बिहार की सियासत में 2025 का विधानसभा चुनाव एक रोमांचक और जटिल सियासी समर बनने जा रहा है। राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) में नीतीश कुमार, चिराग पासवान और जीतन राम मांझी जैसे सहयोगी तो हैं, लेकिन इनके बीच की रणनीतिक खींचतान भारतीय जनता पार्टी (BJP) के लिए मुश्किलें खड़ी कर सकती है। जहां BJP अपनी पकड़ मजबूत करने की कोशिश में है, वहीं नीतीश की सियासी चालें और चिराग-मांझी की स्वतंत्र रणनीति NDA को बहुमत से दूर ले जा सकती है। क्या BJP 50 सीटों पर सिमट जाएगी, या नीतीश की लंबी रेस NDA को बचा लेगी?
NDA का समीकरण: एकजुटता या अंतर्कलह? 2020 के विधानसभा चुनाव में NDA ने 125 सीटें जीतकर सरकार बनाई थी, जिसमें BJP को 74, JD(U) को 43, और अन्य सहयोगियों को बाकी सीटें मिली थीं। लेकिन इस बार समीकरण अलग हैं। नीतीश कुमार की JD(U), चिराग पासवान की लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) (LJP-R), और जीतन राम मांझी की हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा (HAM) भले ही NDA के साथ हों, लेकिन इनके अपने-अपने सियासी हित BJP के लिए चुनौती बन सकते हैं। X पर कुछ यूजर्स का कहना है कि अगर नीतीश, चिराग और मांझी अपनी शर्तों पर अड़े रहे, तो BJP के लिए 50 सीटों पर सिमटने का खतरा बढ़ सकता है।
नीतीश कुमार: लंबी रेस का घोड़ा नीतीश कुमार की सियासी चतुराई बिहार में जगजाहिर है। 2022 में BJP से नाता तोड़कर RJD के साथ जाने और फिर 2024 में NDA में वापसी करने वाले नीतीश ने बार-बार अपनी रणनीतिक कुशलता साबित की है। उनकी साइकिल योजना, शराबबंदी और बुनियादी ढांचे जैसे काम उनकी लोकप्रियता का आधार हैं। लेकिन नीतीश की अनिश्चितता BJP के लिए सबसे बड़ी चुनौती है। कुछ विश्लेषकों का मानना है कि नीतीश अपनी पार्टी को मजबूत करने के लिए BJP को कम सीटों पर दबाव डाल सकते हैं, जिससे गठबंधन में तनाव बढ़ सकता है।
चिराग और मांझी: BJP के लिए दोधारी तलवार चिराग पासवान और जीतन राम मांझी NDA के महत्वपूर्ण सहयोगी हैं, लेकिन इनका स्वतंत्र रुख BJP की रणनीति को प्रभावित कर सकता है। चिराग की LJP-R पासवान वोट बैंक पर मजबूत पकड़ रखती है, जो करीब 6% वोट शेयर का हिस्सा है। 2020 में चिराग ने BJP के खिलाफ बगावत कर JD(U) के खिलाफ उम्मीदवार उतारे थे, जिससे नीतीश की सीटें घटी थीं। इस बार चिराग NDA के साथ हैं, लेकिन उनकी महत्वाकांक्षा और नीतीश के साथ पुरानी तल्खी BJP के लिए मुश्किलें खड़ी कर सकती है। इसी तरह, मांझी की HAM दलित वोटों, खासकर मुसहर समुदाय, में प्रभाव रखती है। मांझी ने हाल ही में अपने समुदाय के लिए आरक्षण और कल्याण योजनाओं की मांग उठाई है, जिसे BJP को मानना पड़ सकता है। X पर कुछ पोस्ट्स में दावा किया गया है कि अगर चिराग और मांझी अपनी शर्तों पर सीट बंटवारे में दबाव बनाते हैं, तो BJP को 90-100 सीटों से कम पर समझौता करना पड़ सकता है।
BJP की रणनीति: खेल में उलझन BJP बिहार में अपनी स्थिति को और मजबूत करना चाहती है। 2024 के लोकसभा चुनाव में NDA ने 40 में से 30 सीटें जीती थीं, जिसमें BJP और JD(U) को 12-12 सीटें मिली थीं। लेकिन विधानसभा में BJP ज्यादा सीटों पर दावेदारी चाहती है। कुछ सूत्रों के मुताबिक, BJP 100-110 सीटों पर लड़ना चाहती है, जबकि नीतीश 90-95 सीटों की मांग कर सकते हैं। चिराग और मांझी को 10-15 सीटें देना BJP के लिए आसान नहीं होगा। अगर सीट बंटवारे में तनाव बढ़ता है, तो NDA का वोट शेयर बंट सकता है, जिससे विपक्ष को फायदा होगा।
विपक्ष का दांव: महागठबंधन की चुनौती RJD और कांग्रेस का इंडिया गठबंधन इस बार आक्रामक रणनीति पर है। RJD ने महिलाओं के लिए माई-बहन मान योजना (2,500 रुपये मासिक), मुफ्त बिजली और रोजगार जैसे वादों से वोटरों को लुभाने की कोशिश की है। X पर कुछ यूजर्स का दावा है कि महागठबंधन 140-150 सीटें जीत सकता है, अगर NDA में अंतर्कलह बढ़ती है। तेजस्वी यादव की युवा अपील और नीतीश के खिलाफ उनकी आक्रामकता विपक्ष को मजबूत बनाती है।
बाजी कौन मारेगा? बिहार का सियासी रणक्षेत्र अब एक जटिल शतरंज का खेल बन चुका है। नीतीश कुमार की चतुराई, चिराग पासवान और जीतन राम मांझी की स्वतंत्र रणनीति, और BJP की महत्वाकांक्षा इस चुनाव को अनिश्चितता से भर देती है। अगर NDA एकजुट रहता है, तो वह सरकार बना सकता है, लेकिन नीतीश, चिराग और मांझी की शर्तें BJP के लिए खेल बिगाड़ सकती हैं। क्या BJP 50 सीटों पर सिमट जाएगी, या नीतीश की लंबी रेस NDA को बचा लेगी? यह सवाल बिहार की जनता और समय ही तय करेगा।