात यह कि ज़ायोनी सरकार के प्रधानमंत्री बिनयामिन नेतनयाहू और इस्राईल के पूर्व युद्धमंत्री गैलेंट की गिरफ़्तारी के संबंध में अंतरराष्ट्रीय अदालत का जो फ़ैसला है उसका अमेरिका सहित पश्चिमी देशों ने न केवल स्वागत नहीं किया है बल्कि उसकी आलोचना भी की है। इस्राईल के प्रधानमंत्री और पूर्व युद्धमंत्री पर फ़िलिस्तीनियों का नस्ली सफ़ाया करने, भूख का प्रयोग हथियार के रूप में करने और ग़ज़ा पट्टी में फ़िलिस्तीनियों के लिए राहत सामग्रियों को न पहुंचने देने का आरोप है।
शोचनीय बिन्दु यह है कि यूरोपीय देश अंतरराष्ट्रीय अदालत के सदस्य हैं और उन पर ज़रूरी है कि वे इस आदेश व फ़ैसले पर अमल करें पर इसके बावजूद बहुत से देशों ने विभिन्न प्रकार का बहाना करके इस पर अमल करने में आनाकानी से काम लिया है। अमेरिका ने भी अंतरराष्ट्रीय अदालत पर प्रतिबंध लगाने और उसे दंडित करने की धमकी दी है।
अमेरिकी कांग्रेस में डेमोक्रेटिक और मुसलमान प्रतिनिधि इल्हाम उमर कहती हैं कि पूरी दुनिया में मानवाधिकार के हनन के संबंध में अमेरिकी दावा बड़ा पाखंड है।
एक मामला व विषय यह है कि पश्चिमी देश स्वयं को मानवाधिकारों की स्थिति की समीक्षा से सुरक्षित व भिन्न समझते हैं। यानी वे समझते हैं कि इस संबंध में उनसे कोई पूछताछ करने वाला नहीं है इसलिए वे मानवाधिकार के हनन के संबंध में किसी रिपोर्ट पर ध्यान ही नहीं देते हैं।
अमेरिका में मानवाधिकार की स्थिति इस बात की सूचक है कि इस देश में मानवाधिकार का हनन बहुत बुरी तरह होता है। रेड इंडियंस और अश्वेत लोगों के साथ भेदभाव और उनके ख़िलाफ़ अमेरिकी पुलिस का हिंसक और बर्बरतापूर्ण रवइया, अमेरिका से बाहर इस देश के सैनिकों के हमले, वियतनाम, अफ़ग़ानिस्तान, इराक़, सीरिया जैसे देशों में युद्धापराध, बहुत से देशों में जेलों को बनाना और उसमें मानवता विरोधी कार्यवाहियां व यातनायें इस बात की सूचक हैं कि मानवाधिकार की रक्षा के संबंध में वाशिंग्टन का दावा मात्र पाखंड व झूठ है।
यूरोपीय देश भी मानवाधिकार की रक्षा के दावेदार हैं परंतु इन देशों में भी मानवाधिकार की स्थिति अच्छी नहीं है। ब्रिटेन, फ्रांस और जर्मनी जैसे देशों में श्यामवर्ण के लोगों, पलायनकर्ताओं और मुसलमानों के साथ विभिन्न क्षेत्रों में भेदभाव बर्ताव होते हैं। MM