एक मानवाधिकार संगठन ने सूचना दी है कि सऊदी अरब की एक अदालत ने समाजिक कार्यकर्ताओं और आले सऊद शासन से नाराज़ लोगों का दमन जारी रखते हुए एक ताज़ा मामले में सोशल मीडिया पर अपनी राय रखने वाली एक महिला को 45 साल की जेल की सज़ा सुनाई है।
सऊदी अरब का मानवाधिकारों की श्रेणी में एक काला रिकॉर्ड है और पिछले वर्षों में, ग़ैर-कानूनी तरीक़ों से दी गई मौत की सज़ाएं, यातनाएं, मनमानी गिरफ़्तारियां, ख़ुफ़िया एजेंसियों द्वारा आम लोगों का अपहरण, राजनीतिक और मानवाधिकार कार्यकर्ताओं की हिरासत और धार्मिक अल्पसंख्यकों की वैध मांगों के दमन सऊदी अरब में आम बात होती जा रही है। आले सऊद शासन दुनिया के हर तरह के मानवाधिकारों का खुले आम उल्लंघन करता रहता है, इसकी वजह यह भी है कि वह अपने जुर्मों और अपराधों को पैसे के बोझ से दबा देता है। बुधवार को रॉयटर्स की रिपोर्ट के मुताबिक़, "नूरा बिन्त सईद अल-क़हतानी" को सऊदी अरब के विशेष आपराधिक न्यायालय ने हाल के दिनों में "सऊदी समाज के सिद्धांतों का उल्लंघन करने के लिए इंटरनेट का उपयोग करने" और "सोशल मीडिया का उपयोग करके सार्वजनिक नियमों की अनदेखी" करने के लिए 45 साल की सज़ा सुनाई है।
इस बीच सऊदी अरब के सरकारी मीडिया ने नूरा बिन्त सईद अल-क़हतानी की गिरफ़्तारी के संबंध में कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है। वहीं आले सऊद शासन के किसी भी अधिकारी ने इस बारे में बोलने से इंकार किया है। जबकि मानवाधिकार संगठन "डॉन" ने सोशल नेटवर्क पर क़हतानी और उनकी पोस्ट के बारे में जानकारी शेयर की है। ग़ौरतलब है कि सऊदी अरब के आल सऊद शासन की एक दिखावटी अदालत ने अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन की रियाज़ यात्रा के तुरंत बाद ही एक दो बच्चों की मां सलमा शहाब को उनके ट्वीट्स की वजह से 34 साल की सज़ा सुनाई थी। सलमा शहाब के ख़िलाफ़ सऊदी अदालत द्वारा सुनाई गई सज़ा को अभी कुछ ही समय गुज़रा था कि अदालत ने एक बार फिर नूरा बिन्त सईद अल-क़हतानी नामक महिला को 45 साल क़ैद की सज़ा सुना दी है। (RZ)