नई दिल्ली: गुजरात के बोटाद जिले में एक 17 वर्षीय नाबालिग लड़के पर पुलिस हिरासत में यातना और यौन शोषण का एक चौंकाने वाला मामला सुप्रीम कोर्ट के समक्ष आया है। नाबालिग के परिवार का आरोप है कि बोताद पुलिस ने उसे चोरी के संदेह में अवैध हिरासत में रखा और क्रूरता से पीटा, जिसमें लाठियां उसके गुदा में डालकर यौन शोषण भी किया गया। इस घटना के कारण लड़के की हालत बिगड़ गई और वह वर्तमान में अहमदाबाद के जायडस अस्पताल में गंभीर स्थिति में भर्ती है। सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को इस मामले की याचिका पर सुनवाई करते हुए सहानुभूति जताई, लेकिन सीधे हस्तक्षेप से इनकार कर दिया। कोर्ट ने याचिकाकर्ता को गुजरात हाईकोर्ट जाने का निर्देश दिया। याचिका नाबालिग की बहन ने दायर की थी, जिसमें सीबीआई या विशेष जांच दल (एसआईटी) से जांच, एआईआईएमएस दिल्ली द्वारा मेडिकल बोर्ड गठन और आरोपी पुलिसकर्मियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की मांग की गई थी।
घटना का विवरण घटना अगस्त 2025 की है। पुलिस का दावा है कि 18 अगस्त को बोताद टाउन पुलिस ने एक मेले से नाबालिग को सोने और नकदी चोरी के संदेह में हिरासत में लिया। लेकिन परिवार के अनुसार, 19 से 28 अगस्त तक उसे अवैध हिरासत में रखा गया। इस दौरान चार से छह पुलिसकर्मियों ने उसे बुरी तरह पीटा और यौन शोषण किया। नाबालिग को नाबालिग होने के बावजूद 24 घंटे के अंदर मजिस्ट्रेट या जुवेनाइल जस्टिस बोर्ड के समक्ष पेश नहीं किया गया। कोई मेडिकल जांच भी नहीं हुई। परिवार ने बताया कि नाबालिग के दादा को भी 21 अगस्त को हिरासत में लिया गया और उनसे 50,000 रुपये ऐंठ लिए गए। घटना के बाद नाबालिग की किडनी डैमेज हो गई, जिसके कारण वह डायलिसिस पर है। अस्पताल ने परिवार को टॉक्सिकोलॉजी रिपोर्ट देने से इनकार कर दिया। परिवार ने आरोप लगाया कि आरोपी पुलिसकर्मी अस्पताल पहुंचकर धमकी दे रहे हैं।
आरोपी और एफआईआर गुजरात पुलिस ने 14 सितंबर को नाबालिग के बयान पर एफआईआर दर्ज की। इसमें बोताद टाउन पुलिस स्टेशन के चार पुलिसकर्मी—कौशिक जानी (कांस्टेबल), अजय राठौड़ (सहायक सब-इंस्पेक्टर), योगेश सोलंकी (कांस्टेबल), कुलदीपसिंह वाघेला (कांस्टेबल)—और एक अन्य व्यक्ति शामिल हैं। एफआईआर भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस), पॉस्को एक्ट और जुवेनाइल जस्टिस एक्ट के तहत दर्ज की गई है। बोताद डिप्टी एसपी महर्षि रावल ने कहा कि जांच जारी है और सीसीटीवी फुटेज की जांच की जा रही है। पुलिस स्टेशन के कैमरे उस समय काम कर रहे थे, जब कथित अत्याचार हुआ। याचिकाकर्ता के वकील ने सुप्रीम कोर्ट से सीसीटीवी फुटेज संरक्षित करने का अनुरोध किया, ताकि हाईकोर्ट जाने तक सबूत नष्ट न हो। कोर्ट ने कहा कि समय पर हाईकोर्ट जाएं तो फुटेज सुरक्षित रहेगी।
सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी सुनवाई के दौरान जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस संदीप मेहता की बेंच ने कहा, "हमें आपकी सहानुभूति है, लेकिन पहले गुजरात हाईकोर्ट जाएं।" वकील रोहिन भट्ट ने तर्क दिया कि यह मामला पूरे देश में नाबालिगों पर पुलिस अत्याचार का उदाहरण है, लेकिन कोर्ट ने याचिका वापस लेने की अनुमति दी और हाईकोर्ट जाने की छूट दी। यह घटना पुलिस हिरासत में मानवाधिकार उल्लंघन को उजागर करती है। मानवाधिकार संगठन माइनॉरिटी कोऑर्डिनेशन कमिटी ने डीजीपी को पत्र लिखकर जांच की मांग की थी। विशेषज्ञों का मानना है कि इस तरह के मामलों में तत्काल स्वतंत्र जांच जरूरी है ताकि दोषियों को सजा मिले और भविष्य में ऐसी घटनाएं रोकी जा सकें।