मीडिया का दोहरा रवैया: गाजा में अस्पतालों पर चुप्पी, इजरायल पर हंगामा
मीडिया को सत्य का आईना माना जाता है, लेकिन इजरायल-फिलिस्तीन संघर्ष में इसका रवैया पक्षपातपूर्ण दिखता है। गाजा में अस्पतालों और स्कूलों पर इजरायली हमलों में सैकड़ों मासूम मारे गए, लेकिन वैश्विक और भारतीय मीडिया में इसकी कवरेज न के बराबर है। वहीं, इजरायल के अस्पतालों या सैन्य ठिकानों पर हमले सुर्खियां बटोरते हैं। भारतीय अस्पतालों में बिजली गुल होने या लापरवाही से मरीजों की मौत पर भी चुप्पी रहती है। आखिर यह दोगलापन क्यों?
7 अक्टूबर 2023 के बाद इजरायल ने गाजा पर बड़े हमले शुरू किए। संयुक्त राष्ट्र की 2024 की रिपोर्ट के अनुसार, इजरायल ने 27 अस्पतालों और 464 स्वास्थ्य सुविधाओं पर हमले किए, जिसमें 727 स्वास्थ्यकर्मी मारे गए। अल-अहली अस्पताल (13 अप्रैल 2025) और कमाल अदवान अस्पताल (27 दिसंबर 2024) जैसे हमलों में मरीज और डॉक्टर मारे गए। स्कूलों, जैसे खदिजा स्कूल (27 जुलाई 2024), पर भी बमबारी हुई, जहां विस्थापित लोग शरण लिए थे। लेकिन भारतीय और वैश्विक मीडिया में ये खबरें गायब रहीं।
भारत में अस्पतालों की बदहाली
भारत में भी स्वास्थ्य सेवाएं बदहाल हैं। 2023 में महाराष्ट्र के एक अस्पताल में ऑक्सीजन की कमी से 24 मरीज मरे, लेकिन ऐसी खबरें केवल तभी सुर्खियां बनती हैं, जब वे राजनीतिक विवाद का हिस्सा हों। ग्रामीण अस्पतालों में बिजली कटौती और डॉक्टरों की कमी से होने वाली मौतें मीडिया की प्राथमिकता में नहीं हैं।
इजरायल पर हमले: आंसुओं की बाढ़
19 जून 2025 को ईरान ने इजरायल के बेर्शेबा अस्पताल पर मिसाइल दागी, जिसमें कोई मरीज नहीं मरा। फिर भी, वैश्विक मीडिया ने इसे युद्ध अपराध बताया और इजरायली बयानों को प्रमुखता दी। X पर
जैसे यूजर्स ने सवाल उठाया, "गाजा में 164 अस्पतालों पर बमबारी की, लेकिन ईरान के एक हमले पर इतना शोर?"
दोगलेपन के कारण
भू-राजनीति: इजरायल भारत और पश्चिम का रणनीतिक साझेदार है, इसलिए उसकी आलोचना से बचा जाता है।
पश्चिमी प्रभाव: रॉयटर्स और एपी जैसे पश्चिमी समाचार स्रोत इजरायल के दृष्टिकोण को बढ़ावा देते हैं।
सनसनीखेज पत्रकारिता: गाजा की मानवीय त्रासदी "बोरिंग" मानी जाती है, जबकि इजरायल पर हमले ड्रामाई लगते हैं।
आर्थिक दबाव: कॉरपोरेट और सरकारी फंडिंग मीडिया को सत्ता के अनुकूल बनाती है।
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गाजा में अस्पतालों पर हमलों की अनदेखी और इजरायल पर हमलों की अतिशयोक्ति मीडिया की विश्वसनीयता पर सवाल उठाती है। यह दोगलापन मानवता के साथ अन्याय है। हमें ऐसी पत्रकारिता की जरूरत है, जो सत्य और न्याय के साथ खड़ी हो।