अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने हाल ही में दावा किया कि भारत ने रूस से कच्चा तेल खरीदना बंद कर दिया है। यह बयान ऐसे समय में आया है जब अमेरिका रूस से तेल खरीदने वाले देशों पर कूटनीतिक दबाव बढ़ा रहा है। ट्रम्प ने कहा, "मैंने सुना है कि भारत अब रूस से तेल नहीं खरीदेगा। यह एक अच्छा कदम है, देखते हैं क्या होता है।" हालांकि, उन्होंने यह भी स्वीकार किया कि उन्हें इसकी सटीक जानकारी नहीं है। दूसरी ओर, भारत सरकार ने इन दावों को सिरे से खारिज करते हुए अपनी ऊर्जा नीति को राष्ट्रीय हितों और बाजार की परिस्थितियों पर आधारित बताया है।
भारत दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा तेल आयातक देश है, जो अपनी 85% तेल जरूरतों को आयात से पूरा करता है। 2022 में रूस-यूक्रेन युद्ध शुरू होने के बाद भारत ने रूस से सस्ते तेल का आयात बढ़ाया, जो जनवरी 2022 में मात्र 0.2% था और जून 2025 तक 35-40% तक पहुंच गया। रूस अब भारत का सबसे बड़ा तेल आपूर्तिकर्ता बन चुका है, जिसने इराक और सऊदी अरब को पीछे छोड़ दिया। भारत ने इस दौरान G7 और यूरोपीय संघ द्वारा लगाए गए $60 प्रति बैरल की मूल्य सीमा का पालन करते हुए तेल खरीदा, जिससे वैश्विक बाजार में तेल की कीमतें स्थिर रहीं।
हाल की कुछ मीडिया रिपोर्ट्स में दावा किया गया कि भारत की सरकारी तेल कंपनियों, जैसे इंडियन ऑयल कॉर्पोरेशन (IOC), हिंदुस्तान पेट्रोलियम (HPCL), भारत पेट्रोलियम (BPCL), और मैंगलोर रिफाइनरी (MRPL), ने पिछले एक सप्ताह से रूस से तेल खरीदना बंद कर दिया है। इसका कारण रूसी तेल पर मिलने वाली छूट में कमी और अमेरिकी दबाव को बताया गया। ट्रम्प ने 14 जुलाई 2025 को चेतावनी दी थी कि यदि रूस और यूक्रेन के बीच शांति समझौता नहीं हुआ, तो रूस से तेल खरीदने वाले देशों पर 100% टैरिफ लगाया जा सकता है। इसके अलावा, अमेरिका ने भारत के सभी निर्यातों पर 25% टैरिफ और रूस से व्यापार के लिए अतिरिक्त जुर्माने की घोषणा की है।
हालांकि, भारतीय विदेश मंत्रालय और सरकारी सूत्रों ने स्पष्ट किया कि रूस से तेल खरीद पर कोई आधिकारिक रोक नहीं लगाई गई है। विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रणधीर जायसवाल ने कहा, "भारत की ऊर्जा नीति बाजार की स्थिति, तेल की गुणवत्ता, और राष्ट्रीय हितों पर आधारित है, न कि बाहरी दबावों पर।" भारत ने रूस के साथ अपने लंबे समय से चले आ रहे रणनीतिक और आर्थिक संबंधों का बचाव करते हुए कहा कि यह व्यापार देश की ऊर्जा सुरक्षा के लिए जरूरी है।
ब्रिटेन में भारत के उच्चायुक्त विक्रम दोराईस्वामी ने भी पश्चिमी देशों की आलोचना का जवाब देते हुए कहा, "भारत अपनी अर्थव्यवस्था को भू-राजनीतिक दबावों के कारण बंद नहीं कर सकता। हम दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा ऊर्जा उपभोक्ता हैं और अपनी जरूरतों का 80% से अधिक आयात करते हैं।" उन्होंने पश्चिमी देशों के दोहरे मापदंडों पर सवाल उठाया, क्योंकि कई यूरोपीय देश भी रूस से ऊर्जा और खनिज खरीद रहे हैं।
रूस से सस्ता तेल खरीदने से भारत को महंगाई को नियंत्रित करने और आर्थिक स्थिरता बनाए रखने में मदद मिली है। यदि भारत रूसी तेल खरीदना बंद करता है, तो वैश्विक तेल की कीमतें बढ़ सकती हैं, जिसका असर पेट्रोल-डीजल की कीमतों पर पड़ेगा। विशेषज्ञों का मानना है कि रूस से तेल आयात बंद करने से भारत में पेट्रोल-डीजल की कीमतें 8-12 रुपये प्रति लीटर तक बढ़ सकती हैं। इसके बजाय, भारत अब मध्य पूर्व (जैसे अबू धाबी का मर्बन क्रूड) और पश्चिमी अफ्रीका से तेल खरीदने पर ध्यान दे रहा है, लेकिन निजी कंपनियां जैसे रिलायंस इंडस्ट्रीज और नायरा एनर्जी रूसी तेल खरीद जारी रखे हुए हैं।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी काशी में एक सभा में ट्रम्प के बयानों का अप्रत्यक्ष जवाब देते हुए कहा, "भारत वही खरीदेगा जो हमारे राष्ट्रीय हितों और आर्थिक जरूरतों के लिए जरूरी है।" यह स्पष्ट करता है कि भारत अपनी स्वतंत्र विदेश नीति और ऊर्जा सुरक्षा को प्राथमिकता देगा।
ट्रम्प का दावा कि भारत ने रूस से तेल खरीदना बंद कर दिया है, भ्रामक और आधारहीन है। भारत ने अमेरिकी दबाव के सामने झुकने से इनकार करते हुए अपनी ऊर्जा नीति को राष्ट्रीय हितों के अनुरूप बनाए रखने का फैसला किया है। रूस से तेल खरीद जारी रखने का निर्णय न केवल भारत की अर्थव्यवस्था के लिए महत्वपूर्ण है, बल्कि वैश्विक तेल बाजार की स्थिरता के लिए भी जरूरी है।