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Sunday, 9 March 2025

चीन, रूस और ईरान 'चाबहार के नज़दीक' करेंगे साझा सैन्य अभ्यास, क्या हैं मायने?

चीन, रूस और ईरान 'चाबहार के नज़दीक' करेंगे साझा सैन्य अभ्यास, क्या हैं मायने?
रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन, ईरान के सुप्रीम लीडर आयतुल्लाह अली ख़ामेनेई और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग

चीन के रक्षा मंत्रालय ने घोषणा की है कि उनका देश जल्द ही ईरान और रूस के साथ साझा नौसैनिक युद्धाभ्यास करेगा.

चीनी रक्षा मंत्रालय ने एक आधिकारिक बयान जारी कर कहा है कि ये अभ्यास ईरान के पास समुद्र में किया जाएगा.

वहीं ईरान की न्यूज़ एजेंसी तस्नीम का कहना है कि ये सैन्य युद्धाभ्यास सोमवार से ईरान के दक्षिणपूर्व में 'चाबहार बंदरगाह के नज़दीक' ओमान की खाड़ी में शुरू होगा.

हाल के सालों में ईरान, रूस और चीन के बीच संयुक्त नौसैनिक अभ्यास लगातार आयोजित किये जाते रहे हैं. लेकिन मौजूदा युद्धाभ्यास ऐसे वक्त हो रहा है जब इसराइल और अमेरिका ने हाल के महीनों में बार-बार धमकी दी है कि ईरान के परमाणु कार्यक्रम को रोकने के लिए उस पर हमला किया जा सकता है.
साल 2021 में रूस और चीन के बीच हुए साझा नौसेना अभ्यास की तस्वीर

अगले सप्ताह से शुरू होने वाले सैन्य युद्धाभ्यास में "चीन और रूस के युद्धपोत और उनकी मदद करने वाले जहाज़ों के साथ-साथ सैनिक हिस्सा लेंगे. ईरान की तरफ से नौसेना के अलावा उसकी एलीट फोर्स कहे जाने वाले रेवॉल्यूशनरी गार्ड्स भी हिस्सा लेंगे."

तस्नीम न्यूज़ एजेंसी के अनुसार आधा दर्जन देश बतौर पर्यवेक्षक इस सैन्य युद्धाभ्यास में शामिल होंगे. ये हैं- अज़रबैजान, दक्षिण अफ़्रीका, पाकिस्तान, क़तर, इराक़, संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) और श्रीलंका.

समाचार एजेंसी एएफ़पी के अनुसार इसका उद्देश्य आपसी सहयोग बढ़ाना बताया गया है. हाल के सालों में इन तीनों मुल्कों की सेनाएं इस तरह के युद्ध अभ्यास करती रही हैं.

वहीं तस्नीम समाचार एजेंसी का कहना है कि ये सैन्य अभ्यास "हिंद महासागर के उत्तर में" होगा और इसका उद्देश्य "इलाक़े की सुरक्षा और हिस्सा लेने वाले मुल्कों के बीच बहुपक्षीय सहयोग बढ़ाना है."

अमेरिका- ईरान तनाव में ट्रंप की एंट्री
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप का कहना है कि उन्होंने ईरान को खत लिखकर उसे बातचीत के लिए आमंत्रित किया है. मगर ईरान ने साफ मना कर दिया हे

बीते दिनों अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने कहा था कि उन्होंने ईरान के सुप्रीम लीडर को एक चिट्ठी लिखकर परमाणु कार्यक्रम पर चर्चा के लिए कहा था.

अमेरिका की इस पेशकश को ईरान के ठुकराने के एक दिन बाद ईरान, रूस और चीन के बीच नए सैन्य अभ्यास की ख़बर आई है.

ईरान के सर्वोच्च नेता आयतुल्लाह अली ख़ामेनेई ने ईरान के परमाणु कार्यक्रम पर ट्रंप के प्रस्ताव को "अत्याचारी" कह कर खारिज कर दिया था.

हालांकि ईरानी विदेश मंत्री अब्बास अराक्ची ने पहले कहा था कि ईरान के सर्वोच्च नेता को डोनाल्ड ट्रंप का पत्र "अभी तक नहीं मिला है".

दो दिन पहले, व्हाइट हाउस में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस हुई थी जो मुख्य रूप से अमेरिका की आर्थिक स्थिति पर केंद्रित थी. इस दौरान ट्रंप ने कहा था कि "आप जल्द ही ईरान के बारे में न्यूज़ सुनेंगे, बहुत जल्द."

इसी दौरान ट्रंप ने कहा कि उन्होंने ईरान के सुप्रीम लीडर आयतुल्लाह अली ख़ामेनेई को एक पत्र लिखकर उन्हें बातचीत के लिए आमंत्रित किया है. हालांकि उस समय संयुक्त राष्ट्र में ईरान के मिशन ने कहा था कि उन्हें ट्रंप का कोई पत्र नहीं मिला है.

लेकिन इस ख़बर के आने के बाद ख़ामेनेई ने अपने ताज़ा बयान में अमेरिका की आलोचना की और कहा "सरकार पर दबाव डालकर" ईरान को बातचीत की मेज़ तक नहीं लाया जा सकता.

उन्होंने ईरान के साथ हुए परमाणु समझौते (जेसीपीओए) के तहत प्रतिबद्धताओं को लागू करने में ईरान की विफलता की आलोचना करने के लिए यूरोपीय देशों को "अंधा और बेशर्म" कहा.
एक-एक कदम बढ़ते रूस और ईरान
नवंबर 2015 में रूसी राष्ट्रपति पुतिन ईरान दौरे पर गए थे जहां उन्होंने ईरान के तत्कालीन राष्ट्रपति हसन रूहानी से मुलाक़ात की थी.

यह पहली बार नहीं है जब ईरान, रूस और चीन एक-दूसरे के साथ साझा नौसैनिक अभ्यास कर रहे हैं. यूक्रेन पर रूस के हमले के बाद से ईरान और चीन पर रूस को सैन्य मदद मुहैया कराने का आरोप लगता रहा है.

लगभग एक साल पहले मार्च 2024 में और लगभग दो साल पहले मार्च 2023 में इन तीनों देशों ने चार-चार दिवसीय नौ सैनिक युद्धाभ्यास किया था. दोनों बार ये आयोजन हिंद महासागर क्षेत्र के उत्तर में ओमान की खाड़ी के पास हुआ था.

"मरीन सिक्योरिटी बेल्ट 2023 और 2024" नाम के इस युद्धाभ्यास में ईरानी नौसेना और रिवॉल्यूशनरी गार्ड कॉर्प्स दोनों ने भाग लिया था.
हालांकि इससे पहले भी ये तीनों इस तरह के सैन्य अभ्यास करते रहे हैं.

इन अभ्यासों के लिए अक्सर ओमान की खाड़ी के पास की जगह को चुना जाता है, जो फारस की खाड़ी और होर्मुज जलडमरूमध्य के मार्ग पर है. ये रणनीतिक तौर पर अहम जलमार्ग है क्योंकि इसके ज़रिए वैश्विक बाजारों तक तेल की आपूर्ति होती है. विश्व के कुल तेल का लगभग पांचवां हिस्सा इसी रास्ते गुज़रता है.