भारत में वक्फ बोर्ड संशोधन विधेयक, 2024 को लेकर सियासी हलचल तेज है। भाजपा इसे पारदर्शिता और सुशासन के नाम पर पेश कर रही है, लेकिन यह बिल उसके लिए बुमरैंग साबित हो सकता है। कई राज्यों में मुस्लिम समुदाय इसे अपनी धार्मिक स्वायत्तता पर हमला मान रहा है, जिससे भाजपा का समर्थन आधार कमजोर पड़ सकता है। खासकर बिहार, उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों में, जहां मुस्लिम वोट निर्णायक हैं, पार्टी को नुकसान की आशंका है।
हैरानी की बात यह है कि बिल की वकालत के लिए भाजपा के पास एक भी मुस्लिम सांसद नहीं है, जो उसके दावों पर सवाल उठाता है। पार्टी के कुछ नेता भी इस बिल से खुश नहीं हैं, खासकर सहयोगियों में असंतोष साफ झलक रहा है। गैर-मुस्लिम सदस्यों की नियुक्ति और संपत्ति सर्वे जैसे प्रावधानों ने विवाद को और भड़काया है।
भाजपा इसे सुशासन का कदम बताती है, लेकिन मुस्लिम संगठन इसे संपत्ति हड़पने की चाल कह रहे हैं। बिना ठोस मुस्लिम प्रतिनिधित्व के बिल को थोपना भाजपा के लिए जोखिम भरा साबित हो सकता है। यह विधेयक पार्टी की साख और वोट दोनों को दांव पर लगा रहा है।
दूसरी ओर, भाजपा के कुछ नेता भी इस बिल से असंतुष्ट हैं। सहयोगी दलों जैसे जेडीयू और टीडीपी ने संशोधनों का समर्थन तो किया, लेकिन उनके मुस्लिम नेताओं में बेचैनी साफ दिखती है। जेडीयू में इस्तीफों की बौछार इसका सबूत है। बिल में गैर-मुस्लिम सदस्यों की नियुक्ति और संपत्ति सर्वेक्षण जैसे प्रावधानों ने विवाद को हवा दी है।
हालांकि सरकार का दावा है कि इससे वक्फ संपत्तियों का बेहतर प्रबंधन होगा, लेकिन विपक्ष और मुस्लिम संगठन इसे संपत्ति हड़पने की साजिश बता रहे हैं। अगर भाजपा इस मोर्चे पर बैकफुट पर आई, तो उसकी साख को झटका लगेगा, और अगर जोर डाला, तो वोट बैंक खिसक सकता है। यह बिल भाजपा के लिए दोधारी तलवार बन गया है।