मोरक्को में बकरीद पर कुर्बानी पर रोक: कारण सालो से अकाल ओर पशुधन की कमी बाकी भारतीय गोदी मिडिया झूठ फैलाने मे लगी हे!!!
अफ्रीकी देश मोरक्को, जहां 99% आबादी इस्लाम धर्म को मानती है, ने इस साल ईद-उल-अज़हा (बकरीद) 2025 पर एक अभूतपूर्व फैसला लिया है। राजा मोहम्मद VI ने देश में छह साल से चल रहे भीषण सूखे और पशुओं की घटती संख्या को देखते हुए बकरी, भेड़, ऊँट या किसी अन्य जानवर की कुर्बानी पर पूर्ण प्रतिबंध लगा दिया है। यह निर्णय न केवल धार्मिक बल्कि आर्थिक और पर्यावरणीय संकटों को ध्यान में रखकर लिया गया है। इस फैसले ने मोरक्को और विश्व भर में तीखी बहस छेड़ दी है, क्योंकि बकरीद पर कुर्बानी इस्लाम में एक महत्वपूर्ण परंपरा मानी जाती है।
कुर्बानी पर रोक के कारण:
भीषण सूखा और पशुधन संकट: मोरक्को पिछले सात सालों से गंभीर सूखे का सामना कर रहा है, जिसके कारण फसलों की पैदावार चौपट हो गई है और पशुओं के लिए चारा व पानी की भारी कमी हो रही है। इस वजह से देश में मवेशियों की संख्या में 38% की गिरावट आई है, और जलाशयों की क्षमता भी 23% तक कम हो गई है। सरकार का मानना है कि कुर्बानी से पशुधन पर और दबाव पड़ेगा, जो भविष्य के लिए खतरा हो सकता है।
आर्थिक दबाव और मांस की बढ़ती कीमतें: सूखे के कारण चारे की कीमतों में 50% की वृद्धि हुई है, जिससे पशुपालकों और किसानों पर आर्थिक बोझ बढ़ा है। मांस की कीमतें भी आसमान छू रही हैं, जिसके चलते गरीब और मध्यम वर्ग के परिवारों के लिए कुर्बानी के लिए जानवर खरीदना मुश्किल हो गया है। सरकार ने मांस की कीमतों को नियंत्रित करने के लिए ऑस्ट्रेलिया से 1 लाख भेड़ों का आयात करने का समझौता किया है और पशुओं पर आयात शुल्क व वैट हटा दिया है, लेकिन यह कुर्बानी की परंपरा को पूरी तरह प्रतिस्थापित नहीं कर सका।
पर्यावरण संरक्षण: राजा मोहम्मद VI ने कहा है कि यह कदम देश के पर्यावरण और पशुधन के संरक्षण के लिए जरूरी है। उन्होंने लोगों से अपील की है कि वे इस बार बकरीद को इबादत, उपवास और दान के माध्यम से मनाएं। सरकार ने 6.2 बिलियन दिरहम (लगभग 620 मिलियन डॉलर) का कार्यक्रम शुरू किया है, जिसमें पशुपालकों को वित्तीय सहायता और पशु स्वास्थ्य अभियानों को बढ़ावा दिया जाएगा।
प्रतीकात्मक कुर्बानी: राजा ने घोषणा की है कि वे पूरे देश की ओर से प्रतीकात्मक कुर्बानी करेंगे, ताकि परंपरा का सम्मान बना रहे। हालांकि, इस्लामी विद्वानों और आम जनता के एक वर्ग ने इसे धार्मिक स्वतंत्रता में हस्तक्षेप बताया है।