चुनावी मौसम आते ही घुसपैठ का मुद्दा एक बार फिर सुर्खियों में छा जाता है। सोशल मीडिया पर एक पोस्ट में दावा किया गया है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनकी सरकार के लिए घुसपैठ का मुद्दा केवल एक चुनावी हथकंडा है, जिसे वोटों के लिए उछाला जाता है। यह आरोप गंभीर है और सरकार की जवाबदेही पर सवाल उठाता है। आइए, इस मुद्दे को तटस्थ और तथ्यपूर्ण दृष्टिकोण से समझने की कोशिश करते हैं, बिना किसी पक्ष का समर्थन किए।
घुसपैठ: हकीकत या हथकंडा? भारत की सीमाएँ, खासकर पश्चिमी और पूर्वी क्षेत्रों में, हमेशा से घुसपैठ के लिए संवेदनशील रही हैं। केंद्र सरकार के तहत सीमा सुरक्षा बल (BSF) और अन्य सुरक्षा एजेंसियाँ सीमा की निगरानी करती हैं। फिर भी, घुसपैठ की घटनाएँ रुक नहीं रही हैं। अगर रक्षा और सुरक्षा जैसे विषय केंद्र सरकार के अधीन हैं, तो सवाल यह उठता है कि घुसपैठिए देश में प्रवेश कैसे कर पाते हैं? आलोचकों का कहना है कि सरकार इस मुद्दे को केवल चुनावी समय में उठाती है, ताकि जनता का ध्यान खींचा जा सके।
सरकार की जवाबदेही सोशल मीडिया पोस्ट में यह दावा किया गया है कि घुसपैठ का मुद्दा "चुनावी जुमला" है। यह सच हो सकता है कि कुछ राजनीतिक दल इस मुद्दे को रणनीतिक रूप से प्रचारित करते हैं। लेकिन आंकड़े बताते हैं कि बीएसएफ ने हाल के वर्षों में हजारों घुसपैठियों को पकड़ा है और कई को उनके देश वापस भेजा गया है। फिर भी, अगर घुसपैठ की घटनाएँ बार-बार हो रही हैं, तो यह सरकार की निगरानी और नीतियों पर सवाल उठाता है। केंद्र सरकार ने सीमा पर बाड़बंदी, ड्रोन निगरानी, और अन्य तकनीकी उपायों को लागू करने का दावा किया है, लेकिन इनके प्रभाव पर सवाल बने हुए हैं।
राजनीतिकरण का खेल चुनावी समय में घुसपैठ जैसे संवेदनशील मुद्दों का इस्तेमाल जनता के बीच डर या असुरक्षा की भावना पैदा करने के लिए हो सकता है। यह न केवल इस मुद्दे की गंभीरता को कम करता है, बल्कि राष्ट्रीय सुरक्षा जैसे महत्वपूर्ण विषय को राजनीतिक खेल का हिस्सा बना देता है। जनता का हक है कि वह सरकार से स्पष्ट जवाब माँगे: घुसपैठ रोकने के लिए ठोस कदम क्या उठाए जा रहे हैं? और अगर ये कदम नाकाफी हैं, तो इसके लिए जिम्मेदारी किसकी है?
घुसपैठ का मुद्दा केवल एक चुनावी नारा नहीं है; यह राष्ट्रीय सुरक्षा और सामाजिक स्थिरता से जुड़ा एक गंभीर विषय है। सरकार को इस पर ठोस और पारदर्शी कार्रवाई करनी होगी, न कि इसे केवल चुनावी रणनीति तक सीमित रखना होगा। जनता को भी चाहिए कि वह इस मुद्दे पर तथ्यपूर्ण जानकारी माँगे और सरकार से जवाबदेही की उम्मीद करे। घुसपैठ जैसे जटिल मुद्दे का समाधान केवल आरोप-प्रत्यारोप से नहीं, बल्कि नीतिगत सुधारों और प्रभावी कार्यान्वयन से ही संभव है।