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Tuesday, 21 January 2025

नेतन्याहू सबसे कमज़ोर पोज़ीशन में कैसे पहुंचे?

नेतन्याहू सबसे कमज़ोर पोज़ीशन में कैसे पहुंचे?
    आंतकवाद का दूसरा नाम नेतन्याहू सबसे कमज़ोर पोज़ीशन में कैसे पहुंचे?

पार्सटुडे- ज़ायोनी विश्लेषकों का मानना ​​है कि प्रधानमंत्री बेन्यामीन नेतन्याहू इस वक़्त सबसे कमज़ोर पोज़ीशन में हैं और जनता को एक ऐसे समझौते के बारे में समझाना चाहते हैं जिसे वह खुद स्वीकार नहीं करते।

ज़ायोनी विशेषज्ञों का मानना ​​है कि प्रधानमंत्री बेन्यामीन नेतन्याहू युद्धविराम के सकारात्मक दृष्टिकोण और क़ैदियों की अदला-बदली के बारे में ज़ायोनियों की राय को समझाने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन ऐसा लगता है कि वह ख़ुद ही इस पर विश्वास नहीं करते।

पार्सटुडे के अनुसार, पत्रकार और ज़ायोनी शासन के प्रसिद्ध विश्लेषक "तामिर अल-मिसहाल" का कहना है कि ज़ायोनी शासन ने क़ैदियों के आदान प्रदान के समझौते के कार्यान्वयन के मार्ग में रोड़े अटकाने के मक़सद से प्रतिरोध की कार्यवाहियों में रुकावटें पैदा करने के लिए से दो दिन पहले क्षेत्र में शांति स्थापित नहीं की ।

उन्होंने स्पष्ट किया कि आदान-प्रदान के पहले चरण में 33 ज़ायोनी कैदियों की रिहाई शामिल है जिसमें प्राथमिकता के क्रम में नागरिक महिलाएं और सैन्य महिलाएं और पुरुष और मृतकों के शव शामिल हैं।

हर ज़ायोनी महिला क़ैदी के बदले में 30 फ़िलिस्तीनी महिला क़ैदियों को आज़ाद किया जाना है जबकि हर सैन्य महिला क़ैदी के बदले 30 फिलिस्तीनी महिला कैदियों और बड़ी सज़ा वाले 20 कैदियों को आज़ाद किया जाएगा।

"अल-मिसहाल" का कहना है कि प्रतिरोध मृत क़ैदियों के शवों की अदला-बदली के विचार का विरोध करता है और 7 अक्टूबर, 2023 के बाद गिरफ्तार सभी महिलाओं और बच्चों की रिहाई के बदले में ज़ायोनी कैदियों के शवों को सौंप देगा।

ज़ायोनी विशेषज्ञ "मुहन्नद मुस्तफ़ा" का भी मानना ​​है कि राजनीति की दुनिया में प्रवेश करने के बाद से नेतन्याहू अपनी सबसे कमज़ोर और नाज़ुक पोज़ीशन में हैं।

मुस्तफ़ा कहते हैं: नेतन्याहू अपने भाषण में बहुत कमज़ोर नज़र आए और ज़ायोनी जनता को एक ऐसे समझौते को स्वीकार करने के लिए मनाने की कोशिश कर रहे थे जिसे सभी जानते हैं कि वह स्वीकार नहीं करते हैं और आंतरिक और बाहरी दबावों के कारण उन्हें स्वीकार करने के लिए मजबूर होना पड़ा।

राजनीतिक मुद्दों के एक अन्य विशेषज्ञ "सईद ज़ियाद" का मानना ​​है कि नेतन्याहू ग़ज़ा में युद्ध की समाप्ति का एलान नहीं कर सकते क्योंकि इससे उन्हें अदालत में फंसना पड़ेगा।

व्यापक रक्तपात और भीषण युद्ध के बाद, ज़ायोनी शासन और हमास आंदोलन के बीच पंद्रह महीने के युद्ध अपराधों और नरसंहार के बाद रविवार को युद्धविराम समझौता लागू हो गया। एक समझौता जिसे ज़ायोनी शासन के प्रमुखों ने प्रतिरोधकर्ताओं के ख़िलाफ़ हार क़रार दिया है। (AK)