यूरोपीय देशों में आर्थिक स्थिति इतनी ख़राब हो गई है कि 1982 के बाद पहली बार ब्रिटेन में मुद्रास्फीति दर 10 प्रतिशत तक पहुंच गई है जबकि स्वीडन के प्रधान मंत्री ने युद्ध अर्थव्यवस्था की बात तक कह डाली।
वाशिंगटन की नीतियों के बाद और यूक्रेन पर रूस के हमले के जवाब में यूरोपीय देशों ने यूक्रेन की मदद करने और मॉस्को पर दबाव डालने के उद्देश्य से मास्को के ख़िलाफ व्यापक आर्थिक प्रतिबंध लगाए हैं जिनमें से ऊर्जा क्षेत्र पर प्रतिबंध सबसे महत्वपूर्ण हैं।
इन देशों ने यूक्रेन में हथियारों और युद्ध सहायता के प्रावधान के लिए अपने बजट का एक बड़ा हिस्सा भी आवंटित किया है। इन नीतियों के क्रियान्वयन से अधिकांश यूरोपीय देशों में आर्थिक स्थितियां अत्यंत ख़राब और कठिन हो गई हैं।
कोविड-19 महामारी के दो साल बाद आर्थिक विकास में कमी और बेरोज़गारी और मुद्रास्फीति में वृद्धि का सामना कर रही वैश्विक अर्थव्यवस्था की स्थिति, रूस और यूक्रेन के बीच युद्ध की शुरुआत की वजह से पिछले छह महीनों के दौरान और भी अधिक संकट में आ गई है जबकि यूरोपीय और अमेरिकी देशों को यूक्रेन युद्ध में प्रतिबंध नीतियों के साथ रूस को हराने की उम्मीद थी और अब वे बुरी तरह से दलदल में फंस चुके हैं।
इन प्रतिबंधों की आलोचना करते हुए एक बयान में रूसी विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता मारिया ज़ाखारोवा ने कहा कि यूरोपीय संघ इस काम के साथ ख़ुद को बंद गली तक ले जा रहा है, यूरोपीय संघ के इन प्रतिबंधों के दुर्भाग्यपूर्ण परिणाम वैश्विक अर्थव्यवस्था और सुरक्षा के कई क्षेत्रों को प्रभावित करेंगे और यह मुद्दा दुनिया के सामने धीरे धीरे आ रहा है।
रूसी गैस पर यूरोप की निर्भरता और रूस द्वारा यूरोप को गैस निर्यात को कम करने से इन देशों में ईंधन की क़मतों में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है। ठंड के मौसम में गैस की आपूर्ति और इसके भंडारण का मुद्दा अब यूरोपीय अधिकारियों के लिए एक गंभीर चिंता का विषय बन गया है। जैसा कि स्वीडन के प्रधान मंत्री ने कहा है कि उनका देश ऊर्जा क्षेत्र में युद्ध अर्थव्यवस्था जैसी स्थिति में पहुंच गया है क्योंकि स्वीडन में बिजली और गैस की क़ीमत अभूतपूर्व स्तर तक बढ़ गई है।
ऊर्जा डेटा की कीमत में वृद्धि ने अन्य यूरोपीय देशों में भी तनाव पैदा कर दिया है और यूरोपीय अधिकारियों ने सामाजिक विरोध की शुरुआत के प्रति चेतावनी दी है। (AK)