संयुक्त राष्ट्र में ईरान के स्थायी प्रतिनिधि ने सुरक्षा परिषद को एक पत्र में लिखा है कि फ्रांस के विदेश मंत्री का आरोप पूरी तरह से निराधार और गैर-जिम्मेदार हैं कि ईरान परमाणु हथियार विकसित करने के बिल्कुल क़रीब है।
संयुक्त राष्ट्र में ईरान के राजदूत और स्थायी प्रतिनिधि अमीर सईद इरवानी ने मंगलवार की रात सुरक्षा परिषद के वर्तमान अध्यक्ष और संयुक्त राष्ट्र के महासचिव एंटोनियो गुटेरेस को भेजे गए एक पत्र में फ्रांस के विदेश मंत्री के इस दावे को खारिज कर दिया कि ईरान परमाणु हथियार विकसित करने के निकट है।
पार्सटुडे के अनुसार इरवानी ने लिखा कि इस्लामी गणतंत्र ईरान कभी भी परमाणु हथियार हासिल करने की कोशिश में नहीं रहा है और उसने अपनी रक्षा नीति में कोई बदलाव नहीं किया है।
ईरानी इस्लामी गणतंत्र के संयुक्त राष्ट्र में राजदूत और स्थायी प्रतिनिधि अमीर सईद ईरवानी का पत्र सुरक्षा परिषद के लिए फ्रांसीसी विदेश मंत्री की टिप्पणियों के संबंध में इस प्रकार है
बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम
अपनी सरकार के आदेश के बाद मैं इस पत्र के माध्यम से आपको 28 अप्रैल 2025 को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की सीक्रेट बैठक के दौरान फ्रांस के यूरोपीय और विदेश मंत्री जीन-नॉएल बैरो के बयान की ओर आपका ध्यान आकर्षित करना चाहता हूँ।
फ्रांस के विदेश मंत्री ने अपनी बातों के दौरान ईरान के शांतिपूर्ण परमाणु कार्यक्रम से संबंधित आधारहीन और राजनीति से प्रेरित आरोप लगाए जिसमें यह बेबुनियाद आरोप भी शामिल है कि "ईरान परमाणु हथियारों के विकास के निकट है।
ये आरोप या तो एक बुनियादी ग़लतफ़हमी व भ्रांति से उत्पन्न होते हैं या फ़िर अंतरराष्ट्रीय कानूनों के अनुसार ईरान के कानूनी अधिकारों की अनदेखी करने की वजह से उत्पन्न होते हैं। इस प्रकार की टिप्पणियाँ वास्तविकताओं के संबंध में भेदभाव को दर्शाती हैं और एक ऐसे देश द्वारा लगातार दोहरे व्यवहार का उदाहरण है, जिसके पास सुरक्षा परिषद का एक स्थायी सदस्य होने के नाते विशेष जिम्मेदारी है।
इस संदर्भ में कुछ बिंदुओं की ओर आपका और सुरक्षा परिषद के सदस्यों का ध्यान आकर्षित करना चाहता हूं।
यह दावा कि ईरान "परमाणु हथियारों के विकास के निकट है, पूरी तरह से बेबुनियाद और राजनीतिक रूप से गैर-जिम्मेदार है। इस्लामी गणतंत्र ईरान ने कभी परमाणु हथियार हासिल करने की कोशिश नहीं की है और उसने अपनी रक्षा नीति में कोई बदलाव नहीं किया है। ईरान दृढ़ता से परमाणु हथियारों सहित सभी सामूहिक विनाश के हथियारों को रद्द करता है।
परमाणु हथियारों के अप्रसार पर संधि के संस्थापक सदस्यों में से एक के रूप में, ईरान इस संधि के तहत अपनी प्रतिबद्धताओं पर क़ायम है। परमाणु ऊर्जा अंतर्राष्ट्रीय एजेंसी लगातार ईरान के शांतिपूर्ण परमाणु कार्यक्रम की निगरानी और इसके शांतिपूर्ण होने की पुष्टि करती है। इस एजेन्सी की रिपोर्टें भी निरंतर पुष्टि करती रही हैं कि परमाणु कार्यक्रम को ग़ैर सैन्य उद्देश्यों के लिए चलाया जा रहा है और उसमें किसी प्रकार का दिशाभेद नहीं है।
समग्र कार्य योजना (JCPOA) एक ऐतिहासिक और बहुपक्षीय उपलब्धि थी और संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद ने 223 प्रस्ताव पारित करके इस समझौते की पुष्टि की थी। इस समझौते का टूटना ईरान की कार्रवाइयों के कारण नहीं, बल्कि ग़ैर क़ानूनी ढंग से अमेरिका का इस समझौते से निकल जाना और साथ ही यूरोपीय ट्रोइका द्वारा अपनी आर्थिक प्रतिबद्धताओं को पूरा करने में असमर्थता के परिणामस्वरूप हुआ।
ईरान ने इसके जवाब में एक साल से अधिक समय तक धैर्य करने की रणनीति अपनाई और फिर, धीरे-धीरे और जेसीपीओए के अनुच्छेद 26 और 36 के अनुसार, अपने प्रतिबद्धताओं को कम किया और रोक दिया। ये कदम पूरी तरह से स्पष्ट और उचित थे।
फ्रांस के विदेश मंत्री की दोबारा उन प्रतिबंधों को लागू करने की स्पष्ट धमकी जो "ईरान की अर्थव्यवस्था पर विनाशकारी प्रभाव" डालेंगे, राजनीतिक और आर्थिक शक्ति के प्रयोग का एक स्पष्ट उदाहरण है। धमकी और आर्थिक ज़बरदस्ती का सहारा लेना पूरी तरह से अस्वीकार्य है और संयुक्त राष्ट्र के चार्टर के सिद्धांतों का स्पष्ट उल्लंघन है।
इसके अलावा, फ्रांस का अपनी प्रतिबद्धताओं को पूरा करने में खुद की कमी के बावजूद, तथाकथित ट्रिगर तंत्र को सक्रिय करने की धमकी, अंतर्राष्ट्रीय कानून के मूलभूत सिद्धांतों के विपरीत है; ऐसे सिद्धांत जो यह रोकते हैं कि उल्लंघन करने वाला पक्ष, समझौते से उत्पन्न अधिकारों का हवाला दे सके। ऐसा क़दम ग़ैर क़ानूनी, अस्वीकार्य और निराधार है और यह सुरक्षा परिषद की छवि को कमज़ोर करता है।
फ्रांस ऐसी हालत में ईरान के शांतिपूर्ण परमाणु कार्यक्रम से संबंधित रेडियो धर्मिता के प्रसार के खतरों के बारे में चिंता व्यक्त कर रहा है जबकि इस क्षेत्र में इस देश की विश्वसनीयता उसकी कार्यवाही के कारण गंभीर रूप से ख़राब है।
फ्रांस अभी भी अपने परमाणु भंडार के विकास और आधुनिकीकरण के लिए प्रयासरत है, बिना किसी शर्त के गैर-परमाणु देशों को नकारात्मक सुरक्षा आश्वासन देने से इंकार करता है, इस्राईल के अघोषित परमाणु हथियार कार्यक्रम के खिलाफ चुप्पी साधे हुए है, और इसके साथ सहयोग करता है और अभी भी परमाणु हथियारों के प्रसार पर रोक लगाने के संधि के अनुच्छेद 6 के तहत अपने निरस्त्रीकरण के वादे को पूरा नहीं कर रहा है।
इस्लामी गणतंत्र ईरान एक बार फिर से अपनी डिप्लोमेसी और रचनात्मक संवाद के प्रति अपनी प्रतिबद्धता पर बल देता है। हालाँकि, वास्तविक कूटनीति व डिप्लोमेसी धमकी और दबाव के माहौल में आगे नहीं बढ़ सकती। अगर फ्रांस और उसके सहयोगी वास्तव में एक कूटनीतिक समाधान की तलाश में हैं, तो उन्हें धमकियों को रोकना चाहिए और अंतर्राष्ट्रीय कानून के तहत देशों के सार्वभौमिक अधिकारों का सम्मान करना चाहिए। mm