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Saturday, 16 August 2025

चुनाव आयोग की साजिश बेनकाब?: 65 लाख वोटरों के नाम हटाने का सच सामने

चुनाव आयोग की साजिश बेनकाब?: 65 लाख वोटरों के नाम हटाने का सच सामने?
भारत के लोकतंत्र में एक ऐसी घटना सामने आई है, जिसने देश के हर नागरिक को सोचने पर मजबूर कर दिया है। हरियाणा, मध्य प्रदेश और दिल्ली के हालिया विधानसभा चुनावों में मतदाता सूची से 65 लाख नाम हटाए जाने का मामला अब पूरी तरह से खुल चुका है। यह कोई सामान्य प्रशासनिक कदम नहीं, बल्कि एक ऐसी साजिश की ओर इशारा करता है, जो लोकतंत्र को तानाशाही की ओर ले जाने की कोशिश का हिस्सा हो सकती है। 

सुप्रीम कोर्ट में खुला सनसनीखेज राज चुनाव आयोग ने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दायर कर दावा किया था कि वह 65 लाख हटाए गए मतदाताओं की सूची सार्वजनिक नहीं करेगा, न ही उनके नाम हटाने के कारण बताएगा। आयोग का यह रवैया न केवल चौंकाने वाला था, बल्कि लोकतांत्रिक पारदर्शिता पर भी सवाल उठाता था। आयोग ने बिहार के विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) के तहत यह कार्रवाई की, जिसमें 7.89 करोड़ पंजीकृत मतदाताओं में से 65 लाख को मृत, पलायन कर चुके, या अनट्रेसेबल बताकर सूची से हटा दिया गया। लेकिन इन नामों की कोई सूची या हटाने के ठोस कारणों का खुलासा नहीं किया गया। चुनाव आयोग की इस बेशर्मी भरी दलील ने देश में हंगामा मचा दिया। विपक्षी दलों और सामाजिक संगठनों, जैसे एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (ADR), ने इसे लोकतंत्र के लिए खतरा बताते हुए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। 

 सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला 14 अगस्त 2025 को सुप्रीम कोर्ट ने एक ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए चुनाव आयोग को सख्त निर्देश दिए। जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जॉयमाल्या बागची की बेंच ने आदेश दिया कि आयोग को 48 घंटे के भीतर 65 लाख हटाए गए मतदाताओं की जिला-वार सूची जिला चुनाव अधिकारियों की वेबसाइट पर प्रकाशित करनी होगी। इसके साथ ही, प्रत्येक नाम के आगे हटाने का कारण भी स्पष्ट करना होगा। यह सूची बूथ लेवल अधिकारियों (BLO), पंचायत भवनों, और प्रखंड विकास अधिकारियों (BDO) के कार्यालयों के बाहर भी प्रदर्शित की जाएगी। कोर्ट ने यह भी निर्देश दिया कि इसकी सूचना सभी प्रमुख समाचार पत्रों, टीवी और रेडियो के माध्यम से जनता तक पहुंचाई जाए। इसके अलावा, जिन मतदाताओं के नाम हटाए गए हैं, उनकी पहचान के लिए आधार कार्ड को मान्य दस्तावेज के रूप में स्वीकार किया जाएगा। 

क्या थी साजिश? चुनाव आयोग के इस कदम ने कई सवाल खड़े किए हैं। आयोग ने दावा किया कि 22 लाख मतदाता मृत हैं, 35 लाख स्थायी रूप से पलायन कर चुके हैं, और 7 लाख एक से अधिक स्थानों पर पंजीकृत थे। लेकिन इन दावों को साबित करने के लिए कोई पारदर्शी डेटा या सूची साझा नहीं की गई। ADR ने कोर्ट में तर्क दिया कि आयोग ने जानबूझकर "असंग्रहणीय कारण" कॉलम को हटा दिया, जो पहले कुछ राजनीतिक दलों को दी गई सूची में मौजूद था। इससे यह संदेह गहराता है कि क्या यह कदम किसी खास समुदाय या क्षेत्र के मतदाताओं को निशाना बनाने के लिए उठाया गया था। विपक्षी नेताओं, जैसे तेजस्वी यादव और राहुल गांधी, ने इस मुद्दे को जोर-शोर से उठाया। तेजस्वी यादव ने ट्वीट कर कहा, "मतदाता सूची पुनरीक्षण में जानबूझकर धांधली की गई है। चुनाव आयोग अपने ही वादों से पलट रहा है।" इसी तरह, दिल्ली के चुनावों में भी AAP नेता अरविंद केजरीवाल ने आरोप लगाया था कि बीजेपी के इशारे पर मतदाता सूची से नाम हटाए गए, खासकर उन क्षेत्रों में जो AAP के गढ़ माने जाते हैं।

 लोकतंत्र पर खतरा यह मामला केवल बिहार तक सीमित नहीं है। हरियाणा, मध्य प्रदेश और दिल्ली के हालिया चुनावों में भी मतदाता सूची में गड़बड़ियों की शिकायतें सामने आई हैं। विपक्ष का आरोप है कि यह एक सुनियोजित रणनीति है, जिसके तहत कुछ खास वर्गों या समुदायों के मतदाताओं को वोट देने से वंचित किया जा रहा है। सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में सख्त रुख अपनाते हुए कहा, "चूंकि यह कार्रवाई नागरिक के मताधिकार से वंचित करने जैसे गंभीर परिणाम ला सकती है, इसलिए निष्पक्ष प्रक्रिया जरूरी है।"


जनता की जीत सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले को विपक्षी दलों और सामाजिक संगठनों ने जनता की जीत करार दिया है। यह फैसला न केवल चुनाव आयोग की कार्यप्रणाली पर सवाल उठाता है, बल्कि यह भी सुनिश्चित करता है कि लोकतंत्र की बुनियाद को कमजोर करने की कोई भी कोशिश बर्दाश्त नहीं की जाएगी। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि हर मतदाता को अपने अधिकारों की जानकारी होनी चाहिए, और आयोग को पारदर्शिता के साथ काम करना होगा। 

आगे क्या? सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग को मंगलवार तक यह बताने का निर्देश दिया है कि वह पारदर्शिता के लिए और क्या कदम उठाएगा। साथ ही, यह मामला अब हरियाणा, मध्य प्रदेश और दिल्ली जैसे राज्यों में भी चर्चा का विषय बन गया है, जहां मतदाता सूची में अनियमितताओं की शिकायतें सामने आई हैं। यह घटना देश के नागरिकों के लिए एक जागने का आह्वान है कि वे अपने मताधिकार की रक्षा के लिए सतर्क रहें। 

लोकतंत्र की ताकत जनता के हाथों में है, और सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला उस ताकत को और मजबूत करता है। लेकिन सवाल यह है कि क्या यह साजिश केवल बिहार तक सीमित थी, या यह एक बड़े खेल का हिस्सा है? देश का बच्चा-बच्चा अब इस सवाल का जवाब ढूंढ रहा है।