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Saturday, 5 April 2025

"1925-2025: जन्नतुल बक़ी पर सदी भर का सितम"

"1925-2025: जन्नतुल बक़ी पर सदी भर का सितम"
जन्नतुल बक़ी 1925 से पहले ओर 1925 के बाद की तस्वीर 
 
  जन्नतुल बक़ी (मदीना, सऊदी अरब में स्थित एक ऐतिहासिक कब्रिस्तान)  है। ओर मुस्लिम जगत मे ऐक बहुत महत्वपूर्ण हे 
जन्नतुल बक़ी पर 1925 से 2025 तक क्या हुआ?

जन्नतुल बक़ी, इस्लाम के सबसे पुराने और महत्वपूर्ण कब्रिस्तानों में से एक है, जहां पैगंबर मुहम्मद (स.अ.व.)
की बेटी जनाबे फातिमा जहरा सलामुलाह ओर उन्के नवासा हजरत इमाम हसन अ,स, हजरत इमाम हुसैन अ,स, का बेटा हजरत इमाम जयनुल आबेदिन अ,स, हजरत इमाम मोहम्मद बाकिर अ,स, ओर हजरत इमाम जाफर सादिक अ,स, की कब्र मुबारक हे ओर उनपर मजार बनी हुई थी। 

ओर पैगंबर साहब के कई रिश्तेदार और सहाबी दफन हैं। 1925 में मदीना के उसी जन्नतुल बक़ी मे  ऐक अफसोस नाक   घटना घटी  जिससे विश्व भर के मुस्लिम समुदाय को झकझोर कर रख दिया 

1925 में विध्वंस: 21 अप्रैल 1925 को, सऊदी शासकों (अब्दुल अजीज इब्न सऊद) ने वहाबी विचारधारा के प्रभाव में जन्नतुल बक़ी में मौजूद मकबरे और गुंबदों को ढहा दिया। यह कदम इस्लामिक इतिहास में जुल्म सितम की ईनतेहा बनकर रह गई 

 शिया और मुस्लिम समुदायों के लोग इसे पवित्र स्थलों के अपमान के रूप में देखते हैं। इस घटना को "8 शव्वाल" यौम अल गम यानी गम का दिन के नाम से भी जाना जाता है, जो इस्लामी कैलेंडर में उस दिन की तारीख थी। 
पहले थी ए मजार जो जालिम के जुल्म की भेंट चड गई 

1925 के बाद: इसके बाद से जन्नतुल बक़ी एक सादा कब्रिस्तान बना रहा, जहां कोई स्मारक या संरचना दोबारा नहीं बनाई गई। सऊदी सरकार ने इसे सख्त नियंत्रण में रखा, और वहां मरम्मत या पुनर्निर्माण की अनुमति नहीं दी गई। कई मुस्लिम समुदाय, खासकर शिया, इसे लगातार एक ऐतिहासिक अन्याय के रूप में देखते हैं और इसके पुनर्निर्माण की मांग करते रहे हैं।
इस्लाम जगत का अफसोस नाक मंजर सुफी की कब्र पर मजार बनते हे लेकिन पैगंबर साहब की बेटी ओर नवासे की कब्र आज भी विरान नजर आती हे

2025 तक (वर्तमान स्थिति): आज, 5 अप्रैल 2025 तक, जन्नतुल बक़ी की स्थिति में कोई बड़ा बदलाव नहीं आया है। यह अभी भी एक सादा कब्रिस्तान है, जहां सऊदी प्रशासन द्वारा सख्त नियम लागू हैं। कोई स्मारक या गुंबद नहीं हैं, और इसे लेकर समय-समय पर विरोध और बहस होती रहती है। पिछले 100 सालों में, इस घटना को लेकर मुस्लिम समुदायों में नाराजगी बनी हुई है, लेकिन सऊदी सरकार ने अपनी नीति में बदलाव नहीं किया।