इज़रायल-ईरान युद्ध का असर भारतीय बासमती चावल निर्यातकों पर पड़ रहा है, खास तौर पर ईरान भेजे जाने वाले चावल पर प्रभाव पड़ा है, जो भारत के लिए सऊदी अरब के बाद दूसरा सबसे बड़ा बाजार है। ऑल इंडिया राइस एक्सपोर्टर्स एसोसिएशन के अनुसार, लगभग 1 लाख टन बासमती चावल, जो ईरान में निर्यात का 18-20% हिस्सा है, गुजरात के कांडला और मुंद्रा बंदरगाहों पर फंसा हुआ है, क्योंकि युद्ध के कारण जहाज और बीमा कवरेज उपलब्ध नहीं हैं। लगभग 2 लाख टन चावल के लिए ₹1,500-2,000 करोड़ का भुगतान भी अटका हुआ है, जिससे वित्तीय परेशानी बढ़ गई है। इससे घरेलू बाजार में बासमती चावल की कीमतों में प्रति किलोग्राम ₹4-5 की कमी आई है, और यदि युद्ध जारी रहा तो कीमतें और गिर सकती हैं। वित्तीय वर्ष 2024-25 में भारत ने ईरान में 10 लाख टन बासमती चावल का निर्यात किया था, जो वैश्विक स्तर पर कुल 60 लाख टन का हिस्सा है, मुख्य रूप से मध्य पूर्व और पश्चिमी एशियाई बाजारों में। इस मुद्दे पर चर्चा के लिए 30 जून को केंद्रीय वाणिज्य और उद्योग मंत्री पीयूष गोयल के साथ बैठक आयोजित की गई है। निर्यातकों को अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंधों के कारण भी भुगतान में कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है, जो अक्सर निजी चैनलों के माध्यम से 6-8 महीने या ईरानी सरकारी एजेंसियों के माध्यम से 90-180 दिनों की देरी से प्राप्त होते हैं।
बंदरगाहों पर ईरान जाने वाले 1 लाख टन बासमती चावल अटके, ₹2,000 करोड़ का भुगतान भी रुका