ईरान के वित्त मंत्रालय ने एक रिपोर्ट में पंद्रह पड़ोसी देशों के साथ ईरान के व्यापार में आने वाली तेज़ी की रिपोर्ट दी है। पड़ोसी देशों के साथ व्यापार बढ़ाना ईरान की वर्तमान सरकार की घोषित प्राथमिकता है और नज़र आ रहा है कि सरकार इस दिशा में प्रभावी रूप से आगे बढ़ रही है।
राष्ट्रपति सैयद इब्राहीम रईसी ने तेरहवीं सरकार का कार्यकाल शुरू होने के समय ही एलान कर दिया था कि आर्थिक विकास के लक्ष्यों को पूरा करने के लिए जो नीतियां अपनाई जाएंगी उनमें एक पड़ोसी देशों के साथ व्यापार बढ़ाना है। राष्ट्रपति रईसी ने इसके लिए ठोस कार्यक्रम और रोडमैप तैयार करवाया।
विदेश मंत्रालय ने आर्थिक डिप्लोमैसी पर अपना काम तेज़ किया और नतीजा देने वाले सरोकार तैयार किए। इस बारे में पड़ोसी देशों को भी कार्यक्रमों से आगाह किया गया और उन्होंने इसका स्वागत किया।
इसी रुजहान के तहत आयात और निर्यात की प्रक्रिया में मौजूद बहुत सी समस्याओं और अड़चनों को दूर किया गया। यह रणनीति दरअस्ल पश्चिमी देशों की ओर से लगाए गए अन्यायपूर्ण प्रतिबंधों को नाकाम बनाने का रास्ता भी है जो कामयाब हो रही है।
पड़ोसी देशों के साथ व्यापार को बढ़ावा मिला है। पिछले साल के दौरान ईरान ने 15 पड़ोसी देशों के साथ व्यापार में 14 दशमलव 5 प्रतिशत की वृद्धि की। इन देशों के साथ ईरान का ग़ैर पेट्रोलियम ट्रेड देश के कुल विदेशी व्यापार का 52 प्रतिशत थी।
इन देशों में इमारात, पाकिस्तान, अफ़ग़ानिस्तान, बहरैन, क़तर, कुवैत, आर्मेनिया, आज़रबाइजान गणराज्य, रूस, तुर्की, क़ज़ाक़िस्तान, तुर्कमेनिस्तान, ओमान, सऊदी अरब रहे हैं।
ईरान की इस्लामी क्रांति के नेता आयतुल्लाहिल उज़मा भी इस बात पर ज़ोर देते रहे हैं कि पड़ोसी देशों के साथ व्यापार को बढ़ावा दिया जाए।
दरअस्ल ईरान की इस रणनीति के कई आयाम हैं। इस तरह का माहौल तैयार होने से जहां एक तरफ़ आर्थिक हित पूरे होते हैं वहीं क्षेत्रीय शांति व स्थिरता को भी मज़बूती मिलती है। क्षेत्रीय शांति व स्थिरता का मसला इतना अहम है कि अगर इसे सही ढंग से संभाल लिया जाए तो बाहरी ताक़तों को हस्तक्षेप का मौक़ा नहीं मिला। विभाजन और टकराव की परिस्थितियों का बाहरी पश्चिमी ताक़तों ने हमेशा दुरुपयोग किया है बल्कि बहुत से मामलों में तो यह देखा गया कि मतभेद और विवाद को भड़काने में कुछ पश्चिमी देशों की भूमिका रही। इसकी वजह यही है कि तनाव और टकराव के हालात में बड़ी ताक़तों को पांव जमाने का मौक़ा मिल जाता है।
ईरान की शुरू से यह रणनीति है कि क्षेत्र के देशों के पास यह क्षमता है कि वे आपसी सहयोग से क्षेत्रीय शांति व सुरक्षा को सुनिश्चित कर सकते हैं। वैसे भी इस समय जब दुनिया के हालात बदल रहे हैं और दुनिया बहुध्रुवीय व्यवस्था की दिशा में आगे बढ़ रही है तो क्षेत्रीय देशों के आपसी समन्वय और सहयोग की ज़रूरत और भी बढ़ जाती है।