भारत की राजनीति में जाति और धर्म का खेल कोई नया नहीं है। हाल के एक दृश्य ने इस सच्चाई को फिर से उजागर किया है, जिसमें राहुल गांधी, तेजस्वी यादव और मुकेश साहनी एक जीप में साथ नजर आए। इस तस्वीर ने सोशल मीडिया पर बहस छेड़ दी, जिसमें लोग सवाल उठा रहे हैं कि 18% मुस्लिम आबादी वाले बिहार में इस समूह में एक भी मुस्लिम चेहरा क्यों नहीं दिखा। राहुल गांधी की पारिवारिक पृष्ठभूमि को देखें तो उनके दादा फिरोज गांधी के धर्म (पारसी) की आबादी देश में 57,000 से भी कम है। दादी इंदिरा गांधी के धर्म को मानें तो ब्राह्मण देश में केवल 3% हैं। मां सोनिया गांधी के धर्म (ईसाई) की हिस्सेदारी भी 3% के आसपास है। इसके बावजूद राहुल गांधी कांग्रेस के राष्ट्रीय नेता हैं। दूसरी ओर, जीप में उनके साथी मुकेश साहनी की निषाद जाति बिहार में 2% और तेजस्वी यादव की यादव जाति 14% है। लेकिन बिहार की 18% मुस्लिम आबादी का कोई प्रतिनिधित्व इस तस्वीर में नहीं दिखता।
सोशल मीडिया पर तंज कसते हुए कुछ लोगों ने पूछा, "अब्दुल कहां है?" जवाब में व्यंग्य आया कि "वो नीचे लाइन लगाकर भाजपा को हराने की कोशिश कर रहा है!" यह टिप्पणी उस राजनीतिक रणनीति की ओर इशारा करती है, जिसमें विपक्षी दल मुस्लिम वोटों पर निर्भर तो रहते हैं, लेकिन नेतृत्व में मुस्लिम चेहरों को जगह देने में कंजूसी बरतते हैं। राहुल गांधी का राजनीतिक सफर भी इस बात को रेखांकित करता है। अमेठी में हार के बाद उन्होंने मुस्लिम-बाहुल्य वायनाड से जीत हासिल की। अब उनकी बहन प्रियंका वाड्रा ने भी वायनाड से चुनाव जिता है। यह रणनीति दर्शाती है कि कांग्रेस को मुस्लिम वोटों की जरूरत तो है, लेकिन मुस्लिम नेतृत्व को बढ़ावा देने में उनकी दिलचस्पी कम दिखती है। यह तस्वीर और इससे उपजी बहस भारतीय राजनीति के उस जटिल समीकरण को उजागर करती है, जहां वोट बैंक की सियासत तो चलती है, लेकिन समावेशी नेतृत्व का अभाव साफ दिखता है। क्या विपक्ष इस सवाल का जवाब दे पाएगा कि "अब्दुल" को सिर्फ वोटर बनकर रहना होगा या उसे नेतृत्व में भी जगह मिलेगी?