तमिलनाडु के बाद केरल विधानसभा ने भी केंद्र से यूजीसी मसौदा गाइडलाइंस को वापस लेने की मांग करने वाला प्रस्ताव पास किया है.
सदन ने केंद्र के फ़ैसले को उच्च शिक्षा के व्यावसायीकरण की कोशिश क़रार दिया है.
इस प्रस्ताव को पेश करने वाले मुख्यमंत्री पिनराई विजयन ने कहा कि अनुच्छेद 32 की सातवीं अनुसूची के अनुसार, विश्वविद्यालयों को स्थापित करने और चलाने की ज़िम्मेदारी राज्यों की है.
केरल के उच्च शिक्षा मंत्री आर बिंदू ने बीबीसी हिंदी से कहा, “मसौदा गाइडलाइंस स्पष्ट रूप से शक्तियों के अति केंद्रीकरण को दिखाता है. हम राज्य के विश्वविद्यालयों पर पैसे खर्च कर रहे हैं. हमने इस साल 1,833 करोड़ रुपये खर्च किए और कहा जा रहा है कि प्रदेश के विश्वविद्यालयों पर हमारा कोई हक़ नहीं है.”
विधानसभा में पास प्रस्ताव में कहा गया है, “विश्वविद्यालयों और अन्य उच्च शिक्षा संस्थानों को चलाने पर लगभग 80 प्रतिशत खर्च राज्य सरकारें करती हैं. विश्वविद्यालयों की गुणवत्ता सुधारने और उन्हें चलाने के खर्च में राज्य सरकारों की बड़ी भूमिका है.”
“इस सब को नज़रअंदाज कर दिया गया है और इस सदन की राय है कि कुलपतियों की नियुक्ति और शिक्षकों की योग्यता और सेवा शर्तों को हटाने का केंद्र सरकार और यूजीसी का नज़रिया अलोकतांत्रिक है. इसे सुधारने की ज़रूरत है. इसका मकसद विश्वविद्यालयों में शिक्षाविदों की जगह प्राइवेट सेक्टर से व्यक्तियों को वाइस चांसलर नियुक्त किए जाने का है.”
“यह पहल उच्च शिक्षा का व्यावसायीकरण करने के लिए है. यह बेहद आपत्तिजनक है. यूजीसी नॉर्म्स 2025 के मसौदे को उच्च शिक्षा में लोकतांत्रिक मूल्यों को नष्ट करने और धार्मिक और सांप्रदायिक विचारों को बढाने के क़दम के रूप में देखा जा सकता है.”
बिंदू ने कहा कि ‘यह मौजूदा सामाजिक राजनीतिक हालात में उच्च शिक्षा का भगवाकरण किए जाने का स्पष्ट संकेत है. वाइस चांसलर और असिस्टेंट प्रोफ़ेसर के लिए अकादमिक योग्यता में ढील इसका स्पष्ट प्रमाण है.’
तमिलनाडु विधानसभा ने भी इसी तरह का प्रस्ताव पास किया है और केंद्र से यूजीसी गाइडलाइंस को वापस लेने की मांग की है.
तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन ने ग़ैर बीजेपी राज्यों से इसी तरह के प्रस्ताव पास करने की अपील की है.