6 अप्रैल 2025 को अमेरिका के इतिहास में एक नया अध्याय लिखा जा रहा है। सड़कों पर उतरे हजारों अमेरिकी नागरिक राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की नीतियों के खिलाफ एकजुट होकर चीख रहे हैं—एक ऐसा शोर जो व्हाइट हाउस की दीवारों को हिला देने के लिए काफी है। ट्रंप, जिन्होंने कभी दुनिया भर में अस्थिरता और "रिवोल्यूशन" फैलाने के आरोपों का सामना किया, अब अपने ही देश में उसी आग से जूझ रहे हैं, जिसे उन्होंने खुद भड़काया। उनकी आर्थिक नीतियाँ, खासकर वैश्विक व्यापार पर लगाए गए भारी-भरकम टैरिफ, एक "आर्थिक भूकंप" बनकर उभरे हैं, जिसने अमेरिकी अर्थव्यवस्था को हिलाकर रख दिया है। और अब, यह भूकंप ट्रंप के गाल पर एक जोरदार तमाचे की तरह गूंज रहा है।
टैरिफ: ट्रंप का "मास्टरस्ट्रोक" या आत्मघाती कदम?
ट्रंप ने अपने दूसरे कार्यकाल की शुरुआत में "अमेरिका फर्स्ट" के नारे को फिर से हवा दी। उनका दावा था कि 10% से 49% तक के टैरिफ वैश्विक व्यापार को संतुलित करेंगे, अमेरिकी नौकरियों को वापस लाएंगे और अर्थव्यवस्था को "नए स्वर्ण युग" में ले जाएंगे। लेकिन हकीकत इसके उलट है। इन टैरिफ्स ने शेयर बाजार को धराशायी कर दिया, वैश्विक आपूर्ति श्रृंखलाओं को तोड़ दिया और आम अमेरिकी के लिए जीवन को और महंगा बना दिया। जेपी मॉर्गन ने चेतावनी दी कि अगर ये टैरिफ जारी रहे, तो 2025 के अंत तक अमेरिका और वैश्विक अर्थव्यवस्था मंदी की चपेट में आ सकती है।
ट्रंप ने इसे "लिबरेशन डे" करार दिया था—2 अप्रैल 2025 को, जब उन्होंने इन टैरिफ्स की घोषणा की। लेकिन यह "मुक्ति" नहीं, बल्कि एक आर्थिक जाल साबित हुआ। कंज्यूमर प्राइस इंडेक्स में लगभग 2% की बढ़ोतरी की भविष्यवाणी की जा रही है, जिसका मतलब है कि अमेरिकी परिवारों को रोजमर्रा की चीजों के लिए हजारों डॉलर अतिरिक्त खर्च करने पड़ेंगे। किसानों से लेकर छोटे व्यवसायियों तक, हर कोई इस नीति की मार झेल रहा है। और सबसे बड़ी विडंबना? ट्रंप के अपने समर्थक, जो कभी उनके "मेक अमेरिका ग्रेट अगेन" के नारे पर झूमते थे, अब सड़कों पर उनके खिलाफ नारे लगा रहे हैं।
सड़कों पर उमड़ा जनसैलाब: ट्रंप का अपना "रिवोल्यूशन"
वाशिंगटन डीसी से लेकर लॉस एंजिल्स, शिकागो से टेक्सास तक, अमेरिकी नागरिक सड़कों पर उतर आए हैं। "हैंड्स ऑफ" नामक यह विरोध प्रदर्शन ट्रंप के दूसरे कार्यकाल का सबसे बड़ा जनांदोलन बन गया है। प्रदर्शनकारी न केवल टैरिफ्स के खिलाफ हैं, बल्कि ट्रंप की अन्य नीतियों—जैसे आप्रवासियों पर सख्ती, सामाजिक कल्याण में कटौती, और संघीय कर्मचारियों की छंटनी—से भी नाराज हैं। वेन हॉफमैन, एक 73 वर्षीय रिटायर्ड मनी मैनेजर, ने कहा, "ये टैरिफ हमारे 401K को नष्ट कर रहे हैं। किसानों और मजदूरों की नौकरियाँ खतरे में हैं। ट्रंप ने हमें धोखा दिया।"
दिलचस्प बात यह है कि यह विरोध केवल ट्रंप के विरोधियों तक सीमित नहीं है। उनके अपने रिपब्लिकन समर्थक आधार, खासकर ग्रामीण इलाकों और मध्यम वर्ग से, अब उनके खिलाफ खड़े हो गए हैं। डलास में हुए "मेगा मार्च" में हजारों लोग आप्रवासियों के अधिकारों के लिए सड़कों पर उतरे, लेकिन टैरिफ्स के आर्थिक प्रभाव ने भी उनकी आवाज को तेज किया। यह वही ट्रंप हैं, जिन्हें कभी दुनिया भर में "रिवोल्यूशन" भड़काने का दोषी ठहराया गया था—अब उनके अपने देश में उनकी नीतियाँ एक जनविद्रोह को जन्म दे रही हैं।
वैश्विक मंच पर अमेरिका की साख दांव पर
ट्रंप की नीतियों ने न केवल अमेरिका को अंदर से हिलाया, बल्कि वैश्विक मंच पर भी उसकी विश्वसनीयता को चोट पहुँचाई है। कनाडा, यूरोपीय संघ, जापान और चीन जैसे देशों ने जवाबी टैरिफ्स की धमकी दी है। फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों ने अमेरिका में निवेश रोकने की बात कही, तो जापान के प्रधानमंत्री शिगेरु इशिबा ने इसे "राष्ट्रीय संकट" करार दिया। एक समय अमेरिका वैश्विक व्यापार का चैंपियन था, लेकिन ट्रंप के "लिबरेशन डे" ने उसे एक अविश्वसनीय साझेदार बना दिया।
यह विडंबना ही है कि ट्रंप, जो कभी विदेशी धरती पर अस्थिरता फैलाने के लिए कुख्यात थे, अब अपने ही देश में उसी अस्थिरता का शिकार हो रहे हैं। उनकी नीतियों ने न केवल आर्थिक संकट पैदा किया, बल्कि सामाजिक एकता को भी खंडित कर दिया। प्रदर्शनकारियों के हाथों में यूक्रेनी झंडे और फिलिस्तीनी केफिया स्कार्फ इस बात का सबूत हैं कि यह विरोध केवल आर्थिक नहीं, बल्कि वैचारिक भी है।
ट्रंप का सपना या अमेरिका का दुःस्वप्न?
ट्रंप ने दावा किया था कि उनके टैरिफ अमेरिका को "धनी" बनाएंगे। लेकिन सच यह है कि ये नीतियाँ अमेरिका को एक आर्थिक और सामाजिक दुःस्वप्न की ओर ले जा रही हैं। शेयर बाजार में गिरावट, बढ़ती महंगाई, और जनता का गुस्सा—ये सब ट्रंप के उस "स्वर्ण युग" के सपने को चकनाचूर कर रहे हैं। उनकी नीतियों ने न केवल उनके विरोधियों को, बल्कि उनके समर्थकों को भी उनके खिलाफ कर दिया।
यह जनविद्रोह ट्रंप के गाल पर एक करारा तमाचा है—एक ऐसा तमाचा जो न केवल उनकी नीतियों की नाकामी को उजागर करता है, बल्कि यह भी दिखाता है कि अमेरिकी जनता अब और बर्दाश्त करने को तैयार नहीं। ट्रंप ने शायद सोचा था कि वह इतिहास को अपने हिसाब से लिखेंगे, लेकिन सड़कों पर उमड़ा यह जनसैलाब बता रहा है कि इतिहास अब उन्हें सबक सिखाने को तैयार है। क्या यह ट्रंप के पतन की शुरुआत है? समय बताएगा, लेकिन अभी के लिए, यह "आर्थिक भूकंप" उनके शासन की नींव को हिला रहा है।