जोसेप बोरेल, यूरोपीय संघ के पूर्व विदेश नीति प्रमुख और एक वरिष्ठ डिप्लोमेट, ने एक ऐसी सच्चाई को स्वीकार किया है जिसे मानवाधिकार कार्यकर्ता और स्वतंत्र विश्लेषक सालों से उजागर करते आए हैं। उन्होंने स्पष्ट शब्दों में कहा: "आज गाज़ा पर गिरने वाले आधे बम यूरोप से आए हैं।"
यह बयान, हालांकि देर से आया है, लेकिन यूरोप की नैतिक और राजनीतिक विफलता को बयां करता है। एक ऐसा महाद्वीप जो कभी मानवाधिकारों का झंडाबरदार बनता था, आज गाज़ा के नरसंहार में सीधा साझीदार है। आंकड़े डरावने हैं: 50,000 से अधिक मौतें, 1,16,000 घायल, और 17,000 बच्चे मारे गए। ये सिर्फ संख्या नहीं है – हर एक ज़िंदगी की दास्तान है, और यूरोप ने इज़राइल को हथियार बेचकर इन मौतों में अपना योगदान दिया है।
"यह जातीय सफ़ाया है" – बोरेल का अहम बयान
स्पेन के एक केन्द्र में यूरोपीय पुरस्कार ग्रहण करते हुए बोरेल ने कहा:
"हम द्वितीय विश्व युद्ध के बाद सबसे बड़े जातीय सफाये के गवाह हैं। इसका मकसद फिलिस्तीनियों को खत्म करके उस जगह को 'एक हॉलिडे रिजॉर्ट' में बदलना है।"
यूरोप का झूठ: "टू स्टेट समाधान" के नाम पर खूनख़राबा
यूरोपीय संघ बाहर से "टू स्टेट समाधान" और "आत्मरक्षा का अधिकार" की बात करता है, लेकिन असल में वह इज़राइल की हत्या मशीनरी का हिस्सा है।
- यूरोप ने इज़राइल को हथियारों की आपूर्ति जारी रखी।
- हजारों फिलिस्तीनी नागरिकों की हत्या पर चुप्पी साध ली।
- मानवाधिकारों के उल्लंघन को नज़रअंदाज़ किया।
बोरेल ने माना: "हमारे पास विरोध करने के सभी साधन थे, लेकिन हमने कभी उनका इस्तेमाल नहीं किया।"
यूक्रेन के लिए: यूरोप ने तुरंत अरबों यूरो के हथियार भेजे, रूस पर प्रतिबंध लगाए, और जोरदार समर्थन दिया।
गाजा के लिए: इज़राइल को हथियार बेचना जारी रखा, कोई ठोस कार्रवाई नहीं की।
सवाल: अगर दोनों ही मामलों में "मानवाधिकार" और "क़ब्ज़े के खिलाफ़ संघर्ष" का तर्क दिया जाता है, तो फिर यह भेदभाव क्यों?
यूरोप की विफलता: "मानवता" की जगह "राजनीति"
बोरेल के शब्दों में:
"आज की दुनिया में, जहां ट्रंप जैसे अराजकतावादी ख़तरा बने हुए हैं, पश्चिमी सभ्यता का पतन बाहर से नहीं, बल्कि अंदर से हो रहा है।"
यूरोप, जो खुद को इतिहास में नरसंहार का विक्टिम मानता है, आज नरसंहार का सहयोगी बन गया है।
सवाल अभी बाकी है...
- कब तक यूरोप गाजा के नरसंहार का साझीदार बना रहेगा?
- कब तक यूरोपीय बम फ़िलिस्तीनी बच्चों की जान लेते रहेंगे?
- क्या अब वक्त नहीं आया कि इस खूनी चुप्पी को तोड़ा जाए?