ईरान और पश्चिमी देशों के बीच परमाणु कार्यक्रम को लेकर तनाव चरम पर है। हालांकि, इजरायल और ईरान के बीच युद्धविराम की घोषणा हो चुकी है, लेकिन दोनों पक्षों के बीच वाकयुद्ध अब भी जारी है। इस बीच, ईरान और अमेरिका के बीच तनाव एक बार फिर गहरा गया है। ईरान के विदेश मंत्री अब्बास अराघची ने अमेरिका और इजरायल को सीधी चेतावनी देते हुए कहा, "अगर अमेरिका या इजरायल ने दोबारा ईरान के परमाणु ठिकानों पर हमला किया, तो हम पहले से कहीं अधिक कड़ा और निर्णायक जवाब देंगे।"
ट्रम्प के बयान पर ईरान का पलटवार ईरान के विदेश मंत्री का यह बयान अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प की उस धमकी के जवाब में आया है, जिसमें उन्होंने कहा था कि अगर ईरान ने अपने परमाणु संयंत्रों को दोबारा शुरू किया, तो अमेरिका उन्हें पूरी तरह नष्ट कर देगा। ट्रम्प के इस बयान के बाद अराघची ने सोशल मीडिया मंच X पर पोस्ट करते हुए कहा, "आक्रामक हमले की स्थिति में हम पहले से ज्यादा कठोर जवाब देंगे। कूटनीति ही एकमात्र रास्ता है, धमकियां नहीं।"
ईरान की नाराजगी की वजह ईरान का यह गुस्सा इसलिए भड़का है, क्योंकि 22 जून को अमेरिका ने 'ऑपरेशन मिडनाइट हैमर' के तहत ईरान के तीन प्रमुख परमाणु ठिकानों- नातान्ज, फोर्डो और इस्फहान पर बंकर-बर्स्टर बमों से हमला किया था। इस हमले में इन ठिकानों को भारी नुकसान पहुंचा। इसके बाद भी अमेरिका ने ईरान के खिलाफ अपने कड़े बयान जारी रखे। ट्रम्प ने हर मौके पर ईरान के परमाणु कार्यक्रम को खत्म करने और दोबारा हमला करने की धमकी दी। जवाब में ईरान ने भी कड़ा रुख अपनाते हुए करारा जवाब देने की बात कही।
इजरायल का 'ऑपरेशन राइजिंग लायन'
इजरायल ने ईरान के परमाणु कार्यक्रम को अपने अस्तित्व के लिए खतरा बताते हुए 'ऑपरेशन राइजिंग लायन' शुरू किया था। इस ऑपरेशन में 200 से अधिक फाइटर जेट्स ने 100 से ज्यादा लक्ष्यों पर 330 बम और मिसाइलें दागी थीं। इसके बाद दोनों देशों के बीच 12 दिनों तक संघर्ष चला, जिसमें ईरान ने इजरायल के हवाई अड्डों, बंदरगाहों, मोसाद के मुख्यालय और कई सैन्य ठिकानों को निशाना बनाया। अगर ईरान को इजरायल की जमीनी सीमा तक पहुंच मिलती, तो शायद स्थिति इज़राइल के लिए ओर गंभीर हो सकती थी।
युद्धविराम के बावजूद तनाव बरकरार हालांकि, इसके बाद युद्धविराम हो गया, लेकिन ईरान अपने परमाणु कार्यक्रम को रोकने के लिए तैयार नहीं है। यही वजह है कि दोनों देशों के बीच तनाव कम होने का नाम नहीं ले रहा। स्थिति गंभीर बनी हुई है और विश्व की नजरें अब इस बात पर टिकी हैं कि क्या दोनों पक्ष इस मुद्दे को बातचीत से सुलझाएंगे या फिर संघर्ष और बढ़ेगा।