ईरान-इराक युद्ध (1980-1988) के दौरान ईरान के राष्ट्रपति अबुलहसन बनीसद्र पर गद्दारी के गंभीर आरोप लगे। बनीसद्र 1980 में इस्लामी क्रांति के बाद ईरान के पहले राष्ट्रपति बने थे, जब देश एक इस्लामी गणतंत्र में परिवर्तित हुआ था।
आरोपों की पृष्ठभूमि और घटनाएँ:
युद्ध का प्रारंभ:
सितंबर 1980 में इराक के राष्ट्रपति सद्दाम हुसैन ने ईरान पर हमला कर ईरान-इराक युद्ध शुरू किया। उस समय ईरान में इस्लामी क्रांति के बाद अयातुल्ला रुहोल्लाह खोमैनी सुप्रीम लीडर थे, और बनीसद्र को राष्ट्रपति चुना गया था। बनीसद्र को उदारवादी विचारधारा का माना जाता था, जिसके कारण उनके विचार इस्लामी क्रांति के प्रभावशाली धड़े और खोमैनी के समर्थकों से टकराते थे।
गद्दारी के आरोप:
बनीसद्र पर आरोप था कि उन्होंने युद्ध के दौरान सरकार और सेना को कमजोर करने की कोशिश की। उनकी नीतियों और युद्ध प्रबंधन को लेकर इस्लामिक रिपब्लिकन पार्टी (IRP) और इस्लामिक रिवॉल्यूशनरी गार्ड कॉर्प्स (IRGC) से मतभेद थे। बनीसद्र नियमित सेना (आर्टेश) को मजबूत करना चाहते थे, जबकि IRGC, जो खोमैनी के करीबी थे, युद्ध में प्रमुख भूमिका चाहता था।
उन पर यह भी इल्जाम लगा कि वे खोमैनी और सरकार के प्रभावशाली धड़े के खिलाफ साजिश रच रहे थे और पश्चिमी देशों, खासकर अमेरिका, के साथ गुप्त संपर्क में थे। हालांकि, इन आरोपों के पुख्ता सबूत सार्वजनिक नहीं किए गए।
परिणाम और निर्वासन:
महाभियोग: बनीसद्र के खिलाफ असंतोष बढ़ने के कारण जून 1981 में ईरानी संसद (मजलिस) ने उनके खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव पारित किया। खोमैनी ने भी उनकी बर्खास्तगी को मंजूरी दी।
निर्वासन: जुलाई 1981 में बनीसद्र को देश छोड़कर भागना पड़ा। वे फ्रांस चले गए, जहाँ उन्होंने निर्वासन में अपना जीवन बिताया।
युद्ध और सरकार पर प्रभाव: बनीसद्र की बर्खास्तगी के बाद IRGC की भूमिका बढ़ी, और ईरान ने युद्ध में अधिक आक्रामक रणनीति अपनाई। मोहम्मद अली राजाई नए राष्ट्रपति बने, लेकिन 1981 में एक बम विस्फोट में उनकी हत्या हो गई। इसके बाद अली खामेनेई राष्ट्रपति बने, जो बाद में सुप्रीम लीडर बने।
युद्ध 1988 तक चला, जिसमें लाखों लोग मारे गए और दोनों देशों को भारी नुकसान हुआ। अंततः युद्धविराम समझौते के साथ यह युद्ध समाप्त हुआ।
अबुलहसन बनीसद्र पर गद्दारी के स्पष्ट सबूत नहीं मिले, लेकिन उनके उदारवादी विचारों और खोमैनी के प्रभावशाली धड़े के साथ टकराव ने उन्हें संदिग्ध बना दिया। उनकी बर्खास्तगी और निर्वासन ने ईरान में इस्लामी क्रांति की ताकतों को और मजबूत किया।